‘यह लड़ाई केवल जमीन की नहीं-पीढ़ियों के हक की है’:जमीनों पर कब्जे को लेकर सड़कों पर उतरे किसान, कलेक्ट्रेट का किया घेराव
'यह लड़ाई केवल जमीन की नहीं-पीढ़ियों के हक की है':जमीनों पर कब्जे को लेकर सड़कों पर उतरे किसान, कलेक्ट्रेट का किया घेराव

झुंझुनूं : झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ विधानसभा क्षेत्र के किसानों ने मंगलवार को किसान संघर्ष समिति झुंझुनूं के बैनर तले कलेक्ट्रेट का घेराव कया। इस दौरान कलेक्ट्रेट परिसर में प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। किसानों का कहना है कि प्रदेशभर में 765 केवी ट्रांसमिशन लाइन, गैस पाइपलाइन, क्रूड ऑयल पाइपलाइन जैसी परियोजनाएं उनके खेतों से गुजारी जा रही हैं, जिनसे खेती-किसानी, हरे-भरे पेड़ों और पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है।

किसान का आरोप- गुमराह किया जा रहा
किसानों ने आरोप लगाया कि इन परियोजनाओं में शामिल कंपनियां प्रशासनिक मशीनरी के सहयोग से किसानों पर दबाव बना रही हैं। कभी उन्हें राष्ट्रहित के नाम पर गुमराह किया जाता है, तो कभी बड़ी कंपनियों का नाम लेकर डराया जाता है। किसानों का कहना है कि यह जमीन हमारे पूर्वजों के लंबे संघर्षों का नतीजा है, जिसे किसी ने मुफ्त में नहीं दिया, लेकिन अब कंपनियां प्रशासन की मिलीभगत से इसे स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा रही हैं और जमाबंदियों में अपने नाम दर्ज करवा रही हैं।

‘किसानों के छीने जा रहे अधिकार’
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले साल जिले से गुजरी गैस पाइपलाइन से प्रभावित किसानों की जमाबंदियों में बिना सहमति कंपनियों का नाम दर्ज कर दिया गया। मुआवजे के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा जितना पैसा देकर किसानों के अधिकार छीने जा रहे हैं। किसानों ने डर जताया कि आने वाले समय में इसी तरह उनकी जमाबंदी से उनका नाम हटा दिया जाएगा और कंपनियों का नाम स्थायी रूप से दर्ज रहेगा।
किसान बोले- उचित मुआवजा नहीं दिया जाता
किसानों ने सवाल उठाया कि जब नवलगढ़ में सीमेंट बेचने वाली कंपनियां प्रभावित जमीन की बाजार दर का मुआवजा देती हैं, तो बिजली बेचने वाली बड़ी कंपनियां—जैसे TATA, ADANI, RELIANCE—ऐसा क्यों नहीं करतीं? उनका कहना है कि यदि यह परियोजनाएं वास्तव में राष्ट्रहित में हैं, तो सरकार को यह तय करना चाहिए कि जिन खेतों से 765 केवी ट्रांसमिशन लाइन और अन्य लाइनें गुजर रही हैं, उन किसानों को घरेलू और कृषि बिजली बिना शर्त मुफ्त दी जाए, या इन लाइनों के खेत में रहने तक मासिक किराया तय कर नियमित भुगतान किया जाए।

‘किसानों को व्यवस्थित तरीके से कमजोर किया जा रहा’
किसानों ने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं होतीं, तब तक किसी भी कंपनी या प्रशासनिक प्रतिनिधि को खेतों में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। ज्ञापन में यह भी मांग की गई कि मुआवजा तय करने की प्रक्रिया पारदर्शी हो और किसानों की सहमति के बिना जमीन से संबंधित कोई बदलाव न किया जाए।
ग्रामीण विकास ने प्रदर्शन के दौरान कहा कि बड़े कॉर्पोरेट घरानों की परियोजनाओं के नाम पर किसानों को व्यवस्थित तरीके से कमजोर किया जा रहा है। उन्हें आपस में बांटकर, डराकर और थोड़ी-बहुत रकम देकर स्थायी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इससे न केवल कृषि उत्पादन घट रहा है, बल्कि जमीन का स्वामित्व भी खतरे में है।
‘पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा’
किसान नेताओं ने कहा कि प्रदेशभर में इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं और प्रशासन इन्हें रोकने में विफल हो रहा है। कंपनियां काम शुरू होने से पहले बड़े-बड़े वादे करती हैं, लेकिन काम पूरा होने के बाद वे सिर्फ कागजों में रह जाते हैं। साथ ही, परियोजनाओं के दौरान बड़े पैमाने पर हरे-भरे पेड़ काटे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ रहा है।
किसानों ने आंदोलन का रूप बढ़ाने की चेतावनी दी
किसानों ने सरकार से ऐसी नीति बनाने की मांग की जिसमें किसानों की सहमति, उचित मुआवजा और स्थायी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई केवल जमीन की नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के हक की भी है। किसान संघर्ष समिति ने चेतावनी दी कि यदि जल्द समाधान नहीं निकला तो आंदोलन को जिला स्तर से बढ़ाकर प्रदेश स्तर पर किया जाएगा।