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नवलगढ़ में आस्था का महाकुंभ


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नवलगढ़ में आस्था का महाकुंभ

बाबा रामदेवजी का लक्खी मेला ज्योत प्रकट होने के साथ शुरू

जनमानस शेखावाटी संवाददाता :  रविन्द्र पारीक 

नवलगढ़ : लोक आस्था और साम्प्रदायिक सद्भाव का अद्वितीय प्रतीक बाबा रामदेवजी का प्रसिद्ध लक्खी मेला सोमवार शाम 5:15 बजे बाबा की ज्योत प्रकट होने के साथ शुरू हो गया। ज्योत प्रकट होते ही मंदिर परिसर जयकारों से गूंज उठा और बाबा का दरबार श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया।

सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया था। आस्था का आलम यह रहा कि हजारों की भीड़ दर्शन के लिए उमड़ पड़ी और मंदिर में खड़े होने तक की जगह नहीं बची। श्रद्धालु घंटों बाबा की ज्योत प्रकट होने का इंतजार करते रहे।

परंपरा निभाने पहुंचा ‘साजन’ घोड़ा

सोमवार दोपहर 2 बजे रूप निवास पैलेस से 501 निशानों के साथ ‘साजन’ नामक घोड़ा मंदिर की ओर रवाना हुआ। शहरभर में यात्रा के दौरान जगह-जगह फूलों की वर्षा हुई। मंदिर पहुंचने पर पुजारियों ने परंपरा अनुसार घोड़े का तिलक किया और ध्वज मंदिर की गुंबद पर चढ़ाया गया। इसके साथ ही लक्खी मेले का औपचारिक शुभारंभ माना गया।

‘साजन’ मशहूर ‘बादशाह’ घोड़े का बेटा है, जिसने वर्षों तक मंदिर में धोक लगाकर परंपरा निभाई थी। अब उसके वंशज ‘साजन’ ने यह जिम्मेदारी संभाली है। दूसरी बार ध्वज लेकर मंदिर पहुंचे इस घोड़े को देखने और छूने के लिए श्रद्धालुओं में खास उत्साह रहा। इसे बाबा का आशीर्वाद पाने का प्रतीक माना जाता है।

सजे दरबार और आस्था का आलम

मंदिर को इस बार आकर्षक रोशनी और फूलों से सजाया गया है। श्रद्धालु बाबा के दरबार में नतमस्तक होकर आस्था प्रकट कर रहे हैं। नवमीं के दिन बाबा को चादर चढ़ाने की परंपरा निभाई जाएगी। हालांकि, रविवार और सोमवार की बारिश से मेला परिसर में पानी भर जाने से दुकानदारों को परेशानी उठानी पड़ी।

ऐतिहासिक परंपरा

नवलगढ़ का बाबा रामदेवजी मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इसकी स्थापना 1776 में राजा नवलसिंह ने करवाई थी। कथा के अनुसार, दिल्ली के बादशाह से कर न चुका पाने पर कैद हुए राजा नवलसिंह को बाबा रामदेवजी की कृपा से चमत्कारिक ढंग से मुक्ति मिली। जेल से निकलते समय उन्हें एक घोड़ा मिला, जो तेज़ रफ्तार से दौड़ता हुआ नवलगढ़ लाकर यहीं ठहर गया। इसे चमत्कार मानकर राजा ने मंदिर का निर्माण करवाया और तभी से भादवा सुदी दशमी पर लक्खी मेले की परंपरा शुरू हुई।

आस्था और संस्कृति का संगम

आज यह मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकगीत, लोकसंगीत और सामूहिक आस्था का अनूठा संगम है। यही कारण है कि हर साल लाखों श्रद्धालु इस मेले में शामिल होकर बाबा रामदेवजी के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।

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