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मातृभाषा दिवस: जब पाकिस्तानी गायक मेहंदी हसन ने मारवाड़ी से दूर की भारत-पाक की दूरी


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मातृभाषा दिवस: जब पाकिस्तानी गायक मेहंदी हसन ने मारवाड़ी से दूर की भारत-पाक की दूरी

‘खाली धड़ री कद हुवै चैरै बिन्यां पिछाण ? मायड़ भासा रै बिन्यां क्यां रो राजस्थान

1. ‘खाली धड़ री कद हुवै चैरै बिन्यां पिछाण ?
मायड़ भासा रै बिन्यां क्यां रो राजस्थान ?
अर्थ: जैसे चेहरे बिना धड़ की पहचान नहीं, वैसे ही राजस्थानी भाषा बिना राजस्थान की क्या पहचान।

2. धिक धिक दूधा धार, लाणत जोगी लोरियां
मात जण्या मक्कार, निज भाषा भाके नहीं…
अर्थ: मां ने उसे मक्कार ही पैदा किया है जो अपनी मातृभाषा नहीं बोलता। उसके दूध को धिक्कार है और उसकी लोरियां भी लानत लायक है।

सीकर : मातृभाषा को गहरा महत्व देने वाली पहली रचना प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया व दूसरी सुमेर सिंह शेखावत की है। शेखावाटी के इन दोनों ही रचनाकारों ने मारवाड़ी को मां मानते हुए साहित्य से उसकी सेवा की थी। मातृभाषा दिवस पर आज हम आपको इन दोनों की जीवन उपलब्धि के बारे में बताने जा रहे हैं।
सुमेर सिंह शेखावत: मेघमाल व मरुमंगल से बढ़ाया राजस्थानी का मान
सीकर के सरवड़ी में 1934 में जन्मे सुमेर सिंह राजस्थानी भाषा के सुघड़ कवि माने जाते हैं। भाषा- भूषा व भाव से राजस्थानी सुमेर सिंह ने अपनी रचनाओं से हमेशा मारवाड़ी का मान बढ़ाया। राजस्थान की ऋतुओं पर आधारित मेघमाल व राजस्थानी संदर्भ शोध व युग बोध का काव्य मरुमंगल जैसी कालजयी रचनाओं ने उन्हें राजस्थानी साहित्य का सच्चा संरक्षक व संवद्र्धक घोषित कर दिया। मरु मंगल के लिए उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी ने वर्ष 1984 के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया। गद्य में शेखावाटी रा सांस्कृतिक संदर्भ व पद्य में सुराज री साजिश जैसा साहित्य लिखने वाले पेशे से शिक्षक सुमेर सिंह की हिंदी में लिखी मणिमुक्ता भी उनके उच्च स्तरीय चिंतन, कल्पना व अनुभव को दर्शाता है।

कन्हैयालाल सेठिया: मायड़ भाषा बिना राजस्थान निष्प्राण
चूरू के सुजानगढ़ में 11 सितम्बर 1919 को जन्मे कन्हैयालाल सेठिया ने अपनी रचना में राजस्थानी भाषा के बिना राजस्थान को निष्प्राण व गूंगा बताया।

2008 में अपना जीवनकाल पूरा करने तक उन्होंने राजस्थानी में राजस्थानी रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूं-कूं, लीलटांस, धर कूंचा धर मंजलां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क-क्को कोड रो, लीकलकोळिया एवं हेमाणी जैसी कालजयी रचनाएं लिखी। हालांकि उन्होंने वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निग्र्रन्थ, स्वागत, देह-विदेह, आकाशा गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति एवं त्रयी जैसी हिंदी रचनाएं भी लिखी। पर राजस्थान की आत्मा उन्होंने राजस्थानी भाषा को ही माना। काव्य में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित सेठिया ‘लीलटांस‘ के लिए राजस्थानी में साहित्य अकादमी, ‘सबद’ काव्य-संग्रह के लिए राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा सर्वोच्च पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित भी हुए। मातृभाषा के प्रति उनका प्रेम इस रचना से समझा जा सकता है।
‘खाली धड़ री कद हुवै
चैरै बिन्यां पिछाण ?
मायड़ भासा रै बिन्यां
क्यां रो राजस्थान ? 

राजनीति री दीठ स्यूं
बणग्यो राजस्थान,
पण निज भासा रै बिन्यां
ओ लागै निश्?प्राण, 

भासा है संजीवणी
जे कोई हड़मान!
ल्यावो, उठ बैठो हुवै
लिछमण राजस्थान।

जब मेहंदी हसन दूर की भारत-पाक की दूरी
राजस्थानी भाषा से प्रसिद्ध पाकिस्तानी गजल गायक मेहंदी हसन का किस्सा भी जुड़ा है। शिक्षाविद् दयाराम महरिया ने बताया कि मूलरूप से झुंझुनूं के लूणां गांव निवासी मेहंदी हसन सालों पहले अपने गांव आए थे। तब उन्होंने अपने बचपन के मित्र अर्जुन से राजस्थानी भाषा में कहा कि ‘अरे यार अर्जन! तकियो तो ल्याव देखां, सिराणे लगावां‘ उनके इन शब्दों से ही भारत व पाकिस्तान की भौगालिक व सांस्कृतिक सीमा पल में ही सिमटती हुई नजर आई।

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