फर्जी प्रमाण पत्र से सरपंच बनी संतोष देवी को जेल:आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होने का फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर नामांकन किया था, हेडमास्टर को भी जेल
फर्जी प्रमाण पत्र से सरपंच बनी संतोष देवी को जेल:आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होने का फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर नामांकन किया था, हेडमास्टर को भी जेल
सरदारशहर : सरदारशहर एसीजेएम कोर्ट ने रंगाईसर ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच संतोष देवी को फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पंचायत चुनाव लड़ने के मामले में तीन साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। संतोष देवी चूरू जिला दुग्ध उत्पादक संघ सरदारशहर के चेयरमैन लालचंद मूंड की पत्नी हैं। ये फैसला गुरुवार को सुनाया गया।
हेड मास्टर को भी 3 साल की सजा
अदालत ने फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने वाले सरस्वती उप्रावि, ढिगारला (राजगढ़) के तत्कालीन प्रधानाध्यापक लीलाधर पूनिया को भी तीन साल की सजा सुनाई है। एसीजेएम नवनीत गोदारा की अदालत ने ये निर्णय दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संतोष देवी ने नामांकन के समय प्रस्तुत दस्तावेजों में खुद को वर्ष 1998-99 में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण बताया था। जबकि उस समय उक्त स्कूल को शिक्षा विभाग से कोई मान्यता प्राप्त नहीं थी और न ही अभियुक्त ने उस स्कूल से वास्तव में पढ़ाई की थी।
अदालत ने माना कि आरोपी ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर निर्वाचन अधिकारी को गुमराह कर चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया और निर्वाचित हुई, जो कि एक गंभीर अपराध है। कोर्ट ने संतोष देवी और प्रधानाध्यापक लीलाधर को भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए तीन-तीन वर्ष के साधारण कारावास की सजा सुनाई। मामले की पैरवी सहायक अभियोजन अधिकारी डॉ. प्रकाश गढ़वाल ने की।
आठवीं कक्षा का फर्जी प्रमाण पत्र लगाया
इस मामले की शुरुआत रंगाईसर पंचायत सरपंच पद की पराजित प्रत्याशी कमला द्वारा पुलिस थाने में परिवाद देने से हुई थी। कमला ने आरोप लगाया था कि 1 फरवरी 2015 को हुए चुनाव में संतोष देवी ने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होने का फर्जी प्रमाण पत्र लगाकर नामांकन किया था। पुलिस जांच में आरोप सही पाए जाने पर संतोष देवी और प्रमाण पत्र जारी करने वाले प्रधानाध्यापक लीलाधर के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया गया। अभियोजन पक्ष ने 15 गवाहों और 45 दस्तावेजों के आधार पर दोष साबित किया।
जानकारी के अनुसार, लीलाधर पूनिया ने कुछ वर्ष पहले ढिगारला स्थित सरस्वती उप्रावि स्कूल को बंद कर दिया था। एसीजेएम नवनीत गोदारा ने अपने फैसले में कहा, ‘फर्जी दस्तावेजों के सहारे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना जनता के विश्वास के साथ छल है, जिसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।’
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