ऑनलाइन गेमिंग की लत में खुद को चाकू मारा:टास्क पूरा करने साइकिल लेकर पहाड़ पर चढ़ा; दोस्तों-परिवार से बात करनी बंद कर दी
ऑनलाइन गेमिंग की लत में खुद को चाकू मारा:टास्क पूरा करने साइकिल लेकर पहाड़ पर चढ़ा; दोस्तों-परिवार से बात करनी बंद कर दी

- ऑनलाइन गेम की लत में खुद पर चाकू से हमला कर लिया।
- गेम टास्क को पूरा करने के लिए साइकिल से पहाड़ पर चला गया।
- अपने परिवार और दोस्तों से बात करना ही बंद कर दिया।
ऑनलाइन मोबाइल गेमिंग की लत के ये केस 14 से 17 साल की उम्र के लड़के-लड़कियों के हैं। इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहे ये बच्चे किसी भी जरूरी चीज से पहले गेम को प्राथमिकता देते हैं। इससे उसकी मानसिक सेहत पर प्रभाव पड़ने लगता है। वे सिर्फ अपने कमरे तक सीमित हो जाते हैं। किसी से ज्यादा बोलना और मिलना पसंद नहीं आता।
ये कहना है- अजमेर में मेंटल हेल्थ काउंसलर शगुन कौशल का। उन्होंने बताया- उनके पास कई केस आते हैं, जिसमें लोग पढ़ाई, रिलेशनशिप, नौकरी सहित अलग-अलग तरह के तनाव से गुजर रहे होते हैं। इसमें इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के केस चौंकाने वाले हैं।
ऑनलाइन गेम खेलने की लत में लोग अपने परिवार से दूर हो जाते हैं। वे ज्यादातर टाइम गेम में बिताने लगते हैं। गेम में चैलेंज होने के कारण इसकी तरफ आकर्षित होते हैं। लेवल को क्रॉस करना होता है और बच्चे स्टेज पार करने के बाद खुद को मोटिवेट महसूस करते हैं, जो कि गलत है। कई केस में अग्रेसिव बिहेवियर और गेम टास्क को पूरा करने के लिए अपनी जान को खतरे में डाल देते हैं। उन्होंने ऐसे ही कुछ केस के बारे में बात की….
मम्मी-पापा मोबाइल में बिजी रहते, मैं गेम खेलता केस 1-
माता-पिता अपने 14 साल के बच्चे के साथ उनके पास आए थे। उनका बेटा कोविड के बाद अपने कमरे में ही ज्यादा टाइम बिताने लगा था। उसे मोबाइल गेमिंग की लत लग गई थी। खाना भी गेम खेलते-खेलते अपने कमरे में ही खाता था। परिवार के लोग टोकते तो गुस्सा करता। इस हद तक कि एक बार खुद को चाकू तक मार लिया।
बच्चे की काउंसलिंग शुरू की। उसके जीवन के लक्ष्य, परेशानी और दिनचर्या के बारे में जाना। बच्चे ने बताया- मम्मी-पापा भी अपने फोन में बिजी रहते हैं। मैं किसी को परेशान नहीं करता। बस अपना गेम खेलता हूं। गेम नहीं खेलूंगा तो क्या करूंगा।
धीरे-धीरे दोस्त बनकर बात की। उसकी पसंद और नापसंद को जाना। गेम खेलने से पहले उसे क्या अच्छा लगता था। धीरे-धीरे उसके व्यवहार में बदलाव आया। करीब 5 महीने में वह ठीक हो गया।
पहाड़ से उतरते हुए वीडियो बनाकर देना था केस 2-
कई ऑनलाइन गेम ग्रुपिंग में खेले जाते है। 15 साल के लड़के ने इसी तरह गेम खेलते हुए अपने दोस्त बना लिए। गेम खेलते हुए एक प्लेयर ने उसे बुली करना (परेशान करना, सताना, प्रताड़ना या दुर्व्यवहार करना) शुरू कर दिया था। वो उसके कहे अनुसार चलने लगा था। उस प्लेयर ने बच्चे को एक टास्क दिया था।
उस टास्क को पूरा करने के लिए घर से अपनी साइकिल उठाकर पहाड़ पर चला गया था। टास्क के अनुसार- उसे साइकिल से पहाड़ से उतरते समय का वीडियो बनाकर भेजना था। पहाड़ पर जाते ही लड़का डर गया। घर वापस आकर अपने परिवार को बताया। इसके बाद माता-पिता उसे काउंसलिंग के लिए लेकर आए। माता-पिता ने काउंसलिंग के लिए एडमिशन करवाया, लेकिन बच्चा काउंसलिंग के दौरान नहीं आया।
मोबाइल की लत से भी मानसिक हेल्थ बिगड़ती केस 3-
17 साल की एक लड़की को मोबाइल की लत थी। उसे एक बैंड के गाने पसंद आ गए थे। इस दौरान उसकी फिलीपींस, जर्मनी और रसिया के लोगों से दोस्ती हो गई। वह सिर्फ अपने विदेशी दोस्तों से ही मोबाइल पर बात और मैसेज करने में लगी रहती थी।
उसका इंडिया का कोई दोस्त नहीं था। परिवार के लोगों के साथ भी वक्त कम बिताने लगी थी। वह ऑफ लाइन कम्युनिटी से बिल्कुल डिस्कनेक्ट हो चुकी थी। करीब सवा साल तक उसकी काउंसलिंग की गई।
स्कूल जाने पर किसी से बातचीत नहीं कर पाई केस 4-
कोविड के कारण बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन होने लग गई थी। बच्चे दिन भर मोबाइल पर लगे रहते थे। 17 साल की लड़की भी ऑनलाइन पढ़ाई करती थी। स्कूल जाने पर वह किसी से बातचीत नहीं कर पा रही थी। परिवार ने काउंसलिंग के लिए भेजा।
काउंसलिंग के वक्त भी लड़की ने कहा- आप मैसेज से बात कर लें। मैं आमने-सामने बात नहीं कर पाती। इससे साफ पता चला कि वह मोबाइल से ज्यादा ही कनेक्ट हो चुकी थी। कुछ महीनों तक काउंसलिंग कर उसे ठीक किया गया।
काउंसलिंग के दौरान बच्चों को होमवर्क दिया जाता
काउंसलर शगुन ने बताया- ऐसे बच्चों का परिवार से जुड़ाव कम हो जाता है। वे माता-पिता से खुलकर बात नहीं करते। काउंसलिंग के दौरान सबसे पहले उनका दोस्त बना जाता है। उन्हें पार्क और चौपाटी ले जाया गया। उनके साथ टाइम बिताया गया।
काउंसलिंग के दौरान होमवर्क दिया जाता है। जिसमें-
- अपने बारे में तीन अच्छी चीज लिखकर लाने के लिए कहा जाता है?
- माता-पिता का क्या बोलना बुरा लगता है?
इसके अलावा टास्क दिया जाता है कि गेम लगातार न खेलें। एक घंटा ब्रेक दें। धीरे-धीरे ब्रेक टाइम बढ़ाया जाता है। इससे बाद में बच्चों की खुद आदत छूट जाती है। माता-पिता को भी एडवाइस दी जाती है कि वे बच्चों के सामने मोबाइल का यूज न करें। 6 से 8 महीने का समय ऐसे बच्चों को ठीक होने में लग जाता है।
लाखों का पैकेज छोड़कर खुद का काम शुरू किया
शगुन कौशल 2020 से वह लगातार काउंसलिंग कर रही है। उनकी स्कूलिंग अजमेर के सेंट स्टीफन स्कूल से हुई है। पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए एलएलबी ऑनर्स किया है। इसके बाद सेंट जेवियर से काउंसलिंग साइकोलॉजी में पीजी डिप्लोमा किया था।
हैदराबाद बेस्ड ऑनलाइन लो सीखो कंपनी में जॉब की। जहां वह ऑनलाइन बच्चों को काउंसलिंग देने का काम करती थी। तब अपने स्तर पर बच्चों को काउंसलिंग देने का काम शुरू करने का सोचा। लाखों का पैकेज छोड़कर अजमेर वापस आ गई।

माइनर स्टूडेंट से लेकर बड़ी उम्र के लोग भी काउंसलिंग के लिए आते
अजमेर कोर्ट में लॉ इंटर्नशिप किया। इस दौरान उनके सामने कई केस आए, जिसमें पीड़ित न्याय मिलने के बाद भी खुश नहीं होते थे। ऐसा ही केस 21 साल की लड़की के डिवोर्स का था। उसके एक बेटा भी था। डिवोर्स के बाद उसके घरवालों ने भी उससे नाता तोड़ लिया था। वह तनाव में चली गई थी।
इसके अलावा न्यूज साइट्स से तनाव के कारण सुसाइड की खबरें पढ़ने को मिलती। इस बारे में अपने पिता एसके कौशल से चर्चा की। पिता ने कोटा से गाइडेंस एंड काउंसलिंग का कोर्स कर रखा था। उनके कहने पर काउंसलिंग एंड साइकोलॉजी का कोर्स किया। इसके बाद लाइफ चेंज हुई और तय कर लिया कि काउंसलिंग की दिशा में काम करना है। आज माइनर स्टूडेंट से लेकर बड़ी उम्र के लोग भी काउंसलिंग के लिए आते हैं।