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मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव की तर्ज पर स्वच्छ गाँव विकसित करने देश के सक्षम लोगों और संस्थाओं को एक गाँव गौद देने के साथ ही सीएसआर योजना में स्वच्छ गाँव प्रोजेक्ट को आवश्यक रुप से लागू करने के लिए नया कानून भी लाना चाहिये : के के गुप्ता


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मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव की तर्ज पर स्वच्छ गाँव विकसित करने देश के सक्षम लोगों और संस्थाओं को एक गाँव गौद देने के साथ ही सीएसआर योजना में स्वच्छ गाँव प्रोजेक्ट को आवश्यक रुप से लागू करने के लिए नया कानून भी लाना चाहिये : के के गुप्ता

मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव की तर्ज पर स्वच्छ गाँव विकसित करने देश के सक्षम लोगों और संस्थाओं को एक गाँव गौद देने के साथ ही सीएसआर योजना में स्वच्छ गाँव प्रोजेक्ट को आवश्यक रुप से लागू करने के लिए नया कानून भी लाना चाहिये : के के गुप्ता

उदयपुर /नई दिल्ली : भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के गैर सरकारी सदस्य, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) राजस्थान के प्रदेश समन्वयक और स्वच्छ भारत मिशन के लिए राजस्थान सरकार के पूर्व ब्रांड एम्बेसेडर तथा डूँगरपुर नगरपरिषद के पूर्व अध्यक्ष के के गुप्ता ने भारत सरकार को सुझाव दिया है कि मेघालय के मावलिननॉन्ग गांव की तर्ज पर स्वच्छ गाँव बिकसीत करने के लिए देश के सक्षम लोगों और संस्थाओं को एक गाँव गौद देने के साथ ही कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) योजना में स्वच्छ गाँव प्रोजेक्ट को आवश्यक रुप से लागू करने के लिए नया कानून लाना चाहिये। ऐसे सामूहिक प्रयासों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भावना अनुरुप देश की तस्वीर और तक़दीर बदलेगी।

के के गुप्ता ने उत्तर पूर्व भारत के अपने दौरे के दौरान एशिया का सबसे स्वच्छ गांव घोषित मावलिननॉन्ग का अवलोकन किया।उनके साथ बीकानेर के जाने माने इलेक्ट्रिसिटी के पैनल सप्लायर राम अरोड़ा और बीकानेर एवं मोरबी में घरों में लगने वाली टाइल्स के निर्माता कुंज बिहारी गुप्ता एवं व्यापार जगत में देश और दुनिया के सामने एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत कर क्ले से बनने वाली कप प्लेट दुनिया में सप्लाई करने वाले जयपुर निवासी राजेश अग्रवाल भी थे ।
शिलांग से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित इस छोटे से गांव को डिस्कवर इंडिया द्वारा 2003 में एशिया का सबसे साफ सुथरा गांव का खिताब दिया गया है। इस इलाके में फैली हरियाली की वजह से इसे ‘गॉड्स ओन गार्डन’ का उपनाम भी दिया गया है।

120 घरों वाला यह अनोखा गांव अपनी शानदार सफाई और अनूठी जीवनशैली के कारण पर्यटकों के आकर्षण का भी घर है।

स्वच्छता ईश्वरीय भक्ति के बाद आती है। मावलिननॉन्ग के लोग इस सिद्धांत पर दृढ़ता से विश्वास करते हैं। जैसे ही आप गांव में कदम रखेंगे, आप खुद को एक ऐसे क्षेत्र में पाएंगे जहां “कूड़ा” शब्द का कोई मतलब नहीं है। यहाँ के निवासी हरित और स्वच्छ वातावरण के प्रबंधन के साथ ही इसके रखरखाव के लिए अपने बेजोड़ प्रयास समर्पित करते हैं। वे पानी को रिसाइकिल करते हैं और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर सख्त प्रतिबंध लगाते हैं। उनके घर के बाथरूम और रसोई पूरी तरह से साफ-सुथरे रहते हैं। यहाँ के सार्वजनिक टॉयलेटों को चार्जेबल रखा गया है ।यह गांव पूरी तरह से धूम्रपान निषेध क्षेत्र है। बच्चों को समुदाय की नैतिकता का सम्मान करना सिखाया जाता है, जो मुख्य रूप से स्वच्छता और सफाई पर केंद्रित है। इसलिए इस गांव का हर निवासी अपने गांव को बेदाग और स्वच्छ रखने का अपना कर्तव्य निभाता है। यह गाँव इतना साफ सुथरा है कि यहां किसी भी स्थान पर कागज का एक टुकड़ा भी पड़ा हुआ नहीं मिलता हैं।

इस गांव की खास खूबियां में स्वच्छता के साथ मुख्य रूप से यहाँ की लाजवाब हरियाली हैं। गाँव के हर घर को होम स्टे का रूप दिया गया है जिसमें टूरिस्ट आकर रहते है और अच्छे वातावरण का आनंद लेते है । गाँव में जगह जगह राहगीरों के लिए बैठने की व्यवस्था भी की गई है। स्वच्छ गांव होने से टूरिस्ट यहाँ इतना ज्यादा आ रहा है कि यहाँ के लोगों को अच्छा व्यापार और रोजगार मिल रहा है । साथ ही यहाँ के हर मकान मालिक को अच्छा किराया और स्थानीय व्यापारियों को लाभ मिल रहा है । यहाँ हर रोज़ करीब 2500 पर्यटक आते है और टैक्सी चालकों को प्रतिदिन उनसे अच्छी आमदनी हो रही है तथा गांव में जो भी गाड़ी प्रवेश करती है प्रती गाड़ी रुपए 200 गांव में प्रवेश करने पर शुल्क लिया जाता है जिससे गांव की स्वच्छता कायम रखी जाती है तथा गांव का विकास किया जाता है।

टूरिस्ट का भारी संख्या में यहाँ आना यह प्रमाणित करता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन के संदेश को अपना कर देश का हर गाँव आगे बढ़ आत्म निर्भर और विकसित भारत के निर्माण में यह एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है।

यहाँ का नोह्वेट लिविंग रूट ब्रिज पारंपरिक वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। इसे रबर के पेड़ों की जड़ों को एक ढांचे के चारों ओर बुनकर बनाया गया था। इसके निर्माण में कई पीढ़ियाँ लगीं क्योंकि इसका ताना बाना पेड़ों की वृद्धि पर निर्भर है। पुलों की खासियत उनकी मजबूती है।

यहाँ एक और दर्शनीय आकर्षण चर्च ऑफ एपिफेनी है, जो यूरोपीय स्थापत्य शैली में बना एक सौ साल पुराना चर्च है।

यह अनूठा गाँव अपनी बेजोड़ स्वच्छता के लिए पूरे एशिया में अपनी प्रतिष्ठा बनाए हुए है और सभी आगंतुकों का खुले दिल से स्वागत करता है।

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