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काला और बाला के देवता, गौ रक्षकवीर तेजाजी, खड़नाल (नागौर)


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काला और बाला के देवता, गौ रक्षकवीर तेजाजी, खड़नाल (नागौर)

काला और बाला के देवता, गौ रक्षकवीर तेजाजी, खड़नाल (नागौर)

काला और बाला के देवता, गौ रक्षकवीर तेजाजी, खड़नाल (नागौर) : तेजाजी का जन्म के नागौर में खड़नाल नामक ग्राम में जाट जाति के धौल्या गोत्र (धौलिया वीर) में वि. सं. 1130 (1073 ई.) की माघ शुक्ला चतुर्दशी को पिता ताहड़ व माता रामकुंवरी या राजकंवर थाकण के घर हुआ था। इनकी बहन का नाम राजल (मुगेरी माता) था।

इनकी पत्नी का नाम पैमलदे था, जो पनेर के रामचन्द्र की पुत्री थी। तेजाजी की मृत्यु के पश्चात इनके साथ सती हुई थी। तेजाजी को ‘धौलिया वीर’ भी कहा जाता है तेजाजी की घोड़ी लीलण (सिणगारी) थी। इनके गुरू मंगलनाथ (गुंसाई नाथ) थे जबकि अस्त्रशस्त्र की विद्या बक्सो जी धौलियां एवं दुल्हण जी से ग्रहण की थी।

प्रमुख मित्रों में पांचू मेघवाल, खेता कुम्हार, जेता जी जाट प्रमुख थे। तेजाजी ने लाछा गुजरी की गायें मेरों से छुड़ाने हेतु अपना बलिदान दिया था। इसलिए तेजाजी को गौ-रक्षक व गायों का मुक्तिदाता माना जाता है। सर्प व कुत्ते के काटे मनुष्य के स्वस्थ होने हेतु इनकी पूजा की जाती है। इन्हें ‘काला और बाला’ का देवता भी कहा जाता है। क्योंकि काले नांग (सांप) का जहर यहां आने पर ऊतर जाता है और प्राचीन समय में नारू (बाला) रोग के रोगी तेजाजी के मंदिर में आने पर ठीक हो जाते थे।

संकलनकर्ता किशोर सिंह चौहान उदयपुर, विशेषज्ञ इतिहास और कला संस्कृति

प्रत्येक किसान तेजाजी के गीत (तेजा टेर) के साथ ही बुवाई प्रारम्भकरता है। तेजा गायन में ढुढाडी अलगोजा, नगाड़ा, ढोल, मजीरा आदि का प्रयोग करते है। सर्पदंश का इलाज करने वाले तेजाजी के भोपे को ‘घोड़ला’ कहते हैं। राजस्थान के प्रायः हर गाँव में इनके थान या देवरे बने हुए हैं जहां तेजाजी की मूर्ति गांव के चबूतरे पर प्रतिष्ठित की जाती है।

तेजाजी को ब्यावर के पास ‘सैंदरिया गाँव’ में “बासक” सर्प ने डसा, तो सुरसरा (किशनगढ़ अजमेर) में वि.स. 1160 भाद्रपद शुक्ल दशमी (23 अगस्त, 1103 ई.) को उनकी मृत्यु हुई, जहाँ तेजाजी की मूर्ति को जागती जोत कहा जाता है। पूरे राजस्थान में अगर कहीं पर भी दूसरा तेजाजी का मंदिर निर्माण होता है तो यहीं से जोत ले जाते हैं।

विशेष : जागती जोत एवं हाथ का हुजूर नाकोड़ा जी (बालोतरा) को कहते है।

सुरसरा (अजमेर) में इनका मंदिर था जिसकी मूर्ति को मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह के काल में परबतसर का हाकिम 1734 ई. में परबतसर (डीडवाना-कुचामन) ले गया तब से तेजाजी का प्रमुख स्थल परबतसर (डीडवाना-कुचामन) में स्थापित हो गया।

अन्य नाम 

  • अजमेर – नागौर, डीडवाना कुचामन, ब्यावर के लोक देवता.
  • कृषि कार्यों का उपारक देवता
  • जाट जाति के आराध्य देवता
  • सहरिया जाति के आराध्य देवता
  • शिव का अवतार
  • खड़नाल के भैरवनाथ
  • सत्यवादी।
  • धोलीयावीर

तेजाजी के नाम से परबतसर (डीडवाना-कुचामन) में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्लपक्ष दशमी (तेजा दशमी) को राजस्थान का सबसे बड़ा मेला लगता है जबकि इनका पशु मेला श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या तक भरता है।

तेजा जी के प्रमुख मंदिर सुरसरा (अजमेर), सैंदरिया (अजमेर), भांवता (अजमेर), खड़नाल (नागौर), तेजा चौक (ब्यावर), मण्डवारिया (अजमेर), बांसी दुगारी (बूंदी – तेजाजी की कर्म स्थली), केलवाड़ा (बारां), सुरनाल (नागौर), भीम (राजसमंद), सुरेली (टोंक), केकड़ी में है।

तेजाजी सहरिया जनजाति के भी आराध्य देव है।

प्रतीक चिन्ह – तेजाजी हाथ में तलवार लिये हुए अश्वारोही, जीभ पर सर्प दंशित पाषाण मूर्ति होती हैं।

विशेष :

  • तेजाजी का पुजारी माली या कुम्हार या जाट जाति का होता है।
  • 2019 में राज्य सरकार ने तेजा दशमी (भाद्रपद शुक्ला दशमी) क राजकीय अवकाश की घोषणा की थी।
  • वर्ष 2011 ई. में तेजाजी पर 5 रूपये का डाक टिकट जारी किया गया
  • श्री तेजाजी सर्प दंश चिकित्सालय, भावंता, अजमेर में है जहां स दंशित रोगीयों का निःशुल्क इलाज होता है।
  • एक मात्र लोक देववता जिनके नाम से “लीलण रेल एक्सप्रेस” जैसलमेर से जयपुर तक चलती है।
  • ग्रंथ – झुंझार तेजा (लेखक लज्जाराम मेहता) और तेजाजी रा ब्यावन (लेखक बंशीधर शर्मा) प्रमुख है।

संकलनकर्ता : किशोर सिंह चौहान उदयपुर, विशेषज्ञ इतिहास और कला संस्कृति

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