संविधान निर्माण में राजस्थान का योगदान, 76 वर्ष पहले इन हस्तियों के सहयोग से सजी थी सभा
भारत का संविधान 2 वर्ष, 11 माह और 18 दिन में तैयार हुआ, जिसमें राजस्थान के सदस्यों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजस्थान के सदस्यों ने संविधान के संघीय ढांचे और विविधता को समझने में अहम योगदान दिया। आइए जानते हैं निर्माण में शामिल कौन थीं ये राजस्थान की हस्तियां।

राजस्थान : देश आज अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। आज से भारत के संविधान को 76 साल पूरे हो गए। जब-जब संविधान की बात होती है तो इसके निर्माण में योगदान देने वालों का जिक्र भी जरूर होता है। भारत के इस गौरवशाली संविधान के निर्माण में कुल 2 वर्ष 11 माह और 18 दिन का समय लगा था। संविधान सभा में देश के साथ-साथ राजस्थान के सदस्यों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। उनकी भूमिका ने देश के संघीय ढांचे और विविधता को समझने और संविधान में समाहित करने में मदद की।
गणतंत्र दिवस के मौके पर संविधान और संविधान सभा की बात करना अनिवार्य हो जाता है। निर्माण में ₹63,96,729 का खर्च हुआ। जब संविधान को अंतिम रूप दिया गया, तो इसमें कुल 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां शामिल थीं। शुरुआत में संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे। देश विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर 1947 को किया गया, जिसके तहत सदस्यों की संख्या 299 हो गई, इनमें विभिन्न प्रांतों से और 70 देशी रियासतों के सदस्य थे। आइए जानते हैं इस सूची में राजस्थान के किन सदस्यों का नाम आता है।
मुकुट बिहारी लाल भार्गव
मुकुट बिहारी लाल भार्गव, जो 30 जून 1903 को राजस्थान के उदयपुर रियासत में जन्मे थे, ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. और एल. एल. बी. की पढ़ाई की और 1927 में बेवर में वकालत शुरू की। सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, और महात्मा गांधी के प्रभाव में वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए। 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और 1945 में केंद्रीय असेम्बली और 1946 में संविधान सभा के सदस्य चुने गए। स्वतंत्रता के बाद वे अजमेर से तीन बार लोकसभा सांसद बने। 18 दिसंबर 1980 को उनका निधन हो गया और 2003 में उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
वी टी कृष्णमाचारी
वी टी कृष्णमाचारी, जिनका पूरा नाम राय बहादुर सर वंगल तिरुवेंकटाचारी कृष्णमाचारी था, 8 फरवरी 1881 को मद्रास में जन्मे थे। वे भारतीय प्रशासनिक सेवक और प्रशासक रहे। उन्होंने 1927 से 1944 तक बड़ोदा राज्य के दीवान के रूप में काम किया। इसके बाद, 1946 से 1949 तक वे जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री रहे। विभाजन के समय, उन्हें हरेन्द्र कुमार मुखर्जी के साथ भारतीय संविधान सभा का उपाध्यक्ष चुना गया। वे 1961-1964 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे और भारतीय संविधान निर्माण में अहम भूमिका अदा की।
हीरालाल शास्त्री
पं. हीरालाल शास्त्री, जो राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री और वनस्थली विद्यापीठ के संस्थापक थे, भारतीय संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नेताओं में शुमार हैं। उन्होंने संविधान सभा में सक्रियता से भाग लिया और देशी रियासतों को परिषद में भागीदार बनाने की पहल की। उन्हें ‘राजस्थान का लौह पुरुष’ कहा जाता है। पं. शास्त्री का मानना था कि संविधान में समानता के अधिकार सुनिश्चित किए जाएं और सभी के मतों और अधिकारों का समान रूप से सम्मान किया जाए। उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र के निर्माण में अविस्मरणीय है।
ठाकुर जसवंत सिंह
ठाकुर जसवंतसिंह, बीकानेर रियासत के प्रधानमंत्री रहे और भारतीय संविधान सभा के सदस्य थे। उन्होंने राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में महाराजा गंगासिंह के साथ भाग लिया था। वे पहले मनोनीत विधायक थे और बाद में राज्यसभा के सदस्य बने। संविधान निर्माण के दौरान उनकी तार्किक प्रस्तुतिकरण और स्पष्टवादिता से पंडित नेहरू काफी प्रभावित हुए। बीकानेर विधानसभा में भी उनका सक्रिय प्रतिनिधित्व था और उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका नाम संविधान निर्माण में बीकानेर के योगदान के रूप में याद किया जाता है।
राज बहादुर
राज बहादुर, जिन्हें बाबूजी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे और पूर्वी राजस्थान का एकमात्र प्रतिनिधि थे। उन्होंने एल.एल.बी. की पढ़ाई की और कानून में रुचि रखते हुए विशेष रूप से बेगार प्रथा को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई। बाबूजी ने संविधान सभा में यह सुझाव रखा कि बेगार प्रथा को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 में प्रतिबंधित किया जाए, जिसे बाद में कानूनी रूप से दंडनीय अपराध घोषित किया गया। इसके बाद वे केंद्रीय मंत्री भी बने और कानून के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता से देश को योगदान दिया।
माणिक्यलाल वर्मा
माणिक्यलाल वर्मा, जो राजस्थान राज्य बनने के पहले इसके प्रधानमंत्री थे, भारत की संविधान सभा के सदस्य भी रहे। उन्होंने 1938 में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की और बिजोलिया किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो दुनिया का सबसे लंबा अहिंसक आंदोलन था। उन्होंने ‘मेवाड़ का वर्तमान शासन’ नामक पुस्तक लिखी और ‘पंछीड’ नामक गीत रचकर किसानों में जोश भरा। उनका संघर्ष सामंती अत्याचारों के खिलाफ था और उनके योगदान के कारण उन्हें 1965 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
बलवन्त सिंह मेहता
बलवन्त सिंह मेहता, राजस्थान के उदयपुर में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे। 1915 में वे राजनीतिक जागृति के प्रेरक बने और 1938 में प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष रहे। उनका महत्वपूर्ण योगदान भारत छोड़ो आंदोलन में था, जिसके बाद वे संविधान सभा के सदस्य बने। उन्होंने भारत सेवक समाज की अध्यक्षता की और 1943 में उदयपुर में वनवासी छात्रावास की स्थापना की। उनका जीवन समाज की सेवा और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति समर्पित था, और उनके प्रयासों से राजस्थान में एक नई दिशा मिली।