खेतड़ी : शेखावाटी में ताम्बे का इतना भंडार है कि अगले पचास साल तक यहां की पहाड़ियों में खनन किया जा सकता है। लेकिन सरकारी उपेक्षा के कारण खेतड़ी का कॉपर कॉम्पलेक्स आज बर्बादी के कगार पर खड़ा है। कभी यहां 6 हजार टन तांबे का प्रतिदिन उत्पादन होता था, लेकिन अब मात्र 4 हजार टन तांबा ही निकाला जा रहा है। पांच में से मात्र दो ही प्लांट चालू है। दस हजार से ज्यादा नियमित कर्मचारी काम करते थे, अब मात्र पांच सौ कर्मचारी ही नियमिति हैं। खास बात यह है कि हमारा तांबा, हमारे ही राज्य में काम नहीं आ रहा बल्कि यहां से बाहर भेजा जा रहा है। ऐसे में सरकार अगर सुध ले तो हम तांबे में फिर से आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
हमारा तांबा, हमारे ही नहीं आ रहा काम
बाहर जा रहा है सारा माल
खेतड़ी के हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के केसीसी प्लांट से 13 मिलियन टन (करीब 13 लाख टन) वर्ष भर में खनन होता है। इसमें से लगभग 11 हजार टन वार्षिक मेटल इन कॉन्सेंट्रेट (तांबा) बनता है जिसे बाजार में बेचते हैं। यहां से यह बड़े स्मेल्टर प्लांट बिरला सीमेंट प्लांट गुजरात या फिर विदेशों में निर्यात किया जाता है। जबकि वर्ष 2008 से पहले केसीसी प्लांट में ही स्मेल्टर व रिफाइनरी का कार्य होता था और शुद्ध 99.99% तांबा बनाया जाता था।
राज्य में पनप सकते हैं उद्योग धंधे
एचसीएल से निकलने वाले तांबे से राजस्थान में ही कई सहायक उद्योग पनप सकते हैं। इससे यहां पर ही बर्तन, बिजली के वायर आदि बनाए जा सकते हैं। झुंझुनूं जिले में बबाई व केसीसी के लिए संजीवनी का काम सिंघाना में रीको इंडस्ट्रियल एरिया की स्थापना की गई है। केसीसी प्लांट के नजदीक होने के कारण शेखावाटी के कई औद्योगिक क्षेत्रों में तांबे के कई नए प्रोडक्ट तैयार के उद्योग लगाए जा सकते हैं।
कुम्भाराम नहर योजना का पानी बन सकता है संजीवनी
हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के अधिकांश प्लांट बंद होने का मुख्य कारण पानी की कमी है। लेकिन कुम्भाराम नहर योजना का पानी केसीसी के लिए संजीवनी का काम कर सकता है। पहले यहां खदान से निकाल कर संधारित कर ताम्बे की सिल्लियां तैयार कर दुसरी जगह भेजी जाती थी। बाद में पानी की कमी के कारण केवल ताम्बे की मिट्टी भेजे जाने लगी। अब इसे दुसरी जगह पर फिल्टर कर सिल्लियां तैयार की जा रही है। पानी की कमी पूरी होगी तो फिर से यहीं पर सिल्लियां तैयार हो सकेंगी। इससे स्थानीय स्तर पर औधोगिक इंकाइयां स्थापित की जा सकती है।
इन पहाड़ियों पर है ताम्बा
तांबा श्रमिक संघ से जुड़े लोगों का कहना है कि झुंझुनूं जिले के मुरादपुर से सीकर जिले के रघुनाथगढ़ तक तांबे का भंडार है। इसके अलावा अलवर जिले के राजगढ़ तहसील में दरीबा माइंस 1992 तक चली। वहा भी तांबे के भंडार हैं। सिरोही में बसंतगढ़ व चित्तौड़गढ़ सहित राजस्थान में कई अन्य जगहों पर भी तांबे के भंडार हैं। ऐसे में माना जाता है कि देश के कुल ताम्र भंडारों में से 48% भंडार राजस्थान में है।
इसलिए की गई थी स्थापना
खेतड़ी कॉपर की शुरुआत 9 नवंबर 1967 में भारत व चीन के साथ युद्ध में गोला बारूद के लिए तांबा की जरूरत पड़ने पर की गई थीं। हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड ने केसीसी संयंत्र की स्थापना की। उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र था। भारत में तांबे की जरूरत को लगभग हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड ही पूरी करता था। इससे पहले तांबा विदेशों से ही आयात होता था।
पांच प्लांट में से सिर्फ दो ही प्लांट है चालू हालत में
केसीसी में पहले रिफाइनरी, स्मेल्टर्स, एसिड के दो प्लांट, एक फर्टिलाइजर प्लांट थे। खाद बनाने का संयंत्र भी लगाया गया था जो बंद हो गया। कॉम्प्लेक्स में अब माइनिंग व कंस्ट्रक्टर प्लांट को छोडक़र बाकी के प्लांट अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिए।
कभी रोप-वे पर चलती थीं ट्रॉलियां
बनवास, कोलिहान व चांदमारी में तांबा निकालने के लिए खदानें हैं। कोलिहान खदान से ही ट्रॉलियों में केसीसी के प्लांट में तांबे के पत्थर आते थे। यहीं पर तांबे की गलाई होकर तांबे का उत्पादन होता था। लेकिन अब सिर्फ कंस्ट्रक्टर प्लांट ही चालू हालत में है। जहां पर तांबे के पत्थरों की पिसाई करके दूसरे प्लांटों में भेज दिया जाता है। बाकी तीन प्लांट दूसरी जगह चले गए। इससे ट्रॉलियां भी बंद हो गई।
यह हो सकता है
- नई मशीने लगाकर तांबे का उत्पादन बढ़ाया जाए
- जिले में ही तांबे के प्रोडक्ट तैयार करने के लिए उद्योग धंधे स्थापित हों
- केसीसी में कर्मचारियों की भर्ती की जाए
- कुंभाराम लिफ्ट परियोजना से पानी मिले
- राजस्थान के अन्य शहरों में भी तांबे की खोज कर उद्योग लगाए जा सकते हैं
क्या से क्या हुआ
- 1967 में हुई खेतड़ी कॉपर की स्थापना
- 4 हजार टन तांबा उत्पादन हो रहा है रोजाना
- 5 प्लांट करते थे कभी काम, अभी मात्र दो ही प्लांट चालू
- 10000 कर्मचारी थे कभी कार्यरत, अब मात्र 500