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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में क्या भाजपा चुनौतियों का सामना कर रही है ?


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जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में क्या भाजपा चुनौतियों का सामना कर रही है ?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में क्या भाजपा चुनौतियों का सामना कर रही है ?

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

भाजपा ने 370 खत्म कर देश के बाकी हिस्सों में एक खास किस्म का नैरेटिव जरूर सैट किया था । यदि राजस्थान विधानसभा के चुनावों की बात करें तो यहां स्थानीय मुद्दे गोण थे व उम्मीदवार केवल 370 को लेकर ही मोदी के कंधों पर सवार थे । काश्मीर में 370 खत्म करने का राजस्थान के लोगों को क्या फायदा हुआ उससे कोई लेना-देना नहीं और न ही स्थानीय लोगों की समस्या से कोई लेना देना लेकिन 370 को लेकर जरूर भाषणबाजी सुनने को मिली थी ।

जब 370 का देश के अन्य राज्यों को भरपूर फायदा मिला तो जम्मू-कश्मीर के आवाम को तो इसको लेकर खुशी का ठिकाना नहीं होना चाहिए था व भाजपा के साथ खड़े होना चाहिए था । सरकार ने दावा किया था कि नव 370 हटने के बाद घाटी में शान्ति आई है और सामान्य जनजीवन पटरी पर आने लगा। इसके साथ ही घाटी में चरम पंथी घटनाओं में कमी आई है और लोग मुख्यधारा में लोटने लगे हैं । कुछ हद तक इस दावे में दम हो सकता है लेकिन इस दावे की पोल भाजपा ने खुद ही खोल दी । जो भाजपा विश्व का सबसे बड़े राजनीतिक दल होने का दंभ भरती है लेकिन इसके विपरीत वहीं राजनीतिक दल जम्मू-कश्मीर के चुनावी मैदान से भाग रहा है । काश्मीर घाटी की बात करें तो 47 सीटों पर केवल 19 उम्मीदवार ही मैदान में उतारे हैं । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह से लेकर पार्टी के हर नेता ने एक सुर में दावा किया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद क्षेत्र में पहले की तुलना में शांति है और लोगों का भाजपा में भरोसा बढ़ा है । लेकिन लोकसभा चुनावों में भाजपा का काश्मीर में उम्मीदवार नहीं उतारना व विधानसभा चुनावों में कम सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने से सवाल उठने तो लाजिमी है । काश्मीर में मुकाबला वहां की क्षेत्रीय पार्टियों से है जिन्होंने दशकों से यहां काम करके लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है । भाजपा के लिए यहां पर मुकाबला जीतना बहुत मुश्किल है ।

वैसे कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन ने 370 बहाली का प्रस्ताव विधानसभा में पास करवाने की बात कह रहे हैं जिससे उनके मंसूबे जाहिर होते हैं कि घाटी के लोगों को उनकी कितनी चिंता है क्योंकि 370 की आड़ में केवल दो तीन परिवारों ने ही फायदा लिया है । लेकिन 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों में क्या भाजपा चुनौतियों का सामना कर रही है ? यह ज्वलंत प्रश्न अब भी अनुत्तरित भारत के आवाम के समक्ष खड़ा है ।

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

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