माह-ए-सियाम आध्यात्मिक विकास और अल्लाह के साथ जुड़ने का अच्छा मौका फरहाम (उपलब्ध) करता है। – सैयद आरिफ कमाल (इस्लामिक स्कॉलर)
माह-ए-सियाम आध्यात्मिक विकास और अल्लाह के साथ जुड़ने का अच्छा मौका फरहाम (उपलब्ध) करता है। - सैयद आरिफ कमाल (इस्लामिक स्कॉलर)

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय स्थित इस्लामिक स्कॉलर सैयद आरिफ क़माल बी.एस.सी. ,एम. ए., बी. एड., पी. जी. डी. सी. ए., ने माहे रमजान की मुबारकबाद देते हुए कहा। इस्लामी कैलेण्डर के हिसाब से रमदान एक पाक महीना है। जिसमें पूरी दुनिया के मुस्लिम रोजा रखते हैं। यह महीना रूहानी पाकीज़गी, आध्यात्मिक विकास और अल्लाह के साथ जुड़ने का अच्छा मौका फरहाम करता है । रोज़ा इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से एक है। यह अल्लाह की फरमाबरदारी और आत्म नियंत्रण के लिए प्रेरित करता है। रोज़े के दौरान मुस्लिम सूर्योदय से सूर्यास्त तक खाने-पीने से परहेज़ करते हैं।
कुरान की कुछ आयात जिनमें अल्लाह अपने बन्दों को रोज़े से सम्बन्धि निर्देश दे रहा है-
- सूरह अल बकरा आयत नं. 183 ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़ा फर्ज़ किया गया है, जैसा कि तुमसे पहले के लोगों पर फर्ज़ किया गया था, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ ।
- सूरह अल बकरा आयत नं. 184 रोज़ा कुछ दिनों के लिए है। तो जो कोई तुममें से बिमार हो या सफर पर हो तो रोज़ा के उतने ही दिनों की कज़ा कर ले। (कज़ा बाद में अदा कर ले)
- सूरह अल बकरा आयत नं. 185 रमदान का महीना वह है जिसमें कुरआन नाज़िल हुआ। जो लोगों के लिए हिदायत, रोशनी और कसौटी है। जो कोई तुममें से इस महीने को देख ले तो रोज़ा रखे ।
- सूरह अल बकरा आयत नं. 187 तुम्हारे लिए रोज़े से पहले की रात में अपनी पत्नियों के पास जाना हलाल कर दिया गया है। वे तुम्हारे लिए लिबास हैं और तुम उनके लिए लिबास हो ।
- सूरह अलकद्र यह पूरी सूरह लैलतुल कद्र के बारे में है, जो रमदान की एक रात है जो हज़ार महीनों से बेहतर है।
रमदान के दौरान की अन्य गतिविधियाँ
इस महीने के दौरान तरावीह नाम की नमाज़ रात में पढ़ी जाती है। मुस्लिम कुरआन की तिलावत करते हैं और उसके मायने समझने की कोशिश करते हैं। हालांकि जकात और सदका साल में कभी भी दिया जा सकता है लेकिन ज्यादातर मुस्लिम्स रमदान के दौरान ज़कात और सदका (दान) देते हैं। जो गरीबो और ज़रूरतमंदो की मदद के लिए होता है।
रोज़ा रखने के फायदे रूहानी पाकीज़गी (आत्म शुद्धि), आध्यात्मिक विकास, स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक लाभ, रूहानी पाकीज़गी और आध्यातिमक विकास इस्लामी दर्शन में नफ्स को इन्सान का एक अहम पहलू माना जाता है। नफ़्स यानी मन जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, इर्ष्या, द्वेष जैसी वृत्तियों (नक्सियाती कमज़ोरियों) पर इन्सान काबू करता है। रोज़े के दौरान हमें अपने नफ्स को काबू में रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे खाने-पीने का परहेज़ करना, अपने गुस्से और आक्रोश पर काबू रखना इत्यादि । रोज़ा नफ्स को पाक रखने और आत्म नियन्त्रित रखने में महत्वपूर्ण साधन है।
स्वास्थ्य लाभ रोज़ा स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करने में मदद करता है। वजन कम करने में सहायक होता है क्योंकि शरीर को खाने-पीने से मिलने वाली ऊर्जा रोजे के दौरान नहीं मिल रही होती है लिहाज़ा शरीर में संचित ऊर्जा का इस्तेमाल होता है। जिस कारण वज़न कम होता है। रोज़ा शुगर (मधुमेह) के कन्ट्रोल लिए भी फायदेमंद हो सकता है। रोज़े के दौरान रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) और कोलेस्ट्रोल के स्तर में कमी आ सकती है जिससे दिल का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। कुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि रोज़े के दौरान शरीर की कैंसर कोशिकाओं को नियन्त्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है। सामाजिक लाभ रोज़े का मकसद सिर्फ खाने-पीने से परहेज़ करना ही नहीं है बल्कि यह सामाजिक बुरे कामों से भी अपने आपको दूर कर लेने का एक मौका है। मुस्लिम अपने आपको झूठ, कपट, गुस्सा, आक्रोश, बुरी नज़र और बुरे विचार, धोखाधड़ी और अन्याय आदि से दूर रखने की कोशिश करता है। रोज़े के दौरान आत्म नियंत्रण से समाज में एकता, सद्भावना और समाज में सुधार लाने में मदद मिलती है।