बेटियों की पढ़ाई के लिए घर-घर पहुंची जैनब:नौकरी छोड़ी, 4 बेटियों से छप्परे में शुरू किया मदरसा, अब 200 छात्राओं को दे रही निशुल्क तालीम
बेटियों की पढ़ाई के लिए घर-घर पहुंची जैनब:नौकरी छोड़ी, 4 बेटियों से छप्परे में शुरू किया मदरसा, अब 200 छात्राओं को दे रही निशुल्क तालीम

बाड़मेर : जिले की पहली महिला आलिमा जैनब बानो: बेटियों को निशुल्क दे रही हैं दीनी और दुनियावी तालीम जिले से 65 किमी दूर गुड़ामालानी के नया नगर के पास गोरामाणियों की ढाणी स्थित मदरसा हनफिया आवासीय उप्राबा शिक्षण संस्थान में करीब 200 बच्चियां स्कूल शिक्षा के साथ दीनी तालीम हासिल कर रही हैं। इस मदरसे की शुरुआत करने वाली जिले की पहली महिला आलिमा जैनब बानो ने फाजिला की डिग्री प्राप्त कर मुस्लिम समाज की बेटियों को निशुल्क शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है।
दो बीघा ज़मीन पर बने इस मदरसे में बच्चियों के लिए हॉस्टल में 12 कमरे और 12 कक्षाएं संचालित की जा रही हैं। अब तक 70 से अधिक छात्राएं इस मदरसे से पढ़कर उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर हो चुकी हैं।
दीनी तालीम के साथ स्वरोजगार का प्रशिक्षण
मदरसे के साथ संचालित विद्यालय में आठवीं कक्षा तक की शिक्षा, उर्दू भाषा का ज्ञान और मजहबी तालीम दी जाती है। साथ ही, बच्चियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई और हस्तकला का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
2012 में लिया शिक्षा का संकल्प
साल 2012 में जामनगर से फाजिला की डिग्री प्राप्त करने के बाद जब जैनब अपने गांव लौटीं, तो पिता अब्दुल रऊफ के कहने पर उन्होंने गांव की बेटियों के लिए कुछ करने का संकल्प लिया। उस समय गांव में कोई भी बच्ची पढ़ने को तैयार नहीं थी। तब जैनब खुद सीमावर्ती गांवों जैसे बुरहान का तला, दूधोड़ा, भलीसर आदि में जाकर लोगों को समझाने लगीं।
छप्पर से शुरुआत, अब दो मंजिला इमारत
शुरुआत में जैनब ने एक छप्पर बनाकर चार बच्चियों – अफसाना, शहनाज, बिल्मिला और शौदरा – को पढ़ाना शुरू किया। आज यह मदरसा दो मंजिला इमारत में तब्दील हो चुका है, जिसमें 25 कमरे हैं। 150 छात्राएं हॉस्टल में और 50 पास के गांवों से प्रतिदिन आती हैं।
भामाशाहों का भी मिल रहा साथ
धीरे-धीरे समाज की सोच में बदलाव आया और लोग जुड़ते गए। अब मदरसे को आसपास के गांवों के दानदाताओं से राशन और आर्थिक सहयोग भी मिलने लगा है।
घर-घर जाकर बेटियों को पढ़ाने की अलख जगाई
गुजरात के जामनगर में 40 हजार की नौकरी को छोड़, जैनब ने अपने गांव लौटकर बच्चियों की शिक्षा को प्राथमिकता दी। शुरू में विरोध झेलना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। हर घर जाकर परिजनों को समझाया और बालिकाओं को मदरसे में पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
प्रशासनिक मान्यता और विस्तार
2012 में मदरसे की शुरुआत हुई, 2014 में पंजीकरण हुआ और कक्षा 5 तक की मान्यता प्राप्त हुई। 2018 में आठवीं कक्षा तक की मान्यता मिल गई। उनके पिता अब्दुल रऊफ ने मदरसे के लिए दो बीघा जमीन दान दी थी।
जैनब खुद पढ़ाती हैं उर्दू, 7 सदस्यीय स्टाफ
मदरसे में सात सदस्यीय स्टाफ कार्यरत है, जिनमें प्रधानाध्यापक मांगीलाल विश्नोई और जैनब की दो बहनें – फातिमा और जुबैदा – भी शामिल हैं। जैनब स्वयं शाम को उर्दू पढ़ाती हैं और संस्थान का संपूर्ण प्रबंधन देखती हैं। उनके पति हाजी खान खेती-बाड़ी के साथ मदरसे की गतिविधियों में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
हाजी खान का कहना है, “हमारा उद्देश्य बच्चियों को मुख्यधारा से जोड़ना है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।”