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फोन पर कानूनी सलाह न दें: सुप्रीम कोर्ट की वकीलों को सख्त चेतावनी


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फोन पर कानूनी सलाह न दें: सुप्रीम कोर्ट की वकीलों को सख्त चेतावनी

फोन पर कानूनी सलाह न दें: सुप्रीम कोर्ट की वकीलों को सख्त चेतावनी

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए देशभर के वकीलों को सतर्क किया है कि वे फोन पर कानूनी सलाह देने से बचें। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि मोबाइल पर दी गई कानूनी सलाह रिकॉर्ड की जा सकती है और भविष्य में अदालत में सबूत के रूप में प्रस्तुत की जा सकती है, जिससे वकील खुद कानूनी कार्रवाई के घेरे में आ सकते हैं।

⚠️ डिजिटल युग में बातचीत का जोखिम

आज के समय में लगभग हर स्मार्टफोन में कॉल रिकॉर्डिंग की सुविधा उपलब्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जताते हुए कहा कि कोई भी मुवक्किल या तीसरा पक्ष वकील से हुई बातचीत को रिकॉर्ड कर सकता है और उसे कोर्ट में पेश किया जा सकता है। ऐसे मामलों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65B के तहत यह रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक सबूत मानी जा सकती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रकार की रिकॉर्डिंग से वकील द्वारा दी गई अनजानी या अधूरी सलाह उनके ही खिलाफ इस्तेमाल की जा सकती है।

❗ अधूरी जानकारी से गलत सलाह का खतरा

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि फोन पर मुवक्किल की समस्या को पूरी तरह समझना संभव नहीं होता। अधूरी जानकारी के आधार पर दी गई सलाह अक्सर गलत साबित हो सकती है, जिससे न सिर्फ मुवक्किल को नुकसान पहुँचता है, बल्कि वकील की पेशेवर ज़िम्मेदारी भी खतरे में पड़ती है। कोर्ट ने वकीलों को सलाह दी कि वे व्यक्तिगत रूप से या दस्तावेजों की समीक्षा के बाद ही विस्तृत सलाह दें।

🔐 गोपनीयता के उल्लंघन का खतरा

Advocates Act, 1961 और Bar Council of India Rules के तहत वकीलों पर यह नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वे मुवक्किल की जानकारी को गोपनीय रखें। कोर्ट का मानना है कि फोन पर हुई बातचीत आसानी से रिकॉर्ड या फॉरवर्ड की जा सकती है, जिससे इस गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है।

यदि यह गोपनीयता भंग होती है, तो संबंधित वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी संभव है।

🔎 कोर्ट का सुझाव: सावधानी ही सुरक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में वकीलों को निम्नलिखित सुझाव दिए:

  • फोन पर केवल सामान्य जानकारी दें, विस्तृत कानूनी सलाह न दें।

  • सलाह लिखित रूप में या उचित दस्तावेज़ देखने के बाद ही दें।

  • मुवक्किल को गोपनीयता की सीमाओं के बारे में स्पष्ट रूप से अवगत कराएं।

  • सलाह देने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य बनाएं।

📌 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वकीलों के लिए एक चेतावनी है कि डिजिटल संचार माध्यमों में सतर्क रहना अब पेशेवर ज़रूरत बन चुकी है। मुवक्किल के हितों की रक्षा के साथ-साथ स्वयं को कानूनी जोखिम से बचाने के लिए वकीलों को संवाद के हर माध्यम का सावधानी से उपयोग करना चाहिए।

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