मौसमी बीमारियों का नया पैटर्न:दवा से उतर जाता है बुखार, लेकिन हफ्तों तक नहीं जाती खांसी-खराश, कान के संक्रमण ने बढाई परेशानी
मौसमी बीमारियों का नया पैटर्न:दवा से उतर जाता है बुखार, लेकिन हफ्तों तक नहीं जाती खांसी-खराश, कान के संक्रमण ने बढाई परेशानी

मौसमी बीमारिया : बदलते मौसम में मौसमी बीमारियों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सरकारी और निजी अस्पतालों के ओपीडी एलर्जी, इंफेक्शन, वायरल बुखार, नजला, सूखी खांसी और पेट दर्द जैसी शिकायतों लेकर आ रहे रोगियों से भरे हैं। शहर के एसएमएस और इससे जुड़े सैटेलाइट अस्पतालों में रोज ऐसे मरीज पहुंच रहे हैं, जिन्हें दवा लेने के बाद भी मौसमी बीमारियों में राहत नहीं मिल रही है।
इस बार कान गले और आंखों से जुड़े इन्फेक्शन के मरीज भी पिछले साल की तुलना में ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। एसएमएस मेडिसिन ओपीडी में रोज 1200 से 1300 मरीज वायरल फीवर, खांसी और इन्फेक्शन के आ रहे हैं।
लोगों का कहना है कि दवा से बुखार तो उतर जाता है लेकिन गले की खराश, सूखी खांसी कई हफ़्तों तक बनी रहती है। खांसी इतनी तेज होती है कि सीने और पसलियों में भी दर्द की शिकायत सामने आ रही है। डॉक्टर्स का मानना है कि शहर में ऐसी खांसी के हर दिन करीब 1000 मामले सामने आ रहे हैं।

सेल्फ मेडिकेशन और एंटी बायोटिक बनी मुसीबत
शहर के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ गणेश नारायण सक्सेना का कहना है कि इस समय एलर्जी से जुड़ी बीमारियों और वायरल के मरीज सबसे ज्यादा आ रहे हैं।
डॉ. सक्सेना का कहना है कि सेल्फ मेडिकेशन ओर एंटी बायोटिक का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल वजह है कि बीमारियां जल्दी ठीक नहीं हो रही।
लोग किसी तरह के बुखार में तुरंत सेल्फ मेडिकेशन शुरू कर एंटी बायोटिक लेना शुरू कर देते हैं। बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाणिकता या कारण के डॉक्टर्स भी स्टेरॉइड्स, एंटी बायोटिक्स दे रहे हैं। इसलिए भी दवाएं अपना असर नहीं दिखा पा रही हैं।
परागकणों से हो रही एलर्जी और इन्फेक्शन
डॉ सक्सेना का कहना है कि इन दिनों इंफेक्शन और एलर्जी का एक बड़ा कारण परागकणों का हवा में मौजूद होना है। खांसी और बुखार ठीक होने में 8 से 10 दिन लग रहे हैं।
डॉ सक्सेना ने बताया कि इस समय उनके पास जो मरीज़ आ रहे हैं उनमें 20-22 से लेकर 35-40 साल तक के युवा ज्यादा हैं, क्योंकि उनका प्रदूषण, धुंआ और इन्फेक्शन से ग्रसित लोगों के साथ एक्सपोजर ज्यादा होता है।
इसके अलावा 60 या इससे ज्यादा की उम्र के लोगों में पहले से ही अस्थमा, हाई बीपी, डायबिटीज, तम्बाकू की वजह से इस तरह के इन्फेक्शन सामने आते हैं।

खांसी के मरीजों को नहीं मिल रही राहत
एसएमएस मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक विशाल गुप्ता का कहना है कि उल्टी-दस्त के मरीज दवा लेकर 2 से 3 दिन में ठीक हो जाते हैं, लेकिन खांसी वाले मरीजों को 8 से 10 दिन का समय लग रहा है।
इन दिन जो वायरल चल रहा है उसमें तीन से चार दिन बुखार रहता है। ज़ुकाम, हाथ-पैरों में दर्द, शरीर में कमजोरी इसके आम लक्षण हैं।
सर्दी-जुकाम, आंखों से पानी आना एलर्जी की वजह से है लेकिन बुखार इन्फेक्शन के कारण है। इन दिनों एसएमएस में पेट दर्द, उलटी, दस्त, खांसी बुखार और ज़ुकाम जैसी शिकायतें लेकर आने वाले मरीजों की संख्या में 20 से 30 फीसदी इजाफा हुआ है।
इम्युनिटी कमजोर, इसलिए पड़ रहे बीमार
एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक डॉ अचल शर्मा का कहना है कि कोविड के बाद लोगों की इम्युनिटी पर कोई असर नहीं पड़ा, बल्कि जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, वे लंबे समय तक बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन की चपेट में आ जाते हैं। कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में या तो ऐसे रोगों की गंभीरता बढ़ जाती है या वो ठीक होने में सामान्य से ज्यादा वक्त लगता है।

ग्लू इयर के संक्रमण ने बढ़ाई चिंता
बदलते मौसम से सिर्फ जुकाम-खांसी, एलर्जी और बुखार खांसी के रोगी ही नहीं बढ़े हैं, बल्कि कान के संक्रमण से जुड़े मरीजों की संख्या भी बढ़ी है।
नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डॉ शुभकाम आर्य का कहना है कि इस साल उनके पास कान के इन्फेक्शन ‘ग्लू इयर’ से जुड़े मरीज़ भी आ रहे हैं जो पिछले साल तक नहीं था।
ग्लू इयर में कान में सूजन के अलावा कान के पर्दे के पीछे चिपचिपा द्रव्य इकट्ठा हो जाता है। इससे कान में भारीपन, सुन्न रहना और कम सुनाई देने की परेशानी सामने आती है। सामान्यतः 7-8 दिन में ठीक होनी वाली इस अवस्था में अभी 15 से 20 दिन तक का समय लग रहा है।
डॉ आर्य का कहना है कि कान के इंफेक्शन की वजह कोविड भी हो सकता है। कोरोना वायरस के कारण नाक और कान को जोड़ने वाली यूस्टेकियन ट्यूब पर असर भी हो सकता है।
इस बार इसके सामान्य से ज़्यादा केस आना अपने आप में शोध का विषय है। ग्लू ईयर में सर्जरी कर ग्लू निकलना पड़ रहा है।
लापरवाही पड़ सकती है भारी
डॉ शुभकाम आर्य का कहना है कि ग्लू ईयर वैसे तो बहुत खतरनाक कंडीशन नहीं है लेकिन लापरवाही बरतने पर यह अंदरूनी हिस्सों के लिए घातक हो सकता है।
इससे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। इलाज समय पर न करवाने पर यह फ्लूइड कान के अंदर की हड्डियों को गलाना शुरू कर देता है।
आमतौर पर 2 से 12 साल के बच्चों में होने वाली यह बीमारी इस बार बड़ों में भी देखने को मिल रही है जो बड़ी अजीब बात है। राष्ट्रीय टीकाकरण में मम्स का टीका शामिल न होना इसकी एक वजह हो सकती है।
संक्रमण से बचने के लिए इन बातों का रखें ख्याल
-सर्दी-जुकाम की अनदेखी न करें, सेल्फ मेडिकेशन के बजाय डॉक्टर को दिखाएं।
-एक दो दिन दवा लेने के बाद भी परेशानी दूर न हो तो डॉक्टर की सलाह से ब्लड टेस्ट करवाएं।
-अगर दवा लेने के सप्ताह भर तक खांसी नहीं जा रही है तो एक्सरे भी करवाएं।