राजस्थान के वो 7 बड़े नेता जिन्होंने आगे बढ़ाई राजनीति में वंशवाद की कहानी
राजनीति में परिवारवाद और इसके आरोप में विपक्षी पार्टियों पर हमला बोलने के लिए ज्यादा काम में आते हैं. परिवारवाद को लेकर अक्सर बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर होती रही है. यहां तक कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के निशाने पर अक्सर ही गांधी परिवार रहा है.
जयपुर : राजनीति में परिवारवाद और इसके आरोप में विपक्षी पार्टियों पर हमला बोलने के लिए ज्यादा काम में आते हैं. राजस्थान में चुनावी साल में एक बार फिर से राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद को लेकर बयानबाजी और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.
बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर
परिवारवाद को लेकर अक्सर बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर होती रही है. यहां तक कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के निशाने पर अक्सर ही गांधी परिवार रहा है.
राजस्थान की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला
प्रदेश में चुनावी प्रचार के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक कांग्रेस और दूसरी पार्टियों में नेताओं के परिवारवाद को लेकर सवाल उठाए है. लेकिन राजस्थान की राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला बेहद कमजोर रहा है. प्रदेश की राजनीति में परिवार को राजनीति में जमाने के प्रति नेताओं का वैसा मोह नहीं रहा, जैसा दूसरे राज्यों में मिलता है.
परिवारवाद का मोह
गौरतलब है कि यह परिवारवाद का मोह राजनेताओं के बीच तब ज्यादा उभरा, जब नेता मुख्यमंत्री के दावेदार बने या फिर खुद मुख्यमंत्री बने हो. इसी के चलते कुछ गिने चुने परिवार ही इससे उभर पाए. वहीं मुख्यमंत्री रहे राजनेताओं में भी परिवार के प्रति मोह ज्यादा नजर नहीं आता. बहुत से मुख्यमंत्रियों के परिवार तो राजनीति में ही नहीं आए. इसका एक उदाहरण प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हीरालाल शास्त्री, जयनारायण व्यास, टीकाराम पालीवाल, शिवचरण माथुर और हीरालाल देवपुरा के परिवार है जो राजनीति से बहुत दूर रहे.
हरिदेव जोशी से लेकर मोहनलाल सुखाड़िया तक
प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री रह चुके नेताओं के वंशवाद को देखे तो, इसकी शुरुआत हरिदेव जोशी से होती हैं. हरिदेव जोशी के पुत्र दिनेश जोशी ने विधायक का चुनाव लड़ा था, लेकिन पहला ही चुनाव हारने के बाद उन्होंने दुबारा राजनीति का रुख नहीं किया.
पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया के परिवार से भी पत्नी शांति पहाड़िया विधायक और सांसद रह चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के परिवार में पत्नी इंदुबाला एक बार सांसद रह चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर भैरोंसिंह शेखावत ने अपने परिवार से दामाद नरपत सिंह राजवी को आगे बढ़ाया, राजवी एक बार राज्य में मंत्री रह चुके है और विधायक भी रहें.
वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत
पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रदेश की राजनीति का केंद्र बन चुके अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे भी वंशवाद का मोह नहीं छोड़ पाए.
अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने पुत्र वैभव गहलोत को राजनीति में स्थापित करने का जतन करते आ रहे है. सांसद के चुनाव में बुरी तरह हारे वैभव गहलोत फिलहाल पार्टी संगठन में सक्रिय होने के साथ पीसीसी महासचिव हैं.
हाल ही विधानसभा चुनावों के लिए बनी कैंपेन कमेटी में भी वो जगह बनाने में कामयाब रहे है. लेकिन वैभव अब तक सांसद या विधायक भी नहीं बन पाए है और अशोक गहलोत के लिए यह एक टीस है कि वे राजनीति के जादूगर होकर भी अपने बेटे को जीत नहीं दिला पाए है और वह भी तब जब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री रहें है.
वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष
यह जरूर है कि गहलोत ने बेटे वैभव गहलोत को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनाकर अपनी टीम को थोड़ा कम जरूर किया है.
वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इस मामले में जरूर सूकून है कि वे अपने पुत्र दुष्यंत सिंह को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने में कामयाब रही हैं. दुष्यंत सिंह लगातार बीजेपी से तीसरी सांसद बने हुए है.
प्रदेश की राजनीति में वसुंधरा राजे एकमात्र मुख्यमंत्री रही है, जिसने अपने परिवार के सदस्य को स्थापित करने में कामयाबी हासिल की है. परिवार को राजनीति में स्थापित करने के मामले में वसुंधरा राजे अशोक गहलोत से एक नहीं बल्कि तीन कदम आगे है.
परिवारों में वर्चस्व की दौड़
प्रदेश की राजनीति में मात्र गिने चुने परिवार ही है, जो राजनीति में अपने वर्चस्व बनाए रख पाए है. इनमें भरतपुर का राजपरिवार, जोधपुर में मिर्धा, विश्नोई और मदेरणा परिवार, ओला परिवार, पायलट परिवार और जसोल परिवार शामिल है.
गाजी फकीर का परिवार
वर्तमान में गाजी फकीर का परिवार भी अब राजनीति में उभरने लगा है. परिवारवाद के मामले में प्रदेश की राजनीति में भरतपुर राजपरिवार नेतृत्व करता दिखता है. भरतपुर राजपरिवार राजस्थान की राजनीति में एक मात्र ऐसा परिवार है जो राजस्थान की स्थापना के बाद हुए 1952 के पहले चुनाव से लेकर 2018 के चुनाव में अपना प्रभुत्व बनाए हुए है.
सबसे पहले 1952 में इस राजपरिवार के गिरिराजशरण सिंह उर्फ राजा बच्चू सिंह भरतपुर सीट से सांसद बने और उनके भाई राजा मानसिंह ने कुम्हेर से विधायक बने थे.
अब तक इस परिवार से महाराजा बृजेंद्र सिंह, विश्वेंद्र सिंह, कृष्णेंद्र कौर दीपा, दिव्या सिंह सांसद बन चुके हैं तो राजा मानसिंह, अरुण सिंह, विश्वेंद्र सिंह, दिव्या सिंह और कृष्णेंद्र कौर दीपा विधायक चुने गए.
विश्वेन्द्र सिंह वर्तमान में इस राजपरिवार के सदस्य है और राजस्थान सरकार में मंत्री भी हैं.
इसी तरह नाथूराम मिर्धा परिवार से रामनिवास मिर्धा, हरेंद्र मिर्धा, रिछपाल मिर्धा, ज्योति मिर्धा और रघुवेन्द्र मिर्धा राजनीति में शामिल हैं. पूनमचंद विश्नोई के परिवार से विजयलक्ष्मी, रामसिंह और मलखान सिंह राजनीति में रहे है.
परसराम मदेरणा परिवार से महिपाल मदेरणा, लीला मदेरणा के बाद अब दिव्या मदेरणा अपना दम दिखा रही है. राजेश पायलट परिवार से रमा पायलट के बाद अब सचिन पायलट ने अपनी जड़े मजबूत की हैं.
जसवंत सिंह जसोल के परिवार से एक बार फिर बेटे मानवेंद्रसिंह जैसलमेर से अपनी दावेदारी में जुटे है. वही प्रदेश की राजनीति में जाटों के दिग्गज नेता के रूप में शीशराम ओला परिवार से बृजेंद्र ओला राजनीति में जमें हुए