पुलिस ने नेत्रहीन को झूठे केस में फंसाया,हाईकोर्ट ने छोड़ा:2 लाख मुआवजा भी देना होगा, SHO और जांच अधिकारी के खिलाफ होगी जांच
पुलिस ने नेत्रहीन को झूठे केस में फंसाया,हाईकोर्ट ने छोड़ा:2 लाख मुआवजा भी देना होगा, SHO और जांच अधिकारी के खिलाफ होगी जांच
जोधपुर : राजस्थान हाईकोर्ट ने झूठे केस में फंसाए गए नेत्रहीन को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। जोधपुर बेंच ने आरोपी एसएचओ और जांच अधिकारी के खिलाफ भी जांच के आदेश दिए है। वहीं, पीड़ित को 2 लाख मुआवजा भी दिया जाएगा।
मामला चूरू जिले के तारानगर का है। यहां मार्च 2025 में हुए एक किडनैपिंग और मारपीट के मामले में मोतिया उर्फ अम्मीचंद (29) को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अम्मीचंद करीब 85 फीसदी तक दृष्टिबाधित है।
चूरू एसपी ने केस की जांच करवाई तो अम्मीचंद को फंसाने की जानकारी सामने आई। हालांकि, तब तक केस में चार्जशीट सब्मिट हो चुकी थी। इसलिए एसपी के रिहाई के आदेश के बाद भी अम्मीचंद जेल से बाहर नहीं आ सका था।
सबसे पहले पढ़िए – जस्टिस मनोज गर्ग की तल्ख टिप्पणी…
क़ानून-प्रवर्तन अधिकारियों ने जानबूझकर और द्वेषपूर्ण तरीके से एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाया है… अदालत ने पाया कि स्टेशन हाउस ऑफिसर और जांच अधिकारी को मोतिया को झूठे तौर पर फंसाने की जिम्मेदारी से बरी नहीं किया जा सकता, संभवतः वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए किया गया।
अब जानिए- क्या है पूरा मामला….
दरअसल, 14 मार्च 2025 चूरू ज़िले के झोथड़ा गाँव (थाना तारानगर) में एक युवक विनोद कुमार का पांच युवकों ने किडनैप कर लिया था। उसके साथ मारपीट की और पैसे भी छीन लिए।
शिकायतकर्ता हरिसिंह के अनुसार उसके भतीजे विनोद को किडनैप करने वाले रामनिवास, सोनू और प्रताप सहित दो अज्ञात लोग थे। पुलिस ने उसी शाम एफआईआर दर्ज कर जांच हेडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार को सौंपी थी।
आरोपी नहीं फिर भी गिरफ्तारी और चार्जशीट
जांच में पुलिस ने नामजद नहीं होने के बावजूद गाँव भीमसेना निवासी मोतिया उर्फ़ अम्मीचन्द (29), जो 80-85% दृष्टिबाधित है, उसे सह-आरोपी बनाया। जबरन उसकी निशानदेही पर डंडा बरामद करना बताया और उसे गिरफ़्तार कर चूरू सेंट्रल जेल भेज दिया।
इसके बाद पुलिस ने तारानगर कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल कर दी। इस मामले में पीड़ित मोतिया की तरफ से अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया।
ट्रेनी आईपीएस की जांच में हुआ खुलासा
इसी बीच, मोतिया के भाई की अर्जी पर चूरू पुलिस अधीक्षक ने जांच एक ट्रेनी IPS अधिकारी को सौंपी। जांच में सामने आया कि दृष्टिबाधित मोतिया घटनास्थल पर था ही नहीं था। उसे फंसाया गया है। ट्रेनी आईपीएस की रिपोर्ट के बाद एसपी ने आरोपी जांच अधिकारी को निलंबित कर दिया।
निचली कोर्ट ने रिहाई की एप्लीकेशन खारिज की
हकीकत सामने आने के बाद पुलिस की ओर से BNS धारा 189 (पुरानी CrPC 169) के तहत “रिहाई आवेदन” दाखिल किया गया। लेकिन, तारानगर कोर्ट ने 27 जून को पुलिस का यह आवेदन खारिज कर दिया था।
उनका तर्क था कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद पुन: जांच केवल अदालत की अनुमति से हो सकती है, जबकि यह काम पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर किया गया था।
हाईकोई से मिली रिहाई, मुआवजे के भी आदेश
याचिकाकर्ता मोतिया उर्फ अम्मीचंद की ओर से अधिवक्ता कौशल गौतम ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन दायर की। इसे स्वीकार करते हुए जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने 11 जुलाई को मोतिया की रिहाई के आदेश दिए।
इतना ही नहीं, कोर्ट ने चूरू कलेक्टर को भी निर्देश दिया कि आदेश से 15 दिन के भीतर पीड़ित मोतिया की दृष्टिबाधिता की मेडिकल कराएं।
जांच में दृष्टिबाधिता पुष्टि की पुष्टि होती है, तो राज्य सरकार उसे 2 लाख रुपए मुआवजा देना होगा। यह मुआवजा अधिकारियों के गलत कार्यों से होने वाले मानसिक और शारीरिक नुकसान की भरपाई के लिए है।