पाकिस्तान ने हमारा ट्यूबवैल नष्ट कर दिया था, हमने गाड़ियों के रेडिएटर से निकालकर पानी पिया, फिर भी मोर्चे पर डटे रहे, दुश्मन को शिकस्त…
हथियारों की कमी के बावजूद जवानों के हौसले बुलंद थे

सुलताना : पहलगाम में हुए आतंकी हमले के खिलाफ भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पीओके व पाकिस्तान में आतंकी ठिकाने तबाह किए गए हैं। इससे बौखलाए पाकिस्तान की ओर से भी भारत पर ड्रोन हमले किए जा रहे हैं। इस सबको देखते हुए युद्ध के हालात बनते नजर आ रहे हैं।
54 साल पहले भी भारतीय जवानों ने 1971 के युद्ध में विषम परिस्थितयों के बावजूद पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। इस युद्ध में हमारे जिले से हजारों जवानों ने भाग लिया था। इनमें सुलताना निवासी सूबेदार इंद्रसिंह भी शामिल थे। उन्हें बहादुरी के लिए गैलेंट्री अवार्ड भी मिला। उन्होंने 1965 का युद्ध भी लड़ा था जिसमें पाकिस्तान को शिकस्त मिली थी। आज 81 साल की उम्र में भी उसी जोश के साथ कहते हैं कि आदेश मिला तो पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ने के लिए फिर से मोर्चे पर जा सकते हैं। सूबेदार इंद्रसिंह बताते हैं कि वे नवंबर 1962 में सेना में भर्ती हुए थे।
1965 और 1971 का युद्ध भी लड़ा। 1965 में वे आरटी ब्रिगेड के साथ तैनात थे, जहां दुश्मन के हमले बेहद खतरनाक थे। लेकिन उन्होंने और उनके साथियों ने पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए। 1971 के युद्ध में लोंगेवाला पोस्ट पर तैनात थे, जिम्मेदारी कम्युनिकेशन नेटवर्क संभालने की थी। दुश्मन ने ट्यूबवैल को नष्ट कर दिया था, जिससे सैनिकों को गाड़ियों के रेडिएटर से पानी निकालकर प्यास बुझानी पड़ी थी। लोंगेवाला पर लगातार एयर अटैक हो रहे थे। इसलिए घने जंगलों और दुर्गम रास्तों से होकर सामान खुद लेकर जाना पड़ता था। हथियार और एम्युनिशन की कमी थी, लेकिन भारतीय जवानों के हौसले बुलंद थे।
भारतीय सैनिक पाकिस्तानियों को खदेड़ते हुए पाकिस्तान में 80 किमी अंदर तक पहुंच गए। पाकिस्तानी सैनिकों को सरेंडर करना पड़ा था। इंद्रसिंह कहते हैं कि अब युद्ध का तरीका बदल गया है। पहले सेनाएं आमने-सामने लड़ती थीं। अब आधुनिक हथियार आ गए हैं। एयर सिस्टम काफी डवलप हुआ है। सैकड़ों किमी दूर से ही मिसाइल अटैक व ड्रोन हमले किए जा सकते हैं। 1971 में ब्लैकआउट देख चुके रिटायर्ड सूबेदार इंद्रसिंह ने कहा कि युद्ध के समय ब्लैकआउट बहुत जरूरी है।
ब्लैक आउट के जरिए सिविलियंस न केवल अपनी जान बचा सकते हैं, बल्कि सेना को भी सहयोग कर सकते हैं। ब्लैकआउट से चारों तरफ अंधेरा होने से हवाई हमलों से बचा जाता है। अंधेरे में दुश्मनों को टारगेट नहीं मिलता। हवाई हमले की स्थिति में जमीन पर लेटना, रोशनी बंद करना और सुरक्षित मोर्चों पर कुछ दिन के लिए जीवन बसर यह सामान्य प्रक्रिया है। इसे अपनाकर हम सेना को मदद और खुद का जीवन बचा सकते हैं।