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Rajasthan का नवाबी शहर टोंक सचिन पायलट का गढ़, क्या कहते इस बार के समीकरण? पढ़ें रिपोर्ट


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Rajasthan का नवाबी शहर टोंक सचिन पायलट का गढ़, क्या कहते इस बार के समीकरण? पढ़ें रिपोर्ट

Rajasthan Assembly Elections 2023: राजस्थान के नबावी शहर टोंक के रनवे पर सचिन पायटल ने दोबारा उड़ान भरने के लिए सीट बेल्ट टाइट कर ली है, जानिए क्या कहते समीकरण?

Rajasthan Assembly Election Tonk City Political Analysis: राजस्थान के नबावी शहर टोंक में इन दिनों राजनीतिक पारा काफी हाई है। टोंक के रनवे पर सचिन पायटल ने दोबारा उड़ान भरने के लिए सीट बेल्ट टाइट कर ली है। पायलट के चुनाव पर्चा दाखिल करने के दौरान उमड़े जनसैलाब ने अंजाम की झलक दिखा दी है। झलक थी टोंक से लेकर सवाई माधोपुर तक पूर्वी राजस्थान में गुर्जर पट्टी की लामबंदी के आगाज की। सड़कों पर उमड़े जज्बात सचिन पायलट की राजनीतिक उड़ान में किसी ईंधन से कम नहीं।

कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट कहते हैं कि आंकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता, पब्लिक में जाना है। वोट पड़ने हैं, अंतिम निर्णय जनता का है, जिसको मदताता वोट देंगे, वो जीतेगा और हमने जो काम किया, उसके आधार पर विश्वास हासिल किया है। जो यह जज्बात होते हैं, वह एक तरफा नहीं हो सकते, दोतरफा होते हैं। उनके सुख-दुख में भागीदारी होती है। बुरे-भले में साथ देने और खून पसीने के साथ मेहनत करके विश्वास पैदा करने और जीतने हम लोग कामयाब हुए हैं। बता दें कि पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट का खासा होल्ड है। लिहाजा पायलट को उन्हीं की पट्टी पर घेरने के लिए भाजपा ने टोंक से पूर्व विधायक अजीत सिंह मेहता पर दांव खेला है। पेशे से व्यापारी अजीत सिंह 2013 में भाजपा कोटे से विधायकी जीत चुके हैं, लेकिन 2018 में वसंधुरा राजे के खासमखास युनिस खान के चलते पत्ता कट गया। बहारी बनाम स्थानीय के मुद्दे के दम पर अजीत अपना वनवास खत्म होने का दंभ ठोक रहे हैं।

टोंक का सियासी गठजोड़ बिगाड़ सकता खेल

भाजपा प्रत्याशी अजीत सिंह मेहता कहते हैं कि स्थानीय बनाम बहारी है, पर्यटन वीजा खत्म कराओ, बहारी से मुक्ति दिलाओ, सेलिब्रिटी से मुक्ति दिलाओ, भाई स्मार्ट हो सका है। कैसे भी हैं, आपके भाई हैं, आपके बेटे हैं। टोंक की जनता के समझ आ गया है कि 5 साल का वनवास अब दूर होता दिख रहा है। दरअसल, पायलट की सबसे बड़ी ताकत गुर्जर वोट बैंक में सेंधमारी के लिए भाजपा ने उम्मीदवार के ऐलान से पहले रमेश बिधूड़ी को प्रभारी बनाकर मैदान में उतार दिया। गुर्जर बिरादरी से आने वाले बिधूड़ी दिल्ली से बोरिया-बिस्तर उठा टोंक में डेरा डाले हुए हैं। सांसद महोदय भले ही लामबंदी में जुटे हों, लेकिन सचिन पायलट के खिलाफ खुल्लम-खुल्ला हल्ला बोलने से कन्नी काट जाते हैं। रमेश बिधूड़ी कहते हैं कि मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं…टोंक की जनता बताएगी कि कौन चुनाव के समय क्षेत्र में आते और 6 -6 महीने क्षेत्र से गायब रहते हैं।

दूसरी ओर, बिधूड़ी अच्छे से जानते हैं कि पायलट पर सीधा अटैक बिरादरी में उल्टा पड़ सकता है। टोंक, दौसा से सवाई-माधोपुर में सचिन पायलट का गुर्जर, मीणा और अल्पसंख्यक वोटरों पर खासा प्रभाव है। टोंक विधानसभा में कुल मतदाता 2 लाख 51 हजार 878 हैं, जिसमें पुरुष वोटर एक लाख 29 हजार हैं। वहीं महिलाओं की संख्या एक लाख 22 हजार 871 है। जातिगत समीकरण की बात करें तो गुर्जर मतदाताओं की संख्या 45 हजार, मुस्लिम 70 हजार और दलित वोटरों की संख्या 80 हजार है। यह गठजोड़ किसी भी सियासी रणनीति को ध्वस्त कर सकता है।

टोंक के स्थानीय चुनावी मुद्दे और कांग्रेस

सूती कपड़े और चमड़े के कारोबार के अलावा लकड़ी पर नक्काशी टोंक में आमदनी का जरिया है। मीठे खरबूजे का चमन टोंक की खास पहचान है। ऐतिहासिक किले और मस्जिद गंगा-जमुनी तहजीब की मिजाज संजोए हुए हैं। इन सब के बावजूद टोंक जिला सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसी सुविधाओं से जूझ रहा है। बाहरी बनाम स्थानीय के अलावा टोंक में रेल का इंतजार सिर्फ चुनावी वादे बन कर रह गया है।

सचिन पायलट कहते हैं कि यह जो मुद्दा है, आज का नहीं है, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, उस समय योजना को लागू कर पारित करने तक सब कुछ हमने किया, लेकिन आप जानते हो कि कुछ विषय ऐसे होते हैं, जो राज्य सरकार के नहीं होते हैं। कुछ विषय सिर्फ केन्द्र सरकार के होते हैं। डेफेन्स, फॉरेन अफेयर्स, टेली कम्यूनिकेशन रेलवे भारत सरकार के होते हैं। इतने साल हो गए मुझे खेद है। अनत: यह जवाब तो उन लोगों को देना पड़ेगा, जिन्होंने जिम्मेदारी ली और दी सरकार बनने के समय। अब सरकार को 10 साल हो गए। 25 सांसद जीत कर गए 2 बार। क्या योजना लेकर आए, क्या विशेष पैकेज लिया, कोई बड़ी परियोजना लेकर आए।

भाजपाइयों ने गिनाए कांग्रेस के 5 साल के काम

चुनावी आंकड़ों पर नजर डालें तो टोंक के 14 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 5 बार जीत हासिल की। कांग्रेस ने 6 मर्तबा झंडा बुलंद किया। पिछले 30 साल के नतीजों पर गौर करें तो कोई भी दल दोबारा जीत दर्ज नहीं कर सका। इन्हीं आंकड़ों से उत्साहित भाजपा उम्मीदवार मौजूदा विधायक पर जमकर आरोपों के गोले दाग रहे हैं। अजीत सिंह मेहता कहते हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि 5 साल से टोंक ठगा जा रहा है। 5 साल में कांग्रेस के शासन में जिस तरह के हालात कोरोना के टोंक में हो गए थे, कोई संभालने वाला नहीं था। होटलों के अंदर पड़े हुए थे। 5 साल किस्सा कुर्सी का चलता रहा, जनता की सुध नहीं ली गई। भ्रष्टाचार का इतना बड़ा मुद्दा, महिला अत्याचार सुरक्षा कानून का इकबाल खत्म हो चुका है। अब जब 2-3 महीने रह गए हैं, बिजली देते नहीं हैं। बिजली छूट की बात करते हैं, मोबाइल देते नहीं हैं, लाइन लगवा देते हैं। बस सिर्फ फोटो लगाकर प्रोपेगेंडा चलाकर जनता को बेवकूफ बनाने का काम हुआ है।

सचिन पायलट कहते हैं कि भाजपा के नेताओं पर टिप्पणी करना ठीक नहीं है। जो रिएक्शन देना है, वह जनता देगी 25 तारीख के बाद। हम तो यह चाहते हैं कि सबको साथ लेकर चलें, फ्लैश लगा कर लें, लोग चाहते हैं कि यहां पर कांग्रेस पार्टी की सरकार रिपीट हो। भारतीय जनता पार्टी के नेता जो यात्रा निकाल रहे हैं, उनको कोई खास समर्थन नहीं मिला। बता दें कि जनता मानती है कि टोंक में विकास की गति धीमी है, लेकिन इसके बावजूद सचिन पायलट पर भरोसा है। टोंक में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है। हालांकि जातीय गठजोड़ साधने के साथ बागियों को साधना भी चुनाव प्रबंधन का अहम हिस्सा बच चुका है। कांग्रेस नेता मोहसिन रसीद और सेवादल के नईमुद्दीन अपोलो की निर्दलीय उम्मीदवारी पायलट की उड़ान पर ब्रेक लगा सकती थी, लेकिन ऐन वक्त पर बागियों को बिठा कर पायलट ने विधानसभा पहुंचने का रनवे क्लीयर करवा लिया। हालांकि बसपा और AIMIM उम्मीदवार वोट-कटुआ के तौर पर किसी भी दल की जीत-हार का अंतर घटा और बढ़ा सकते हैं।

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