झुंझुनूं के वीर सपूत शहीद हवलदार इकबाल खान को सुपुर्द-ए-खाक
जम्मू-कश्मीर में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर ड्यूटी के दौरान शहीद हुए, अंतिम विदाई में उमड़ा जनसैलाब – सेना ने बेटी मायरा को तिरंगा सौंपा

झुंझुनूं : जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाकों में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए झुंझुनूं जिले के लालपुर गांव निवासी हवलदार इकबाल खान (42) को गुरुवार को उनके पैतृक गांव में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। जैसे ही उनकी पार्थिव देह गांव पहुंची, पूरा इलाका गगनभेदी नारों “भारत माता की जय” और “इकबाल खान अमर रहें” से गूंज उठा। गुरुवार दोपहर करीब 12:30 बजे हजारों लोगों की मौजूदगी में उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

10 वर्षीय बेटी मायरा को तिरंगा सौंपा
इस दौरान सेना के अधिकारियों ने शहीद की 10 वर्षीय बेटी मायरा को तिरंगा सौंपा। मासूम बेटी के हाथों में तिरंगा थमते ही माहौल गमगीन हो उठा और हर आंख नम हो गई।

26 अगस्त को देश सेवा में हुए शहीद
शहीद इकबाल खान 26 अगस्त की सुबह करीब 5 बजे अपनी टीम के साथ गश्त पर थे। वह 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित एक चौकी से दूसरी चौकी की ओर बढ़ रहे थे कि अचानक सीने में तेज दर्द हुआ। डॉक्टर को बुलाने के प्रयास किए गए, लेकिन उससे पहले ही उन्होंने अंतिम सांसें ले लीं। सेना ने उन्हें शहीद का दर्जा दिया और पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।
झुंझुनूं शहर से लालपुर तक निकली तिरंगा यात्रा
गुरुवार सुबह जब शहीद का पार्थिव शरीर झुंझुनूं पहुंचा, तो हजारों लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। वहां से उनके पैतृक गांव लालपुर तक भव्य तिरंगा यात्रा निकाली गई। युवाओं ने बाइक, ट्रैक्टर और पैदल मार्च करते हुए हाथों में तिरंगे लहराए और गगनभेदी नारे लगाए। यात्रा के दौरान रास्तेभर लोगों ने फूल बरसाकर शहीद का स्वागत किया। माहौल गम और गर्व से भर गया।
21 ग्रेनेडियर यूनिट में थे तैनात
15 जनवरी 2003 को सेना में भर्ती हुए इकबाल खान इस समय 21 ग्रेनेडियर यूनिट में हवलदार पद पर कार्यरत थे। मेजर सुनील कुमार सिंह ने बताया कि इकबाल खान की ड्यूटी अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में थी। “वे कठिन इलाकों में दिन-रात देश की रक्षा कर रहे थे। देश सेवा करते हुए ही उन्होंने प्राण न्यौछावर किए हैं। उनकी शहादत पर पूरे इलाके को गर्व है।”
शहीद परिवार की सैन्य परंपरा
इकबाल खान का परिवार भी देश सेवा से गहराई से जुड़ा रहा है। पिता यासीन खान भारतीय सेना से हवलदार पद पर सेवानिवृत्त हुए।दादा अफजल खान भी सेना में सेवाएं दे चुके थे। चाचा वर्तमान में राजस्थान पुलिस में कार्यरत हैं।
पत्नी और बेटी बेसहारा, बहन-बेटी की चीखों से गूंज उठा गांव
करीब 16 साल पहले इकबाल खान का विवाह बुड़ाना गांव की नसीम बानो से हुआ था। उनकी 10 वर्षीय बेटी मायरा वर्तमान में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही है। पार्थिव देह गांव पहुंचते ही चीख-पुकार मच गई। बहन रुबीना भाई को देखकर फूट-फूटकर रो पड़ीं। पत्नी और मां का भी रो-रोकर बुरा हाल हो गया। पूरे गांव में मातम पसरा रहा।
हजारों की भीड़ बनी गवाह, कहा – “गर्व है हमारे बेटे पर”
शहीद इकबाल खान की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए न केवल लालपुर, बल्कि आसपास के गांवों और झुंझुनूं शहर से भी हजारों लोग उमड़े। हर जुबान पर यही नारा गूंज रहा था— “भारत माता की जय”, “इकबाल खान अमर रहें”।
भीड़ में शामिल लोगों ने कहा –
“ऐसे सपूतों की शहादत पर हमें गर्व है। झुंझुनूं की धरती ने एक और वीर को खो दिया, लेकिन इकबाल खान का नाम हमेशा इतिहास में अमर रहेगा।”
ये रहे मौजूद
इस दौरान झुंझुनूं सांसद बृजेन्द्र ओला, झुंझुनूं विधायक राजेन्द्र भांबू,, विधायक (पिलानी) पितराम काला, उदयपुरवाटी विधायक भगवानराम सैनी, जिला प्रमुख हर्षिनी कुलहरी, मदरसा बोर्ड अध्यक्ष एमडी चोपदार, जिला कलेक्टर डॉ अरुण गर्ग, एसपी बृजेश उपाध्याय, नवलगढ प्रधान दिनेश सुंडा आदि ने शहीद को श्रद्धांजलि दी।
शहीद की अंतिम यात्रा…






