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हत्या के केस में महिला की उम्रकैद की सजा स्थगित:जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, कोर्ट ने कहा- केवल बरामदगी से दोषसिद्धि नहीं हो सकती


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हत्या के केस में महिला की उम्रकैद की सजा स्थगित:जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, कोर्ट ने कहा- केवल बरामदगी से दोषसिद्धि नहीं हो सकती

हत्या के केस में महिला की उम्रकैद की सजा स्थगित:जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, कोर्ट ने कहा- केवल बरामदगी से दोषसिद्धि नहीं हो सकती

चूरू : राजस्थान हाईकोर्ट ने चूरू जिले की सुमन की हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा को स्थगित कर दिया है। जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस संगीता शर्मा की खंडपीठ ने सुमन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- केवल बरामदगी से दोषसिद्धि नहीं हो सकती, गवाहों ने सुमन को घटनास्थल पर नहीं देखा। जब मुख्य आरोपी को जमानत मिल चुकी है तो सुमन को जेल में रखने का कोई कारण नहीं है।

दरअसल, चूरू जिले के किलीपुरा तहसील तारनगर, थाना साहवा निवासी सुमन पुत्री भंवरलाल को चूरू की सेशन कोर्ट ने 19 मई 2025 को हत्या और साजिश के मामले में दोषी ठहराया था। सुमन को विभिन्न धाराओं में 10 साल कठोर कारावास और उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। इसी मामले में सुमन 12 नवंबर 2022 से चूरू जेल में बंद है।

हत्या के मामले में चूरू पुलिस ने सुमन और ओंकारलाल को गिरफ्तार कर दोनों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था।
हत्या के मामले में चूरू पुलिस ने सुमन और ओंकारलाल को गिरफ्तार कर दोनों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था।

केवल दवा के रैपर व रसोई से कढ़ाई की बरामदगी पर्याप्त नहीं

सजा के खिलाफ सुमन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें सुमन के वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने उसे पूरी तरह से कमजोर आधारों पर दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा- सुमन के खिलाफ कोई अन्य आपत्तिजनक सबूत नहीं था। उसे केवल दवा ‘साइलेंट प्लस’ के रैपर और रसोई में पड़ी कढ़ाई की बरामदगी के आधार पर दोषी ठहराया गया है।

घटनास्थल पर मौजूद गवाहों के बयानों में भी किसी ने सुमन का नाम तक नहीं लिया। इन गवाहों में से दो ने तो यह कहा कि जब सह-आरोपी ओंकारलाल रेस्तरां से खाना लाया था, तब सुमन ऊपर सोने चली गई थी।

सुमन के पास नहीं, तांत्रिक के पास था मकसद

  • वकील ने तर्क दिया कि सुमन खुशी से मुकेश के साथ रह रही थी, इसलिए उसके पास मृतक की हत्या करने का कोई कारण नहीं था। मनोज कुमार की पत्नी चंद्रतन की गवाही पर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पास सुमन को झूठा फंसाने का हर कारण था।
  • दवा के रैपर की बरामदगी और रसोई से बर्तन (एल्युमीनियम कढ़ाई) की बरामदगी भी संदिग्ध है, खासकर जब अभियोजन की कहानी यह नहीं है कि खाना परोसने से पहले सुमन या किसी और ने उसे गर्म किया था।
  • सह-आरोपी ओंकार लाल, जो मनोज कुमार से 20 लाख रुपए लेकर उसका कर्जदार था। खाना भी वो ही लेकर आया था, उसके पास हत्या का मकसद हो सकता था, लेकिन सुमन के पास कोई मकसद नहीं था। उसी ओंकारलाल की सजा स्थगन का आवेदन स्वीकार किया जा चुका है। इसलिए सुमन को जेल में बंद रखने का कोई कारण नहीं है।

सरकारी वकील का विरोध- कहा ट्रायल कोर्ट का फैसला सही

सरकारी वकील राजेश भाटी ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने विसरा रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए सही ढंग से सुमन को दोषी ठहराया है, क्योंकि खाने के अवशेषों के साथ बर्तन की बरामदगी उसी की निशानदेही पर की गई थी। इसी तरह, हत्या का केस दर्ज कराने वाली चंद्रतन की वकील अंजलि कौशिक ने भी सजा स्थगन अपील का विरोध किया।

हाईकोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदू

  • कोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों को सुना और रिकॉर्ड को सावधानीपूर्वक देखने के बाद अपने फैसले में कहा- अभियोजन की कहानी को देखें तो सुमन केवल रसोई से बर्तन की बरामदगी (जिसमें जहरीले खाने के अवशेष थे) और दवा के खाली रैपर की बरामदगी के कारण इस सीन में आई।
  • कढ़ाई रसोई से बरामद की गई और रैपर फ्रिज के ऊपर छोड़ी हुई स्थिति में पड़े थे। किसी अन्य आपत्तिजनक सामग्री की अनुपस्थिति में, केवल बरामदगी दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकती और यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन ने उचित संदेह से परे मामला साबित करने का अपना भार निभाया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के मुस्तकीम केस का संदर्भ भी दिया।
  • खाना खाने के समय मौजूद सभी लोगों ने एक स्वर में कहा है कि ओंकार लाल पहले से पका हुआ खाना लाया था, जिसे मृतक और मनोज ने खाया। उनमें से अधिकांश ने कहा कि जब खाना लाया गया और मृतक द्वारा खाया जा रहा था, तब सुमन पहले ही सोने चली गई थी। किसी ने भी यह नहीं कहा कि ओंकार लाल जो खाना लाया था उसे गर्म करने या अन्यथा के लिए रसोई में ले जाया गया था।
  • चूंकि वह व्यक्ति जो पहले से पका हुआ खाना लाया था या जिसने कथित तौर पर खाने में जहर मिलाया था, यानी ओंकारलाल को जमानत दी जा चुकी है, तो याचिकाकर्ता सुमन को जेल में बंद रखने का कोई कारण नहीं है।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऊपर की गई टिप्पणियां आवेदक के दोष या निर्दोषता के संबंध में प्रथम दृष्टया राय (prima-facie opinion) हैं। कोई भी पक्ष अपील की अंतिम सुनवाई के समय इन टिप्पणियों पर भरोसा नहीं करेगा।

सजा अपील के अंतिम निपटारे तक स्थगित रहेगी

हाईकोर्ट ने सजा स्थगन आवेदन स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि चूरू के सेशन जज द्वारा सुमन पुत्री भंवरलाल के खिलाफ दी गई। सजा अपील के अंतिम निपटारे तक स्थगित रहेगी। उसे व्यक्तिगत मुचलके और दो जमानतों पर रिहा किया जाएगा। उसे 6 नवंबर को हाईकोर्ट में पेश होना होगा। साथ ही कोर्ट ने शर्त लगाई कि सुमन को हर साल जनवरी महीने में ट्रायल कोर्ट के सामने पेश होना होगा, जब तक अपील का फैसला नहीं हो जाता।

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