सामाजिक प्रतिष्ठा को लेकर मुझे एक वाक्या याद आता है । एक व्यक्ति की बेटी विवाह योग्य हो गई तो उसके लिए वर की तलाश में वह एक गांव गया । समाज के एक धनाढ्य परिवार के लड़का था तो वह उसके घर चला गया । लड़का पढा लिखा था । पसंद आ गया । लेकिन लड़की के पिता ने लड़के के पिता के समक्ष एक मांग रखी कि मुझे बीस हजार रूपये की जरूरत है । तो लड़के के बाप ने कहा कि आज बैंक की छुट्टी है मैं कल निकलवा कर दे दूंगा । इस पर उसने कहा कि आपकी गांव में प्रतिष्ठा व इज्जत है तो किसी से उधार लाकर दे दिजिए । इस पर लड़के के बाप ने कहा कि गांव में मुझे कोई एक पैसा उधार नहीं देता यहां तक बाजार के दुकानदार भी पहले पैसे लेते हैं । यह सुनकर बेटी का पिता उसी गांव के एक मध्यम परिवार के घर गया वहां भी लड़का विवाह योग्य था व पढ़ा लिखा था । लड़की के पिता ने वहां भी वही बीस हजार रुपए की मांग रखी तो लड़के के पिता ने कहा इतने पैसे मेरे घर में नहीं है लेकिन गांव के लोगों मे मेरी इज्जत व साख है आप दस मिनट इंतजार करें मैं अभी लेकर आता हूं । दस मिनट बाद वह व्यक्ति बीस हजार रुपए लेकर आया तो लड़की के पिता ने कहा कि आपके लड़के से मैं मेरी बेटी की शादी करूंगा आप यह पैसे रखे और विवाह की तैयारी करें क्योंकि आपकी प्रतिष्ठा व साख गांव में है ।
लेकिन आज के परिवेश में इससे उलट हो रहा है समाज में उस व्यक्ति को प्रतिष्ठित माना जाता है जिसके पास धन दौलत हो चाहे वह व्यक्ति समाज को तब्बजो न दे । इतिहास गवाह है शेखावाटी के भामाशाहों ने अनगिनत स्कूल , कालेज, अस्पताल, धर्मशाला, कुंए व बावड़ियां करवाई और सर्व समाज को समर्पित की लेकिन कभी उन्होंने बखान नहीं किया । लेकिन आधुनिक भामाशाह काम तो बाद में करते हैं लेकिन उसका सोशल मीडिया व होर्डिंग्स से प्रचार प्रसार पहले हो जाता है ।
झुंझुनूं में उपचुनाव होने है व हर जाति लामबंद हो रही है लेकिन दुर्भाग्य कि विप्र समाज झाड़ू के तिनके के समान बिखरा पड़ा है जिसका फायदा अन्य समाज के लोग उठा रहे हैं । विप्र समाज एक तरह से यूज एंड थ्रो वाली स्थिति में है । उसका कारण है कि समाज में उपरोक्त वाक्या के अनुरूप प्रतिष्ठा के मापदंड तय हो रहे हैं । समाज में जो वरिष्ठ व सर्वमान्य महानुभाव है उसकी अनदेखी की जा रही है और उसी का खामियाजा समाज भुगत रहा है और आने वाले समय में भी भुगतेगा ।
राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक