कायमखानी इतिहास एवम् शौर्य
कायमखानी इतिहास एवम् शौर्य

कायमखानी इतिहास एवम् शौर्य : 24 अगस्त 2024 को विजयनगर (भीलवाड़ा) में नेशनल हाईवे स्थित होटल तिरंगा में एसपी अरशद अली खान आईपीएस के स्वागत समारोह के अवसर पर मुझे भी अपनी किताब कायमखानी इतिहास एवम् शौर्य उनको भेंट करते वक्त हर्ष हो रहा था कि अच्छी शिक्षा पाकर कायमखानी हर क्षेत्र में कौम का नाम रोशन कर रहे हैं। मेरी दुआ है कि मालिक उनका रुतबा बनाए रखें और प्रमोशन के द्वारा आगे बढ़ने के बेहतरीन अवसर प्रदान करें।
मेड़ता इलाके के तमाम मोअजीज कायमखानी सरदारों का शुक्र गुजार हूं कि मुझे अपनी किताब और कायमखानी इतिहास पर बोलने का अवसर मिला। यकीनन आज के कायमखानी सरदारों और नो जवानों को इस बात का इल्म होना चाहिए कि राणा कर्मचंद चौहान के सन 1356 ई में इस्लाम धर्म कबूल करने पर कायम खां बनने, फिर उनके दो भाइयों द्वारा भी मुसलमान बनने की ऐतिहासिक घटना के सबब ही कायमखानी जाति का प्रादुर्भाव हुआ।
फिरोजशाह तुगलक के शासन काल से लेकर सन 1731 ई तक का समय कायमखानी जाति के लिए गोल्डन पीरियड रहा है । उस दौर का वृतांत नवाब कायम खां के हवाले से फारसी और उर्दू की किताबों में खूब मिलता है। हांसी हिसार, चरखी दादरी, नारनौल के बाद झुंझुनूं वाटी और फतेहपुर वाटी में कायमखानियों की 282 वर्षों तक धाक जमी रही। कैड और डीडवाना भी इसी खानदान के प्रभाव में रहा है। उस दौर के कायमखानी नवाबों के राजपाट के साथ-साथ रिश्तों का जिक्र करें तब मालूम होता है कि उच्च घरानों में राव जोधा, बहलोल लोदी, राव लूणकरण, मेवाड़ के राणा, शेरशाह सूरी, बादशाह अकबर, शाहजहां तक के बड़े नाम शामिल हैं। इतने वर्षों तक अपने दम पर राज कायम रखने पर भी भारत के मध्यकालीन इतिहास का गहरा मुताला (विस्तृत अध्ययन) करने पर आप कहीं-कहीं इन नवाबों और उस दौर के कायमखानी सिपहसालारों का जिक्र किसी संदर्भ में पढ़ सकते हैं पर किसी पाठ्यक्रम में शामिल पूर्ण चैप्टर शायद ही ढूंढ पाएं, कारण कि मध्यकालीन भारत का इतिहास और आधुनिक भारत का इतिहास दोनो में काफी बदलाव देखने को मिलता है।
मैंने वीर विनोद में श्यामलदास, बीकानेर के ओझा, फरिश्ता, मुहनोत नैनसी, झाबर मल शर्मा अभिनंदन ग्रंथ, सीकर और खेतड़ी का इतिहास, डाo दशरथ शर्मा को समीक्षक के तौर पर और गोपीनाथ शर्मा को राजस्थान का इतिहास में, अबुल फजल, रतन लाल शर्मा, सिंथिया टैबलेट, मुंशी हरदयाल, रमेश चंद्र गुणार्थी, आसोपा, और दस बारह राजपूत लेखकों को पढ़ा है। इन सभी के अलावा भी सैंकड़ों किताबों से लगभग 1000 से ज्यादा संदर्भ कौम के इतिहास और शौर्य पर दिए गए हैं, इनमें मिलिट्री हिस्ट्री का समावेश करते हुए क़ायमखानियों की शोहरत, शहादत और शौर्य पर ठोस सामग्री पढ़ने को मिलती है। मेरा अनुरोध रहा है कि कौमी इतिहास पर जरूरी है कि सेमिनार होने चाहिएं ताकि इस विषय पर विस्तृत चर्चा के बाद इंसाफ के लिए इतिहास और पाठ्यक्रम में जगह बनाई जाए। शहीदों के नाम स्टेट और जिला स्तर के स्मारकों पर अंकित करवाने हेतु प्रयास जरूरी हैं। होटल तिरंगा पर याद करने के एवज आयोजन करता मोहम्मद खान और मेवाड़ के उनके साथियों का शुक्रिया।
लेखक लियाकत