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देश के आखिरी सती कांड में 36-साल बाद आया फैसला:महिमामंडन करने के 8 आरोपी बरी, 45 लोगों पर हुई थी एफआईआर


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देश के आखिरी सती कांड में 36-साल बाद आया फैसला:महिमामंडन करने के 8 आरोपी बरी, 45 लोगों पर हुई थी एफआईआर

देश के आखिरी सती कांड में 36-साल बाद आया फैसला:महिमामंडन करने के 8 आरोपी बरी, 45 लोगों पर हुई थी एफआईआर

जयपुर : राजस्थान में 36 साल पहले सीकर जिले के दिवराला गांव में हुए रूप कंवर सती महिमामंडन कांड में बुधवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस मामले में 8 आरोपियों को बरी कर दिया है। मामले में कुल 45 आरोपी थे। इनमें से 25 आरोपियों को कोर्ट ने 2004 में बरी कर दिया था। 4 फरार हैं। वहीं मामले के शेष आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है।

दरअसल, 4 सितंबर 1987 को दिवराला गांव में 18 साल की रूप कंवर अपने पति की चिता पर जलकर सती हो गई थीं। भारत में सती होने का यह आखिरी मामला था।

रूप कंवर के सती होने के बाद दिवराला में उनकी तेरहवीं पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया गया था। इसमें लाखों लाेग शामिल हुए थे। एक साल बाद रूप कंवर की पहली बरसी पर सती का महिमामंडन करते हुए जुलूस निकाला गया था। तब 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था, क्योंकि 158 साल पहले दिसंबर 1829 में ब्रिटिश राज के दौरान ही सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

सती महिमामंडन मामले में फैसला आने के बाद कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद बरी हुए 8 लोग और उनके वकील।
सती महिमामंडन मामले में फैसला आने के बाद कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद बरी हुए 8 लोग और उनके वकील।

कोर्ट ने दिया संदेह का लाभ

बुधवार को जयपुर महानगर द्वितीय की सती निवारण स्पेशल कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। आरोपियों के वकील अमनचैन सिंह शेखावत और संजीत सिंह चौहान ने बताया- आज कोर्ट ने महेंद्र सिंह, श्रवण सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, दशरथ सिंह, लक्ष्मण सिंह और भंवर सिंह को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सती निवारण अधिनियम की धारा-5 में पुलिस ने सभी को आरोपी बनाया है।

यह धारा कहती है कि आप सती प्रथा का महिमामंडन नहीं कर सकते हैं। लेकिन, इस धारा में आरोप साबित करने के लिए जरूरी है कि धारा-3 के तहत सती होने की कोई घटना हुई हो। लेकिन, पुलिस ने पत्रावली में सती होने की किसी भी तरह की घटना का कोई जिक्र नहीं किया।

इसके अलावा मामला दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों और गवाहों ने भी इन आरोपियों की पहचान नहीं की। ऐसे में सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

पति माल सिंह के साथ रूप कंवर। (फाइल फोटो)
पति माल सिंह के साथ रूप कंवर। (फाइल फोटो)

18 साल की उम्र में हुई थीं सती

रूप कंवर (18) जयपुर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी बाल सिंह राठौड़ की सबसे छोटी बेटी थी। रूप कंवर की शादी सीकर के दिवराला गांव के माल सिंह से 17 जनवरी 1987 को हुई थी।

3 सितंबर 1987 को माल सिंह (24) के पेट में अचानक दर्द उठा। इलाज के लिए सीकर लेकर गए, वहां 4 सितंबर को उनकी मौत हो गई। माल सिंह की मौत के बाद उसकी चिता पर रूप कंवर भी जलकर सती हो गई थीं।

बताया जाता है कि उस वक्त रूप कंवर पर सती होने के लिए दबाव बनाया गया था। हालांकि ग्रामीणों ने कहा कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई थीं।

रोक के बाद भी चुनरी महोत्सव मनाया

राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी। कुछ ही दिनों में पूरे राजस्थान में यह चर्चा का विषय बन गया।

कई संगठन सती प्रथा का महिमामंडन बताते हुए इसके विरोध में उतरे। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम इस समारोह को रोकने के लिए चिट्ठी लिखी।

15 सितंबर को जस्टिस वर्मा ने चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन माना। सरकार को आदेश दिया कि ये समारोह किसी भी स्थिति में न हो।

रोक के बावजूद दिवराला में 15 सितंबर की रात से ही लोग जमा होने लगे। बताते हैं 10 हजार की आबादी वाले गांव में एक लाख से ज्यादा लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हो गए थे। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद पुलिस गांव से दूर ही रही। लोगों ने तय समय 16 सितंबर को सुबह 11 बजे से पहले ही सुबह 8 बजे चुनरी महोत्सव मना लिया। इसमें कई पार्टियों के विधायक भी शामिल हुए थे।

राजस्थान सरकार को बनाना पड़ा था कानून

  • रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना होने पर तत्कालीन सीएम हरिदेव जोशी ने गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी।
  • राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमामंडन को लेकर एक अध्यादेश लेकर आई, जिसे सीएम हरिदेव जोशी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी।
  • इसमें किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया था। ऐसे मामलों को महिमामंडित करने वालों को 7 साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान था।
  • अध्यादेश पारित होने के बाद तत्कालीन राज्यपाल बसंत दादा पाटिल ने राजस्थान सती निरोधक अध्यादेश 1987 पर दस्तखत कर दिए। बाद में सती (निवारण) अधिनियम को राजस्थान सरकार ने 1987 में कानून बनाया था।

बरसी पर जुलूस निकालने पर दर्ज हुआ था केस

रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर 22 सितंबर 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जुलूस निकाला था। 22 सितंबर को ही सती प्रथा का महिमामंडन करने पर थोई थाने में पुलिस ने 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

इसमें पुलिस ने कहा था कि कई लोग ट्रक में सवार होकर सत्संग भवन दिवराला से जुलूस निकालकर सीताराम जी मंदिर तक रूप कंवर के जयकारे लगाते हुए गए थे। इन लोगों ने ट्रक पर रूप कंवर की फोटो लगा रखी थी। ये लोग सती प्रथा के बैन होने के बावजूद सती का महिमामंडन कर रहे थे।

आजादी के बाद राजस्थान में सती के 29 केस हुए, रूप कंवर आखिरी थीं। रूप कंवर के सती होने की घटना विश्व में चर्चित थी। प्रदेश और देश की बदनामी हुई। इस घटना ने काफी तूल पकड़ा था।

सती मामले की जल्द सुनवाई के लिए जयपुर में सती निवारण केसाें की विशेष कोर्ट बनी। इसी मामले को लेकर यह कोर्ट बनी थी और आज यह फैसला सुनाया है।

सती का महिमामंडन करते हुए पहली बरसी पर निकाला था जुलूस

  • 17 जनवरी 1987 जयपुर की रूप कंवर की सीकर के दिवराला गांव के माल सिंह से शादी हुई थी।
  • 4 सितंबर 1987 पति की मौत, चिता पर जलकर रूप कंवर सती हो गई थीं।
  • 16 सितंबर 1987 दिवराला गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव मनाया गया।
  • 22 सितंबर 1988 पहली बरसी के मौके पर राजपूत समाज ने दिवराला से अजीतगढ़ तक जुलूस निकाला। पुलिस ने सती के महिमामंडन पर 45 लोगों पर एफआईआर दर्ज की थी।
  • 31 जनवरी 2004 कोर्ट ने 25 आरोपियों को बरी कर दिया था।
  • 9 सितंबर 2024 कोर्ट ने 8 आरोपियों को बरी किया। 4 फरार हैं। बाकी आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है।

पहले 25 आरोपी हो चुके बरी

सती निवारण केसों की विशेष कोर्ट ने 31 जनवरी 2004 को 25 आरोपियों को बरी कर दिया था। अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया था कि आरोपियों ने महिमामंडन किया। कोर्ट ने इस मामले में जिन आरोपियों को बरी किया था, उनमें राजेंद्र राठौड़, प्रताप सिंह खाचरियावास, नरेंद्र सिंह राजावत, गोपाल सिंह राठौड़, रामसिंह मनोहर, आनंद शर्मा, ओंकार सिंह, जगमल सिंह, बजरंग सिंह, प्रहलाद सिंह और सुमेर सिंह भी शामिल थे।

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