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दिल्ली में परेड, राजस्थानी ऊंटों पर सवार होंगी महिला राइडर:कड़ाके की सर्दी में रात 2 बजे जागना, ऊंट सजाने में लगता है डेढ़ घंटा


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दिल्ली में परेड, राजस्थानी ऊंटों पर सवार होंगी महिला राइडर:कड़ाके की सर्दी में रात 2 बजे जागना, ऊंट सजाने में लगता है डेढ़ घंटा

दिल्ली में परेड, राजस्थानी ऊंटों पर सवार होंगी महिला राइडर:कड़ाके की सर्दी में रात 2 बजे जागना, ऊंट सजाने में लगता है डेढ़ घंटा

जोधपुर : इस बार भी 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में बीएसएफ की ऊंट टुकड़ी (कैमल कंटीजेंट) कर्तव्य पथ पर राजस्थान का मान बढ़ाएगी। महिला जवान हाथों में राइफल लिए सजे-धजे ऊंटों पर होंगी। टुकड़ी में पिछले साल से महिला सीमा प्रहरियों को भी शामिल किया गया था। कैमल राइडर बनने के लिए यह महिलाएं कई महीने ट्रेनिंग लेती हैं। इसके बाद दिसंबर के अंतिम सप्ताह दिल्ली पहुंचती हैं। वहां एक माह की प्रैक्टिस के बाद 26 जनवरी को कर्तव्य पथ पर परेड में हिस्सा लेती हैं।

परेड के लिए 100 ऊंटों की टुकड़ी

इस बार भी जोधपुर से दिसंबर के अंतिम सप्ताह में सहायक प्रशिक्षण केंद्र सीमा सुरक्षा बल जोधपुर से 60 व क्षेत्रीय मुख्यालय बीकानेर से 40 ऊंट दिल्ली पहुंचे। दिल्ली पहुंच कर कैमल कंटीजेंट अस्थाई कैंप में रहते हैं। दिसंबर-जनवरी में कड़ाके की सर्दी के बावजूद यह कंटीजेंट रात दो बजे उठते हैं। अपने ऊंटों को तैयार कर सुबह चार बजे विजय चौक पहुंच कर प्रैक्टिस करते हैं। गणतंत्र दिवस पर भी इसी समय कैमल कंटीजेंट परेड के लिए पहुंचेगा। 54 ऊंटों पर उप कमांडेंट सीमा सुरक्षा बल मनोहर सिंह खींची, 3 अधीनस्थ अधिकारी, 14 महिला सीमा प्रहरी, 36 जवान होंगे। इसके अलावा कैमल माउंटेंड बैंड में 36 ऊंटों पर उप निरीक्षक अमल चटोपाध्याय व 35 बैंड वादक होंगे। परेड में कुल कुल 90 ऊंट कर्तव्य पथ पर चलेंगे और 10 रिजर्व रहेंगे।

26 जनवरी 1976 को पहली बार ऊंट दस्ते ने सीमा सुरक्षा बल की तरफ से राजपथ (वर्तमान कर्तव्य पथ) पर गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया। -फाइल फोटो
26 जनवरी 1976 को पहली बार ऊंट दस्ते ने सीमा सुरक्षा बल की तरफ से राजपथ (वर्तमान कर्तव्य पथ) पर गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया। -फाइल फोटो

6 सप्ताह तक ली ट्रेनिंग

टुकड़ी में शामिल कई महिलाएं शादीशुदा हैं। बाड़मेर निवासी मंजू जांगिड़ के दो बच्चे हैं। छोटे बच्चों को छोड़ कर वे परेड के लिए दिल्ली पहुंची हैं। कैमल राइडर व हैंडलर नागौर की अंबिका राठौड़ तीसरी बार परेड में शामिल हुई हो रही हैं। अंबिका का कहना है कि उनके पिता बीएसएफ में थे। उनके देहांत के बाद उसने बीएसएफ जॉइन किया। मां का देहांत पहले ही हो चुका था। घर पर छोटी बहन और दादा–दादी है। उन सभी का सहारा अंबिका ही है। अंबिका ने बताया कि कैमल हैंडलिंग की ट्रेनिंग 6 सप्ताह तक चली। इस दौरान ऊंट के व्यवहार को समझने उसे खिलाने-पिलाने आदि का प्रशिक्षण लिया।

ऊंट टुकड़ी के लिए कैसे किया जाता है चयन

कैमल हैंडलिंग भी चुनौती है। ऊंट के व्यवहार का ध्यान भी रखना होता है। ऊंट के व्यवहार काे भांप कर उसके अनुसार काम में लिया जाता है। कैमल हैंडलिंग के लिए हर साल सीमा सुरक्षा बल के सहायक प्रशिक्षण केंद्र जोधपुर में उप कमांडेंट कैमल विंग मनोहर सिंह खींची के नेतृत्व में कैमल हैंडलिंग व मैनेजमेंट का कोर्स करवाया जाता है। ट्रेनिंग के दौरान सबसे पहले ऊंट पर बैठना ही चुनौती पूर्ण होता है। इस कोर्स में जिन महिलाओं में बेहतर कैमल राइडर बनने की संभावना दिखती है, उनका सिलेक्शन कैमल कंटीजेंट में होता है। गणतंत्र दिवस की परेड के लिए प्रैक्टिस अक्टूबर से शुरु हो जाती है। उस समय सीमा सुरक्षा बल दिवस की परेड होती है। उसकी तैयारी के साथ ही गणतंत्र दिवस परेड की तैयारी शुरू हो जाती है।

परेड में कुल कुल 90 ऊंट कर्तव्य पथ पर चलेंगे और 10 रिजर्व रहेंगे। -फाइल फोटो
परेड में कुल कुल 90 ऊंट कर्तव्य पथ पर चलेंगे और 10 रिजर्व रहेंगे। -फाइल फोटो

एक ऊंट को सजाने में डेढ़ घंटा लगता है

परेड में ऊंटों का रंगबिरंगे लुम्बे–झुम्बों से श्रृंगार किया जाता है। करीब डेढ़ घंटा एक ऊंट को सजाने में लगता है। 100 ऊंटों को सजाने का कार्य पुरुष कैमल हैंडलर करते हैं। सभी ऊंटों का सजा कर विजय चौक तक लाने का जिम्मा भी पुरुष कैमल हैंडलर पर होता है। सीमा सुरक्षा बल में उप कमांडेंट मनोहर सिंह खींची जोधपुर में जून 2021 से ट्रेनिंग दे रहे हैं। इन्होंने ही पहली महिला टुकड़ी को तैयार किया था। सीमा सुरक्षा बल का कैमल कंटीजेंट वर्ष 1976 से लगातार गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा ले रहा है। पिछले चार साल से कैमल कंटीजेंट का नेतृत्व मनोहर सिंह खींची कर रहे हैं।

बीकानेर रियासत के पास थी पहली कैमल रेजिमेंट

इतिहास की बात करें तो भारतीय सेना के पास परम्परागत रूप से कोई ऊंट दस्ता नहीं था। केवल परिवहन के लिए ऊंटों पर आधारित कुछ कम्पनियां थी। सर्वप्रथम बीकानेर रियासत के पास सबसे पुरानी कैमल रेजीमेंट थी जिसकी स्थापना सन 1465 में हुई। 19 वीं शताब्दी में बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराज गंगा सिंह राठौड़ ने एक दस्ता 500 ऊंट थे। इन्हीं के नाम पर ऊंट दस्ते का नाम गंगा रिसाला रखा गया। इस दस्ते ने 1900-01 के चीन युद्ध, 1902-04 में सोमालिया युद्ध, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया। आजादी के बाद रियासती सेना का भारतीय संघ की सेना मे विलय हो गया और गंगा रिसाला 13 ग्रेनेडियर का हिस्सा बन गया। 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस परेड में ऊंट दस्ते ने 13 ग्रेनेडियर की तरफ से भाग लिया।

बीएसएफ के गठन के साथ ऊंट भी हुए शामिल

1965 में अंतरराष्ट्रीय सीमा की सुरक्षा के लिए सीमा सुरक्षा बल का गठन हुआ। ऊंट व ऊंट सवार भी सीमा सुरक्षा बल का एक अभिन्न अंग बन गए। क्योंकि बिना ऊंटों के राजस्थान की सीमाओं की चौकसी का कार्य अधूरा था। ये ऊंट आज भी सीमा सुरक्षा बल का एक महत्वपूर्ण अंग है। सन 1950 से 1974 तक गणतंत्र दिवस परेड में ऊंटों ने भारतीय सेना की तरफ से भाग लिया। सन 1975 की गणतंत्र दिवस परेड में ऊंट दस्ते ने भाग नहीं लिया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री के कहने पर 26 जनवरी 1976 को पहली बार ऊंट दस्ते ने सीमा सुरक्षा बल की तरफ से राजपथ (वर्तमान कर्तव्य पथ) पर गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लिया।

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