बड़ी तैयारी: प्रस्ताव पर 36 सांसदों के हस्ताक्षर
जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग लाएगा विपक्ष
नई दिल्ली : विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में विवादास्पद बयान को लेकर विपक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस देने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए सांसदों के हस्ताक्षर लिए जा रहे हैं। राज्यसभा सांसद और वकील कपिल सिब्बल के प्रस्ताव पर अलग-अलग पार्टियों से 36 विपक्षी सांसदों ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। कई और सांसदों से संपर्क किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर जस्टिस शेखर यादव का वीडियो वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहले ही संज्ञान ले चुका है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिन सांसदों ने अब तक हस्ताक्षर किए हैं, उनमें कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश, विवेक तन्खा, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले, सागरिका घोष, राजद के मनोज कुमार झा, सपा के जावेद अली खान, सीपीआइ (एम) के जॉन ब्रिटास और सीपीआइ के संदोष कुमार शामिल हैं। नोटिस में संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 124(5) के साथ न्यायाधीश (जांच) अधिनियम की धारा 3(1)(बी) के तहत जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की जाएगी। गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता पर आयोजित कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कहा था, ‘मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है। देश यहां रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। यहां बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी सुनिश्चित करने वाली बात ही स्वीकार की जाएगी।’
महाभियोग की प्रक्रिया
- न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के मुताबिक किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत लोकसभा में पेश की जाती है तो उसे कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर वाले प्रस्ताव के जरिए पेश किया जाना चाहिए। राज्यसभा में पेश किए जाने पर 50 सांसदों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
- महाभियोग के प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता के बहुमत के अलावा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो- तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए।
- सदन का पीठासीन अधिकारी नोटिस को मंजूर या नामंजूर कर सकता है। मंजूर होने पर तीन सदस्यीय न्यायिक कमेटी जांच करती है कि क्या यह महाभियोग के लिए उपयुक्त मामला है। कमेटी में सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के एक-एक जज शामिल होते हैं।
प्रस्ताव पास होने के बाद क्या होता है…
किसी जज के खिलाफ महाभियोग पास होने के बाद राष्ट्रपति की ओर से उसे पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इस संवैधानिक कार्रवाई के बाद कोई जज सरकारी सेवा में नहीं रह सकता। इस प्रक्रिया के बाद आपराधिक मामले की जांच सामान्य रूप से जारी रहती है। कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ जब महाभियोग प्रस्ताव आया था तो उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया था।