दादा कायम खां डे पर विशेष
दादा कायम खां डे पर विशेष

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : दादा नवाब कायम खां डे पर 14 जून के दिन देश व प्रदेश का हर नागरिक खिराजे – ए-अकीदत पेश करता है। जिल्लत से पहले मौत वतन से मोहब्बत हमारी निशानी है। गर डट जाए युद्ध के मैदान में तो दुनिया हमारी दीवानी है। वादा करके दुश्मन को भी धोखा देना हमारी फितरत नहीं वतन परस्ती हमारे खून में है। क्योंकि हम कायमखानी हैं।
कायमखानी समाज के प्रथम पुरुष और महान योद्धा नवाब कायम खां 14 जून 1419 ई. को शहीद हुए थे, उनकी याद में ही कायमखानी कौम 14 जून को हर वर्ष नवाब कायम खां डे मनाते है। कायमखानी वंश का उद्भव करीब 6688 वर्ष पूर्व हुआ था। चूरू जिले में श्ददरेवाश् नामक स्थान है जहां मोटेराव चौहान नामक राजा शासन करता था, उनके पुत्र राणा कर्मचंद फिरोजशाह तुगलक के समय 1356 ई. में इस्लाम धर्म कबूल कर कायम खां बने। बाद में कायम खां के दो भाई जैनुदीन खांव जुबैरुदीन खां ने इस्लाम धर्म अपनाया, इन्हीं की संतान आगे चलकर कायमखानी कहलाई। कायमखानी समाज दो रीति-रिवाजों का मेल है। इसमें छठी की रस्म, भात, आरता जैसे कई संस्कार और रीति-रिवाज राजपूतों से है। इसका कारण यह बताया जाता है कि कर्मचंद कायम खां तो बन गए लेकिन राजपूताना गौरव से नाता जोड़े रखा।
13वीं सदीं से लेकर अब तक राजपूतों के साथ कायमखानियों का अटूट रिश्ता बना हुआ है कायमखानीयों का इतिहास मुख्य रूप से राजस्थान और हरियाणा के क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। मान्यता अनुसार दुनिया में मौजूद तमाम इंसानों की उत्पत्ति पहले इंसान हजरत आदम अलैहिस्सलाम से हुई है। कायम खां का हिसार- हासी से गहरा संबंध था वह हिसार के गवर्नर थे और नवाब कायम खां के नाम से प्रसिद्ध थे। कायम खां का प्रारंभिक नाम करमचंद था। जो ददरेवा के शासक राजा मोटे राव चौहान के पुत्र थे हिसार में उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए सुल्तान फिरोजशाह ने उन्हें खान-ए-जहांन का खिताब दिया था।