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जेडीए और निगम:पहला वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट मानसरोवर स्टोन पार्क में लगाया, सीवरेज के पानी को साफ कर पौधों तक पहुंचाया


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जेडीए और निगम:पहला वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट मानसरोवर स्टोन पार्क में लगाया, सीवरेज के पानी को साफ कर पौधों तक पहुंचाया

जेडीए और निगम:पहला वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट मानसरोवर स्टोन पार्क में लगाया, सीवरेज के पानी को साफ कर पौधों तक पहुंचाया

जयपुर : राजस्थान नगरीय आधारभूत विकास परियोजना (आरयूआईडीपी) ने मानसरोवर के स्टोन पार्क में नई तकनीकी से स्मॉल एसटीपी लगाया है। 50 किलोलीटर क्षमता के इस प्रोजेक्ट को वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (डब्ल्यूडब्लयूटीपी) नाम दिया गया है। इसमें पार्क के पास से ही गुजर रही सीवर लाइन से गंदा पानी लेकर उसे द्वितीय श्रेणी शोधित किया जा रहा है।

इसके बाद पेयजल के समान साफ इस पानी को ड्रीप तकनीकी से पेड़ व पौधे को दिया जा रहा है। प्रोजेक्ट की लागत करीब 70 लाख आई है, जबकि इससे पहले एक एमएलडी का एसटीपी लगाने पर 4 करोड़ रुपए का खर्च आता था। यही नहीं आरयूआईडीपी ने इस तकनीकी का 20 साल के लिए भारत सरकार से पेटेंट भी करवा लिया है।

शहर में 1127 छोटे-बड़े पार्क हैं। जिन पर हर साल 5 करोड़ रुपए मेंटेनेंस के नाम पर खर्च किए जाते हैं। पार्क में टयूबवेल खराब हो जाए तो पानी का छिड़काव बंद हो जाता है और लाखों रुपए के पौधे जल कर नष्ट हो जाते हैं। हर साल करीब 20 पार्कों में ऐसा होता है, लेकिन नई तकनीकी से लगाए गए डब्ल्यूडब्ल्यूटीपी प्रोजेक्ट से पार्क में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से हर हिस्से और पेड़ पौधे तक पानी पहुंचाया जा सकेगा।

यह प्रोजेक्ट जयपुर के सभी पार्कों में लगाया जाता है तो ट्यूबवेल का उपयोग नहीं करना होगा और 4 से 5 लाख का खर्च भी बचेगा। इससे ग्राउंड वाटर का जल स्तर नीचे भी नहीं जाएगा और आगामी वर्षा में रिचार्ज हो जाएगा। जयपुर में कारगर होने के बाद इसे राजस्थान के सभी पार्कों के लगाया जा सकता है।

तकनीक मुफ्त मिलेगी, पर स्ट्रक्चर का खर्च खुद उठाना होगा

इस तकनीक से शोधित पानी का स्तर काफी हद तक सुधरा गया है, क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार का केमिकल का उपयोग नहीं किया गया। यह ट्रीटमेंट प्लांट आधुनिक एसबीआर तकनीक से बनाया गया है, जो कि पूर्व में संचालित एसटीपी से बेहतर परिणाम देगा। इसलिए इन्हें शहरी व ग्रामीण जलमल शोधन में उपयोग में लिया जा सकता है। शोधित जल का उपयोग पार्क में सिंचाई के लिए किया जा रहा है। आरयूआईडीपी, प्रीफेब्रीकेटेड मॉड्यूल जिसे डल्ब्यूडब्लयूटीपी नाम दिया है, जिसे सभी पार्कों में लगाने की तैयारी कर रही है। इस पेटेंट को निशुल्क उपलब्ध कराया जाएगा।

10 नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर आविष्कार की श्रेणी में आया

तकनीक के प्रमुख आविष्कारक एवं आरयूआईडीपी के मुख्य अभियंता एवं अतिरिक्त परियोजना निदेशक (द्वितीय) डॉ. हेमन्त कुमार शर्मा ने बताया कि इस तकनीक में विशेष प्रकार का अद्वितीय बायो रिएक्टर विकसित किया गया है, जिसमें एनारोबिक, एनोक्सिक, माइक्रोएरोफिलिक एवं एरोबिक डाइजेशन एक ही बायो रिएक्टर में किए जाते हैं। इसलिए इसे नई श्रेणी में पेटेंट मिला है। साथ ही में विशेष प्रकार के सूक्ष्म जीवाणुओं को ट्यूब डेक सेटलर तहत नये प्रकार से प्रक्रिया का क्षमता संवर्धन किया जाता है। साथ ही एक विशेष प्रकार का साइनोसॉइडल फ्लो पैटर्न विकसित किया गया है, जिससे यह अविष्कार की श्रेणी में आ गया है।

आरयूआईडीपी ने सीवरेज ट्रीटमेंट की इस नई तकनीकी में वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के मूलभूत सिद्धांतों का उपयोग किया है। इस तकनीक का आविष्कार करने वालों में आईएएस कुमार पाल गौतम, इंजीनियर डॉ. हेमंत कुमार शर्मा व इंजीनियर अरुण व्यास का नाम शामिल है। इसके साथ ही आरयूआईडीपी राज्य का पहला ऐसा इंजीनियरिंग विभाग बन गया है, जिसने किसी आविष्कार को खुद के नाम पेटेंट करवाया है।

आरयूआईडीपी की इंजीनियरिंग विंग ने अपने नए अविष्कार को भारत सरकार से पेटेंट भी करवा लिया

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