
कहनें कों आज का मनुष्य शैक्षिक युग में जीवन जी रहा हैं, परन्तु शिक्षा के वास्तविक अर्थ, उद्देश्य और महत्व से मानों समझौता कर लिया हैं?
हम मिथकों से बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं मिथक महज़ मन की शांति एवं आत्मसंतुष्टि का पर्याय मात्र हैं !मिथकों के दौर में सच खोजना जंग जीतने जैसा हैं।हम सूचनाओं के दौर में जी रहे हैं सूचनाएं सत्य हों यह आवश्यक भी नहीं हैं। सत्य को परखने के लिए ज्ञान की कसौटी पर कसना होता हैं जिसमें सत्यता, विश्वास एवं प्रमाणिकता हों वहीं ज्ञान हैं और जो ज्ञान हैं वहीं सच हैं। सत्यं शिवम् सुन्दरम की परिकल्पना भी यही हैं। वर्तमान में अघोषित अंधकार को हीं प्रकाश से आलोकित मान रहे हैं। ज्ञान कहता हैं मानना अज्ञान हों सकता हैं परन्तु जानना कभी अज्ञान नहीं हो सकता हैं। धर्म, दर्शन, साहित्य अध्यात्म एवं सामाजिक जीवन में अनन्त मिथक हैं परन्तु सच वो धरातल होता हैं जो कभी विचलित नहीं होता!सच हमेशा भूत, भविष्य और वर्तमान में तटस्थ रहता हैं।
दूसरों की रोशनी में यात्रा करना कष्टदायक होता हैं। तथागत बुद्ध का स्पष्ट संदेश हैं “अप्प दीपो भव”अर्थात अपना दीपक स्वयं बनो! तार्किकता, बौद्धिकता और जानने की जिज्ञासा हीं अंधकार का नाश कर सकतीं हैं। मिथक हमें हमेशा रूढ़िवादी बनाते हैं सवालों पर अंकुश लगाते हैं जबकि ज्ञान सवालों एवं प्रश्नों से निखरता हैं।जो बालक कक्षा में सवाल करते हैं वें बालक तनिक समय के लिए हंसी के पात्र हो सकतें हैं परन्तु सच्चाई यह है भविष्य में जीवन उन्हीं का हीं मुस्कराता हैं।
मिथकों का अपना निराला संसार हैं ऐसे ऐसे मिथक जीवन में भरें पड़ें हैं शायद वो कल्पना में भी सच हों? यथा पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी होना, सूरज कों सात घोड़े वाला रथ खिंचना…….. आदि इत्यादि !
मिथकों को इतना जनसमर्थन प्राप्त होता हैं कि गैलेलीयो जैसे वैज्ञानिक कों भी धर्मद्रोही बताकर मिथकों ने सजा की चौखट पर पंहुचा दिया परन्तु सच यह की भीड़ मर गई मगर गैलेलीयो आज भी जींदा हैं। मिथकों ने रंगों पर धर्मों का आवरण चढ़ाकर रंगीन संस्कृति को बदरंग कर दिया है।तब अनिवार्य हो जाता हैं सच प्रकटीकरण करें। भारत बुद्ध की धरती हैं बुद्ध के विचार, संवाद एवं संदेश मानवता का मार्गदर्शन करते रहे हैं और कर रहे हैं। दुनिया के तमाम धर्म अपनी श्रेष्ठता में लगे हैं तथा अपनी बातों को अंतिम सत्य बतलाकर पेश करते हैं, वहीं तथागत बुद्ध कहते हैं मैं भी आपकी तरह मनुष्य हूं,यह आवश्यक नहीं हैं मैं जों कहता हूं वो सच हैं आप परखें अगर सच हैं तो स्वीकारें अन्यथा ख़ारिज करें। बौद्ध काल में भारत सोने की चिड़िया था। सम्राट अशोक के काल में अखंड भारत वैश्विक पहचान रखता था। ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नालंदा, तक्षशिला, बौद्धगया जैसे विश्वविद्यालय वैश्विक ज्ञान के केंद्र थे विद्यार्थी यहां पर प्रवेश पाने के लिए लालायित एवं उत्साहित रहते थे।
जिस बुद्ध ने दुनिया का मार्गदर्शन किया और कर रहा है वहीं बुद्ध की अपनी भूमि पर बुद्ध की उपस्थिति नगण्य सी प्रतीत होती हैं?चेतनावादी जन इसका कारण भी जानते हैं परन्तु मिथकों के सामने मौन हैं। बोलने के वक्त पर चुप रहना और चुप रहने के वक्त पर बोलना मनुष्य की सबसे बड़ी विफलता हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व वैशाख पूर्णिमा को सिद्धार्थ गौत्तम का जन्म हुआ वैशाख पूर्णिमा को हीं बौद्धिवृक्ष की छांव में कैवल्य की प्राप्ति हुई और तथागत बुद्ध बने एवं वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उनका महापरिनिर्वाण हुआ इस दृष्टि से भारत भूमि पर वैशाख पूर्णिमा त्रिगुणात्मक पावन पर्व हैं, परन्तु इसे भी मिथकों भेंट चढ़ाया जा रहा हैं।हम बोद्धिवृक्ष का पूजन करते हैं परन्तु मिथकों के आवरण में ……?
लेखक जितेन्द्र कुमार बोयल भोड़की