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राजस्थान की दरगाह, जहां मनाई जाएगी कृष्ण जन्माष्टमी:12 बजते ही ढोल-नगाड़ों के साथ भजन होते हैं, हनुमान मंदिर से आती है वासुदेव झांकी


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राजस्थान की दरगाह, जहां मनाई जाएगी कृष्ण जन्माष्टमी:12 बजते ही ढोल-नगाड़ों के साथ भजन होते हैं, हनुमान मंदिर से आती है वासुदेव झांकी

राजस्थान की दरगाह, जहां मनाई जाएगी कृष्ण जन्माष्टमी:12 बजते ही ढोल-नगाड़ों के साथ भजन होते हैं, हनुमान मंदिर से आती है वासुदेव झांकी

नरहड़ : यह ऐसी दरगाह है, जहां कृष्ण जन्माष्टमी पर कव्वाली भी होती है, कान्हा के जन्मोत्सव के भजन भी गाए जाते हैं। वासुदेव झांकी भी निकाली जाती है। यहां भक्तों (जायरीन) में दही का प्रसाद बांटा जाता है। है न चौंकाने वाली बात।

मंदिरों में कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव होते आपने खूब देखा होगा। क्या कभी किसी दरगाह में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव होते देखा है। नहीं देखा है तो हम आपको राजस्थान के झुंझुनूं ले चलते हैं। झुंझुनूं से करीब 40 और चिड़ावा से करीब 10 किमी दूर नरहड़ गांव है। यहीं है नरहड़ पीर बाबा की दरगाह। यहां भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को लेकर तीन दिवसीय उत्सव मनाया जा रहा है।

तस्वीर नरहड़ दरगाह की है। यहां राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र तक से जायरीन आते हैं।
तस्वीर नरहड़ दरगाह की है। यहां राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र तक से जायरीन आते हैं।

दरगाह के वरिष्ठ खादिम अजीज पठान बताते हैं- हजरत हाजिब शकरबार शाह दरगाह को नरहड़ दरगाह के रूप में भी जाना जाता है। संभवतया यह देश की पहली ऐसी दरगाह है, जहां श्री कृष्ण का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है। यहां श्रीकृष्ण जन्म पर तीन दिवसीय भादवा मेला लगता है। यह मेला 25 अगस्त से शुरू हो गया है। हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग आपस में मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।

750 साल पुरानी है दरगाह
खादिम अजीज पठान बताते हैं- करीब 750 साल पहले नरहड़ दरगाह का निर्माण किया गया था। इसे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग मानते हैं। इसका खर्च भी दरगाह प्रबंधन के साथ दोनों धर्मों के अनुयायी मिलकर उठाते हैं। मेले में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र समेत देशभर से लाखों जायरीन आते हैं।

दरगाह परिसर को सजाया गया है। यहां प्रसादी वितरण चलता रहा है।
दरगाह परिसर को सजाया गया है। यहां प्रसादी वितरण चलता रहा है।

दरगाह तक निकाली जाती है वासुदेव झांकी
खादिम अजीज पठान कहते हैं- हजरत हाजिब शकरबार शाह दरगाह में मत्था टेककर मन्नत मांगी जाती है। यहां हिंदू अनुयायी जात देने (घर में कोई भी शुभ काम होने पर आते हैं) और बच्चों के मुंडन संस्कार भी करवाने पहुंचते हैं। भादवा मेले का आगाज महफिल-ए-कव्वाली से होता है। इसमें जाने-माने कलाकार कव्वाली प्रस्तुत करते हैं। मेले के दूसरे दिन ग्रामीणों की ओर से हनुमान मंदिर से दरगाह तक वासुदेव की झांकी निकाली जाती है।

रातभर चलता है जन्मोत्सव और जागरण
खादिम अजीज पठान की मानें तो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लगने वाले इस मेले में हिंदू बड़ी तादाद में शिरकत करते हैं। जायरीन यहां हजरत हाजिब की मजार पर चादर, कपड़े, नारियल, मिठाइयां चढ़ाते हैं। जन्माष्टमी पर नरहड़ में लगने वाला ऐतिहासिक मेला और अष्टमी की रात होने वाला रतजगा (रात्रि-जगा) कौमी एकता की अनूठी मिसाल पेश करता है। इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूर-दराज से नरहड़ आने वाले हिंदू श्रद्धालु दरगाह में नवविवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के मुंडन करवाते हैं।

राणा परिवार के कलाकार ख्याल गाते हैं
दरगाह के वरिष्ठ खादिम अजीज पठान ने बताया- यह कहना तो मुश्किल है कि नरहड़ में जन्माष्टमी मेले की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इतना जरूर है कि देश विभाजन एवं उसके बाद कहीं संप्रदाय, धर्म-मजहब के नाम पर भले ही हालात बने-बिगड़े, लेकिन नरहड़ ने सदैव हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल ही पेश की है। जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं, ठीक उसी प्रकार अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में चिड़ावा के प्रख्यात दूलजी राणा परिवार के कलाकार ख्याल (श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिकाओं) की प्रस्तुति देकर रतजगा कर पुरानी परम्परा को जीवित रखे हुए हैं। नरहड़ का यह वार्षिक मेला अष्टमी एवं नवमी को पूरे परवान पर रहता है।

लोक देवता के रूप में पूजा जाता है
अजीज पठान ने बताया- ऐसी मान्यता है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर बरसती थी। इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से भी जानी जाती है। शक्करबार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन थे। उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे। शक्करबार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देह त्यागी थी। राजस्थान व हरियाणा में तो शक्करबार बाबा को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है। इस क्षेत्र के लोगों की गाय, भैंसों के बछड़ा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ाया जाता है, तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है।

जन्माष्टमी के अवसर पर गुब्बारों से दरगाह परिसर को सजाया गया है।
जन्माष्टमी के अवसर पर गुब्बारों से दरगाह परिसर को सजाया गया है।

मन्नत के धांगे बांधते हैं
अजीज पठान ने बताया- हाजिब शक्करबार साहब की दरगाह के परिसर में जाल का एक विशाल पेड़ है। इस पर जायरीन अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर गांवों में रात जगा होता है। इसमें महिलाएं बाबा के बखान के लोकगीत ‘जकड़ी’ गाती हैं। दरगाह में बने संदल की मिट्टी को ‘खाके शिफा’ कहा जाता है। इसे लोग श्रद्धा से अपने साथ ले जाते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस मिट्टी को शरीर पर मलने पर रोग दूर हो जाते हैं। हजरत के अस्ताने के समीप एक चांदी का दीपक हर वक्त जलता रहता है। इस चिराग का काजल चमत्कारी माना जाता है।

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