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सदका-ए-फितर हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है – इमाम मौलाना जमील अख्तर बीकानेरी


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सदका-ए-फितर हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है – इमाम मौलाना जमील अख्तर बीकानेरी

सदका-ए-फितर हर मुसलमान मर्द व औरत पर वाजिब है - इमाम मौलाना जमील अख्तर बीकानेरी

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय पर मौलाना जमील अख्तर बीकानेरी, इमाम, मस्जिद जामे इनायत उस्मानाबाद कॉलोनी चूरू ने बताया कि ‌ माहे रमजान में फितर के लुगवी माना हैं रौजा खोलना, और सदका-ए-फितर के माना हैं रौजा खोलने का सदका, आम बोली मे यूं समझें की सदका -ए-फितर से मुराद वह वाजिब सदका है जो रमजानुल मुबारक खत्म होने पर और रौजा खुलने पर दिया जाता है, जिस साल मुसलमानों पर रमजानुल मुबारक के रौज़े फर्ज़ हुवे उसी साल नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सदका-ए-फितर अदा करने का हुकुम भी दिया।

रमजानुल मुबारक में रौज़े रखने वाले अपनी हद तक यह कौशिश करते हैं कि रमजानुल मुबारक का एहतमाम करें, और उन हुदूद और आदाब व शराइत का पूरा पूरा लिहाज़ रखों, जिनके एहतमाम की शरीअत ने ताकीद की है, ताकि हम इन्सान से बहुत सी जान बूझकर या अनजाने में को ताहियां हो जाती हैं सदका-ए-फितर की एक हिकमत यह भी है कि आदमी खुदा की राह में दिल की आमादगी से अपनी कमाई खर्च करें ताकी उन को ताहियों की तलीफ (भरपाई) हो सके, और खुदा के हुजूर रौजा शरीफ कबूल पा सके, इसके अलावा ईद के मौके पर सदका-ए-फितर देने की एक हिकमत और मसलेहत यह भी है कि सोसायटी के नादार और गरीब अफाद भी इतमिनान और कुशादगी के साथ अपने खाने पीने और पहनने ओढने की ज़रूरतें पूरी कर सकें और दूसरे मुसलमानों के साथ ईदगाह में हाज़िर हो सकें, ताकी ईदगाह का इन्तेजाम भी अजीमुश्शान हो और रास्ते मे मुसलमानों की कसरत से इस्लाम की शान व शौकत का भी इजहार हो सके।

हजरते इबने अब्बास रज़ियल्लाहु अनहु फरमाते हैं की नबी करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सदका-ए-फितर इस लिए मुक्रर फरमाया है कि वह रौजे दारों को बे हूदा कामों और बे शरमी की खताओं से पाक करदे, और नादार हाजत मंदों के खाने पीने का नज़्म हो जाए, पस जो शख्स ईद की नमाज़ से पहले सदका-ए-फितर अदा करदेगा तो वह सदका शरफे कबूल पायेगा, और जो नमाज के बाद अदा करेगा तो वह आम सदका व खैरात की तरह एक सदका होगा।

हज़रते उमर बिन शोयब रज़ियल्लाहु अनहु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आद‌मी को भेजा की मक्का के गली कूचों मे ऐलान करदे कि सदका-ए-फितर वाजिब है हर मुसलमान मर्द व औरत आजाद, गुलाम छोटे और बड़े पर दो मुद्द गंदुम या एक साअ खाना (तिरमिजी शरीफ) हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमां ने रमजान के आखिर में लोगों से फरमाया अपने रौज़े का सदका अदा करो, रसूले पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने यह सदका-ए-फितर वाजिब कार दिया है, एक साअ खजूर या जौ, या आधा साअ गंदुम हर आजाद व गुलाम मर्द व औरत और छोटे बड़े पर। (अबु दाउद शरीफ व नसाई)विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। अगर रौज़ेदार दिन भर भूखे रहकर कुछ खाते हैं तो पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है। डाइजेस्टिव सिस्टम को एक्टिव करने के लिए यह फायदेमंद मानी जाती है।

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