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झुंझुनूं में 2 परिवारों के मकान तोड़े, बेघर हुए:आरोप- बिना सूचना के कार्रवाई की; कोई इलाज करवा रहा था तो कोई मजदूरी करने गया था


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झुंझुनूं में 2 परिवारों के मकान तोड़े, बेघर हुए:आरोप- बिना सूचना के कार्रवाई की; कोई इलाज करवा रहा था तो कोई मजदूरी करने गया था

झुंझुनूं में 2 परिवारों के मकान तोड़े, बेघर हुए:आरोप- बिना सूचना के कार्रवाई की; कोई इलाज करवा रहा था तो कोई मजदूरी करने गया था

पिलानी : पिलानी क्षेत्र के धींधवा आथूणा गांव में 29 अगस्त को प्रशासनिक कार्रवाई में दो गरीब परिवारों के घर तोड़ दिए थे। आरोप है कि बिना किसी पूर्व सूचना और आदेश के दो पक्के मकान और दुकानें तोड़ दी गईं, जिससे एक परिवार का घर उजड़ गया, तो दूसरे का रोजी-रोटी का सहारा छिन गया। पीड़ित परिवारों ने प्रशासन पर तानाशाही, पद के दुरुपयोग और जातिगत पक्षपात का आरोप लगाते हुए जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा और न्याय की गुहार की।

जिन दुकानों से गुजर-बसर की उम्मीद थी, अब वहां सिर्फ मलबा और मायूसी बिखरी है।"
जिन दुकानों से गुजर-बसर की उम्मीद थी, अब वहां सिर्फ मलबा और मायूसी बिखरी है।”

पिता की यादों और सपनों की दुकानें हुईं मलबे में तब्दील

विकास के पिता रमेश कुमार ने 2024 में एक भूखंड खरीदा था। इसी साल मार्च में उनके निधन के बाद जमीन विकास के नाम पर आ गई। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए विकास ने लोन लेकर उस पर दो पक्की दुकानें बनवाईं। लेकिन 29 अगस्त की दोपहर, जब विकास जयपुर में अपने दादाजी का इलाज करा रहे थे, उन्हें फोन पर पता चला कि उनकी दुकानें तोड़ी जा रही हैं। जब तक वह गांव पहुंचते, उनकी दुकानें मलबे में बदल चुकी थीं। विकास का कहना है कि उनकी जमीन पर न तो कोई मुकदमा था और न ही कोई आदेश।

कलेक्ट्रेट पर इंसाफ की गुहार लगाते पीड़ित परिवार और ग्रामीण।"
कलेक्ट्रेट पर इंसाफ की गुहार लगाते पीड़ित परिवार और ग्रामीण।”

बच्चों की किताबें भी मलबे में दबी

इसी कार्रवाई की दूसरी पीड़ित हैं सुनीता देवी, जो मजदूरी करके अपने परिवार का पेट पालती हैं। 2019 में उन्होंने जमीन खरीदकर उस पर एक छोटा सा घर बनाया था। 29 अगस्त को, जब वह परिवार के साथ ईंट भट्टे पर काम कर रही थीं, उन्हें पता चला कि उनका घर तोड़ा जा रहा है। जब वह भागी-भागी घर पहुंचीं, तब तक उनका घर मलबे का ढेर बन चुका था। सुनीता देवी ने बताया कि घर के साथ-साथ उनका सारा सामान, बच्चों के कपड़े और स्कूल की किताबें, जरूरी दस्तावेज और गहने तक मलबे में दब गए। सबसे दुखद यह है कि जिस भूमि पर उनका घर बना था, उस पर सूरजगढ़ एसडीएम का स्थगन आदेश (स्टे) लागू था, जिसे मौके पर मौजूद अधिकारियों ने मानने से साफ इनकार कर दिया।

मकान ढहने के बाद खुले आसमान तले रात गुजारने को मजबूर सुनीता देवी का परिवार।"
मकान ढहने के बाद खुले आसमान तले रात गुजारने को मजबूर सुनीता देवी का परिवार।”

न्याय की तलाश में दर-दर भटक रहे पीड़ित

आरोप है कि दुकान और घर टूटने के बाद, दोनों पीड़ित परिवार न्याय की उम्मीद में सबसे पहले पिलानी थाने पहुंचे। लेकिन पुलिस अधिकारियों ने यह कहकर रिपोर्ट दर्ज करने से इनकार कर दिया कि वे प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज नहीं कर सकते। अब दोनों परिवार कलेक्टर से न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

‘स्टे के बावजूद जेसीबी चलाई’

इस भूमि के खातेदार रोहितास ने बताया कि उन्होंने यह जमीन चार लोगों को बेची थी। उन्होंने यह भी पुष्टि की कि 26 अगस्त को ही अदालत से स्थगन आदेश मिल गया था। इसके बावजूद 29 अगस्त को प्रशासन ने जेसीबी चला दी। रोहितास के मुताबिक, उनके पास स्टे का आदेश और पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी मौजूद है, जो यह साबित करता है कि प्रशासन ने दबाव में आकर गरीबों को उजाड़ा है पीड़ित परिवारों ने आरोप लगाया है कि यह कार्रवाई कुछ प्रभावशाली लोगों के कहने पर हुई है।

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