माहे रमजान के आखिरी आसुरे की अहमियत और अजमत बहुत ज्यादा है
यह आसुरा जहन्नुम से निजात का है। मौलाना सैयद गुलाम मुस्तफा कादरी

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय पर स्थित खानका -ए- कादरिया के मौलाना सैयद गुलाम मुस्तफा कादरी जामा मस्जिद चुरु ने माहे रमज़ान की मुबारकबाद देते हुए कहा रमजान मुबारक तमाम महीनों का सरदार है इस माह के तमाम ही अयाम (दिन )फजीलत के हामिल हैं ।और बा बरकत है। हम इसके आखिरी आसुरे की अहमियत और अजमत बहुत ज्यादा है ये असरा जहन्नुम से निजात का असरा है ।नबी ए करीम यूं तो पूरे महीना पूरा रमजान इबादत व रियाजत में गुजारते मगर आखिरी दस दिनों में आपकी इबादत में बहुत इजाफा हो जाता आपने बताया कि माहे रमजान में हजरते अबू हुरेराह रदीअल्लाहो अनहु फरमाते हैं कि हमारे सरकार अहमदे मुख्तार सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब रमजान आता है तो आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं ।एक रिवायत मे आता है कि जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते है एक रिवायत मे है कि रहमत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे़ बंद कर दिए जाते हैं और शैतान को जंजीरों में बांध दिए जाते हैं प्यारे नबी मुसतफा करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह पाक माहे रमजान में हर दिन इफ्तार के वक़त दस लाख गुनाह गारों को जहन्नुम से आजाद फरमाता है। जिन पर गुनाहों की वजह से जहन्नम वाजिब हो चुका था । रमजान बख़्शिश के लिए आया है ।हजरत मौला अली शेरे खुदा रदीअल्लाहु अनहु फरमाते हैं अगर अल्लाह तआला को उम्मते मुहम्मदी सलल्लाहो अलैहि वसल्लम को अजाब देना मक़सूद होता तो इस उम्मत को रमजान और सुरह क़ुलहु अल्लाहु अहद शरीफ ना अता फरमाता। एक रोजा छोड़ने का नुकसान हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जिस शख्स ने रमजान के एक दिन का रोजा बगैर रूखसत बगैर मरज के इफ्तार किया यानी छोड़ दिया तो ज़माने भर का रोजा़ का बदला नहीं हो सकता। अगर चाहे बाद में रख भी ले। बुखारी व इब्ने माजा शरीफ वगैराह। इफ्तार के वक्त की दुआ रद्द नहीं होती ।हजरत अबदुल्लाह बिन अमर बिन आस रदीअललाहु अनहु से रिवायत है कि हमारे प्यारे नबी मुसतफा करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि रोजा़ की दुआ इफ्तार के वक़त रद्द नहीं कि जाती। और हजरत अबू हुरेराह रदीअल लाहो अनहु फरमाते हैं कि हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि तीन शख्स की दुआ रद्द नहीं की जाती है 1 रोजा़ दार जिस वक्त इफ्तार करता है 2 आदिल बादशाह और 3 मज़लूम की दुआ। उसको अल्लाह तअला आसमान से उपर बुलंद करता है। और उसके लिए आसान के दरवाजे़ खोल दिया जाता है। माहे रमजान के बारे में हजारों हदीसे हैं जिन पर हमें अमल करना चाहिए।