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झुंझुनूं में पशुपालक बोले- पशुओं का दूध सूख रहा:कहा- लंपी रोग लौट रहा, उत्पादन में कमी आ रही; आरोप- विभाग ने सर्वे नहीं किया


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झुंझुनूं में पशुपालक बोले- पशुओं का दूध सूख रहा:कहा- लंपी रोग लौट रहा, उत्पादन में कमी आ रही; आरोप- विभाग ने सर्वे नहीं किया

झुंझुनूं में पशुपालक बोले- पशुओं का दूध सूख रहा:कहा- लंपी रोग लौट रहा, उत्पादन में कमी आ रही; आरोप- विभाग ने सर्वे नहीं किया

झुंझुनूं : झुंझुनूं जिले में एक बार फिर लंपी वायरस का प्रकोप दस्तक देने लगा है। गांवों से लेकर शहरों तक गोवंश में बीमारी के लक्षण सामने आने लगे हैं, जिससे पशुपालकों की चिंता गहरा गई है। गायों के बीमार पड़ने से दूध उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। कई पशुपालकों का कहना है कि उनकी गायों का दूध पूरी तरह सूख चुका है।

पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. शिवकुमार सैनी ने बताया-

अब तक केवल नवलगढ़ के कोलसिया गांव से एक मामला दर्ज हुआ है, जबकि अन्य किसी क्षेत्र से शिकायत नहीं आई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिन गोवंश पर दाग-धब्बे दिख रहे हैं, वे पिछली बार संक्रमित हुए थे और उनके निशान भरने में समय लग रहा है। हालांकि, गांवों में सामने आ रहे लक्षणों को देखकर पशुपालक सहमे हुए हैं।

दूध उत्पादन पर संकट

लंपी वायरस का सबसे पहला असर दूध उत्पादन पर पड़ रहा है। छोटे पशुपालक, जो दूध बेचकर आजीविका चलाते हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उनका कहना है कि जैसे ही गाय बीमारी की चपेट में आती है, दूध अचानक घट जाता है या सूख जाता है। इसका असर केवल उनकी आय पर ही नहीं, बल्कि पूरे दूध बाजार पर भी पड़ रहा है।

पिछले साल की भयावह स्थिति

यह वायरस झुंझुनूं के लिए नया नहीं है। पिछले साल लंपी ने जिले में हजारों गोवंश की जान ले ली थी। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, उस समय 6.08 लाख से अधिक गोवंश की जांच हुई थी, जिनमें से 28,624 संक्रमित मिले। इलाज के बाद केवल 11,373 ही ठीक हो पाए, जबकि बाकी की मौत हो गई थी। तब बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया गया था, मगर इस बार अब तक कोई नया सर्वे या बड़ा कदम नहीं उठाया गया है।

कागजों में सीमित ‘घर बैठे इलाज’

विभाग के पास मोबाइल वेटरनरी यूनिट (MVU) की सुविधा उपलब्ध है। टोल-फ्री नंबर 1962 पर कॉल करने पर डॉक्टरों की टीम घर पहुंचकर इलाज करती है। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकतर पशुपालकों को इस सुविधा की जानकारी ही नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि विभाग ने कभी जागरूकता अभियान नहीं चलाया, जिसके कारण यह योजना सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई है।

विशेषज्ञों की चेतावनी

पशु चिकित्सक डॉ. अनिल खीचड़ का कहना है कि इस बार भी लंपी के लक्षण सबसे ज्यादा बेसहारा गोवंश में दिख रहे हैं, क्योंकि उनकी समय पर देखभाल नहीं हो पाती। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो हालात पिछले साल जैसे ही हो सकते हैं।

पशुधन पर बड़ा संकट

पशुपालकों का कहना है कि अगर इस बार टीकाकरण और इलाज का बड़ा अभियान तुरंत शुरू नहीं किया गया, तो पशुधन पर बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। उनका आरोप है कि विभाग के पास संसाधन और टीमें मौजूद होने के बावजूद गंभीरता नहीं दिखाई जा रही। अब उम्मीद है कि विभाग पिछले साल की गलतियों से सबक लेकर ठोस रणनीति बनाएगा ताकि गोवंश और पशुपालकों की आजीविका को बचाया जा सके।

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