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गड्ढे से होते हुए बोरवेल में फंस गई थी नीरू:20 फीट की गहराई के बाद कच्चा था, ​​​​​​ढह नहीं जाए इसलिए बनानी पड़ी सुरंग


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गड्ढे से होते हुए बोरवेल में फंस गई थी नीरू:20 फीट की गहराई के बाद कच्चा था, ​​​​​​ढह नहीं जाए इसलिए बनानी पड़ी सुरंग

गड्ढे से होते हुए बोरवेल में फंस गई थी नीरू:20 फीट की गहराई के बाद कच्चा था, ​​​​​​ढह नहीं जाए इसलिए बनानी पड़ी सुरंग

बांदीकुई (दौसा) : बोरवेल में 17 घंटे तक फंसी रही नीरू अब घर लौट चुकी है। नीरू को बचाने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और प्रशासन ने अपनी फोर्स लगा दी थी। यह हादसा बुधवार (18 सितंबर) शाम 5 बजे दौसा जिले के बांदीकुई के पास जोधपुरिया गांव में हुआ था। गुरुवार (19 सितंबर) सुबह 10 बजे उसे सकुशल निकाल दिया गया। लेकिन, इस हादसे के बाद परिवार डरा हुआ है। मां अपनी 2 साल की बच्ची को गोद से नहीं उतार रही है। बार-बार यही कह रही है कि अब इसे कभी अकेला नहीं छोडूंगी।

नीरू के लिए 17 घंटे किसी खतरे से कम नहीं थे। जिस बोरवेल में वो फंसी थी, उसके 20 फीट बाद केवल मिट्टी थी। यही कारण था कि गड्ढे से गिरते हुए वह बोरवेल में फंस गई थी। उसे बचाने के लिए 12 से ज्यादा बार प्रयास किए गए और आखिर 13वें प्रयास में उसे निकाल लिया गया। हालांकि डॉक्टर्स का कहना है कि बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है।

पढ़िए कैसे बारिश के बीच नीरू को 27 फीट गहरे बोरवेल से निकाला गया….।

मासूम नीरू को सकुशल निकालने के बाद एनडीआरएफ के मेंबर्स ने कुछ इस तरह खुशी जाहिर की।
मासूम नीरू को सकुशल निकालने के बाद एनडीआरएफ के मेंबर्स ने कुछ इस तरह खुशी जाहिर की।

कच्चा था बोरवेल, गड्ढे से गिरते हुए बोरवेल में आ गई थी बच्ची: एनडीआरएफ एनडीआरएफ के अधिकारी योगेश मीणा ने बताया- हमने 18 सितंबर को रात 9:30 बजे पहुंचते ही मौका स्थिति देखी तो पता चला कि बोरवेल में केवल 20 फीट तक एक प्लास्टिक पाइप लगाया हुआ है। बचा हुआ बोरवेल कच्चा था। इसकी गहराई परिजनों ने करीब 600 फीट बताई। बच्ची बोरवेल के पास बने गड्ढे में गिरी जरूर, लेकिन करीब 27 फीट पर गड्ढे और बोरवेल का सुराख मिल गया। बच्ची गड्ढे से होते हुए बोरवेल में इसी जगह फंस गई। बच्ची के पैर 28 फीट पर थे। जिसके बाद हमने बोरवेल में से रिंग डालकर बच्ची को निकालने का प्रयास किया, लेकिन बच्ची रिंग में लॉक नहीं हुई। नीचे का बोरवेल कच्चा होने के कारण हम बड़ी रिंग नहीं डाल पा रहे थे। अगर ऐसा करते तो बोरवेल ढहने का खतरा था।

बच्ची नीरू को निकालने के बाद बांदीकुई अस्पताल लाया गया। जहां उसको डॉक्टरों ने निगरानी में रखा।
बच्ची नीरू को निकालने के बाद बांदीकुई अस्पताल लाया गया। जहां उसको डॉक्टरों ने निगरानी में रखा।

जलदाय विभाग से पाइप मंगवाए गए इसी बीच 3 जेसीबी और एक एलएंडटी से 70 फीट की दूरी से खुदाई की जा रही थी। 70 फीट दूरी से स्लैब में गड्ढा बनाते हुए लाया गया। जिसे बोरवेल से 20 फीट पहले ही रोक दिया। इस गड्ढे को 31 फीट गहरा किया गया। हमें यहां से 20 फीट लंबा और कम से कम ढाई फीट चौड़ा पाइप डालना था। सुरंग के लिए पाइप की जरूरत के बारे में हमने प्रशासन को पहले ही बता दिया था। इसके बाद जलदाय विभाग से बातचीत कर पाइप की व्यवस्था की गई। सुबह करीब 6 बजे पाइप लगाने का काम शुरू हुआ। इसमें करीब सवा तीन घंटे का समय लगा। पाइप के जरिए हम बच्ची के पैरों के बिल्कुल नीचे पहुंच गए। यहां से रेस्क्यू टीम के दो लोग पाइप से अंदर गए और सावधानीपूर्वक 10 बजकर 10 मिनट पर बच्ची को निकाल लाए। इस प्रक्रिया में समय जरूर लगा, लेकिन हमने सेफ्टी से कोई समझौता नहीं किया। इसी कारण हमने सफलता प्राप्त की।

12 बार प्रयास किए, एक बार फंसा था बच्ची का हाथ रात 2 बजे तक एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने बच्ची को बाहर निकालने के लिए देसी जुगाड़ एंगल सिस्टम का उपयोग किया। इसके बाद लालसोट से आई टीम ने रात 2 से सुबह 5 बजे तक लगभग 10 बार एंगल सिस्टम का इस्तेमाल करके बच्ची को निकालने की कोशिश की, लेकिन फिर भी हम सफल नहीं हो पाए। इस बीच रात 3 बजे एक बार बच्ची ने अपना हाथ फंसाया, लेकिन जब टीम ने उसे निकालने का प्रयास किया, तो उसने तुरंत अपना हाथ बाहर निकाल लिया। इस तरह हमने कुल 12 प्रयास किए।

बोरवेल के पास में ही दो फीट चौड़ा गड्ढा हो गया था। बच्ची इसी गड्ढे में गिरी और नीचे जाकर बोरवेल में फंस गई।
बोरवेल के पास में ही दो फीट चौड़ा गड्ढा हो गया था। बच्ची इसी गड्ढे में गिरी और नीचे जाकर बोरवेल में फंस गई।

बरसात भी बनी परेशानी रेस्क्यू के दौरान 18 सितंबर को रात में करीब 4 से 5 बार बरसात हुई। 19 सितंबर को सुबह भी बरसात होती रही। ऐसे में बोरवेल के ऊपर टेंट लगाकर ढका गया था। खुदाई के दौरान बरसात होने के कारण कई बार 10 से 15 मिनट काम रोकना पड़ा।

वहीं इस रेस्क्यू ऑपरेशन में तीन जेसीबी, एक एलएंडटी मशीन और एक ट्रैक्टर का सहयोग लिया गया। नगर पालिका की ओर से इन वाहनों के लिए डीजल की व्यवस्था कर दी थी। हाथों-हाथ इन वाहनों में डीजल भरा जा रहा था। पूरे रेस्क्यू में करीब 300 लीटर डीजल खर्च हो गया।

मां बोली- आधे घंटे तक ढूंढा, बोरवेल से रोने की आवाज आई तो चिल्लाते हुए दौड़ी मां कविता गुर्जर ने बताया- बच्ची घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेल रही थी। खेलते-खेलते वह कहीं चली गई। नीरू काफी देर तक नहीं आई, तो मैं ढूंढने के लिए निकली। मैंने करीब 25 मिनट आसपास और खेतों में ढूंढा। लोगों के घरों में जाकर पूछताछ की। जिन बच्चों के साथ खेल रही थी, उनसे भी पूछा तो वो कुछ बता नहीं पाए। नीरू के नहीं मिलने पर मैं थोड़ी दूर बोरवेल के पास पहुंची। यहां मुझे नीरू के रोने की आवाज आई। इसके बाद मैंने चिल्लाकर परिवार और आसपास के लोगों को बुलाया, जिन्होंने पुलिस को सूचना दी।

लोहे के एंगल के साथ केला और चॉकलेट रस्सी से गड्ढे में डाले गए ताकि बच्ची उन्हें लेने के लिए एंगल में हाथ फंसा ले और उसे ऊपर खींचा जा सके।
लोहे के एंगल के साथ केला और चॉकलेट रस्सी से गड्ढे में डाले गए ताकि बच्ची उन्हें लेने के लिए एंगल में हाथ फंसा ले और उसे ऊपर खींचा जा सके।
जलदाय विभाग से 20 फीट लंबा और ढाई फीट चौड़ा पाइप मंगवाया गया।
जलदाय विभाग से 20 फीट लंबा और ढाई फीट चौड़ा पाइप मंगवाया गया।

बारिश के कारण बोरवेल के पास हो गया था गड्‌ढा

पिता राहुल गुर्जर ने बताया कि हमारे घर से 150 मीटर दूर 600 फीट गहरा बोरवेल है। इस बोरवेल में 4 साल पहले पानी खत्म हो गया था। इसके बाद इस पर ढक्कन लगा दिया और बंद कर दिया। जहां बोरवेल है, उस खेत में बाजरा बो रखा था। इस बार अच्छी बारिश हुई है। पता नहीं कब पानी से बोरवेल के पास इतना गहरा गड्ढा हो गया। इन दिनों बोरवेल की तरफ भी आना जाना नहीं था। इसलिए पता नहीं चल पाया। 18 सितंबर को शाम करीब 5 बजे बच्ची गांव के 3-4 साल के बच्चों के साथ खेल रही थी। इसी दौरान खेलते हुए बोरवेल की तरफ चली गई और गिर गई।

सूचना पर प्रशासन तुरंत मौके पर पहुंच गया। नगरपालिका की ओर से भेजी गई तीन जेसीबी और ट्रैक्टर की मदद से खुदाई शुरू कर दी। इस बीच करीब पौने सात बजे बोरवेल में कैमरा डाला गया, जिसमें नीरू की हलचल दिखी। बच्ची के दिखने के बाद अब बस ये तमन्ना थी कि जल्दी ये बाहर आ जाए। इस बीच बच्ची के लिए दूध, केला और चॉकलेट बोरवेल में भेजा गया था। ऑक्सीजन भी पाइप के जरिए नीचे भेजी जा रही थी। करीब 5 सिलेंडर पूरे घटनाक्रम के दौरान काम आए। करीब 17 घंटे बाद जब नीरू बाहर निकली तो हमारी जान में जान आई। प्रशासन के तुरंत प्रयास करने के कारण बच्ची सकुशल बच पाई है। मैं सभी टीमों को धन्यवाद देता हूं, इन्हीं की वजह से मेरी बच्ची आज हमारे बीच में है।

तीन जेसीबी और एक एलएंडटी के जरिए खुदाई की गई।
तीन जेसीबी और एक एलएंडटी के जरिए खुदाई की गई।

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