कारगिल युद्ध में शहादत के 44 दिन बाद मिली बॉडी:वीरांगना ने अफसर से फोन पर कंफर्म की शहीद होने की सूचना, पढ़िए…झुंझुनूं के वीरों की शौर्य गाथा
कारगिल युद्ध में शहादत के 44 दिन बाद मिली बॉडी:वीरांगना ने अफसर से फोन पर कंफर्म की शहीद होने की सूचना, पढ़िए...झुंझुनूं के वीरों की शौर्य गाथा

झुंझुनूं : कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के नापाक मसूंबों को भारतीय सेना के जवानों ने चकनाचूर कर दिया। जवानों ने घुसपैठ करने वाली पाकिस्तान सेना को मुंह तोड़ जवाब दिया और उन्हें फिर से खदेड़ दिया। कारगिल में सैन्य युद्ध 3 मई, 1999 को शुरू हुआ, जो 26 जुलाई, 1999 को भारतीय सेना की जीत के साथ समाप्त हुआ। युद्ध में झुंझुनूं के वीर सपूतों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए मिसाल पेश की।
कारगिल की आखिरी चोटी पर भारत के जवानों ने पाकिस्तानी झंडा रौंद कर तिरंगा फहरा दिया। लेकिन इस जीत में जिले के 18 वीर सपूतों ने युद्ध में प्राणों की आहुतियां दीं। जिनकी बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां जीवन से भी बड़ी हैं। आज देश कारगिल विजय दिवस की सिल्वर जुबली मना रहा है। वहीं अभी तक मां भारती के चरणों में आजादी से अब तक झुंझुनूं के 485 लाड़ले अपना लहू समर्पित कर चुके है। इन्हीं जवानों में झुंझुनूं के वे जवान भी शामिल है, जिनकी बॉडी शहादत के 44 दिन बाद मिली।
झुंझुनूं में इन वीर जवानों की याद में स्मारक बनवाए गए, जिन्हें देवताओं की तरह पूजा जाता है। पढ़िए… इन्हीं वीरों की शौर्य गाथा
कारगिल युद्ध में झुंझुनूं के पहले शहीद, रण के वीर ‘रण विजय’
गुढ़ागौडज़ी इलाके के मैनपुरा के सिपाही रणवीर सिंह कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले झुंझुनूं जिले के पहले लाडले हैं। रणवीर टाइगर हिल्स बजरंग चौकी मश्कोह घाटी में पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देकर 30 मई 1999 को शहीद हुए। शहादत के तत्काल बाद उनकी बॉडी नहीं मिल सकी थी। उस वक्त मश्कोह घाटी दुश्मनों के कब्जे में थी।
शहीद होने की खबर परिवार को उनकी यूनिट के कमांडिंग अफसर की चिट्ठी से मिली। जिसमें लिखा था कि जब तक दुश्मन को खदेड़ नहीं देंगे, तब तक बॉडी मिलना मुश्किल है। इसके बाद यूनिट ने मश्कोह घाटी पर तिरंगा फहराया और तब करीब 44 दिन बाद 13 जुलाई को बर्फ में दबी रणवीर की डेड बॉडी मिली। 15 जुलाई 1999 को गांव में उनको अंतिम विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में लोग उमड़ पड़े।
रणवीर अपने होने वाले पहले पुत्र का मुंह भी नहीं देख पाए थे। उनका बेटा पिता के शहीद होने के डेढ़ महीने बाद 14 अगस्त को जन्मा था। शादी के 10 साल बाद घर में एक चिराग रोशन हुआ, लेकिन रणवीर अपने होने वाले बच्चे का मुंह देखने की हसरत लिए देश को समर्पित हो गए।
बेटा पवन बीकानेर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस लास्ट इयर में है। वीरांगना भी अपने बेटे के साथ बीकानेर ही रहती है। वीरांगना मनेष देवी ने बताया- वह अपने पति की आखिरी निशानी बेटे पवन को मानती है, जिसे काबिल बनाना ही उनका लक्ष्य था। बेटे के इस दुनिया में आने से पहले ही पति वीर गति को प्राप्त हो गए थे। अब उनके सपने बेटा पूरा करेगा। शहीद के पिता हरिराम बताते है कि उन्हें शहीद कोटे के सभी लाभ मिल गए हैं। एक नौकरी नहीं मिली है, अब पोता पढ़ रहा है। उसकी पढ़ाई पूरी होगी तो वह भी मिल जाएगी। बेटे के बिना पूरा संसार ही सूना हो गया था, लेकिन अब पोते में ही वह बेटे को देखते हैं।
मां झिमकोरी देवी कहती हैं कि बेटे की बहुत याद आती है। बेटे को अब कहां से वापस लाऊं। बेटे की फोटो देखकर वह भावुक हो जाती है। उन्होंने बताया- जब बेटे के शहीद होने की सूचना आई तो वह पागल सी हो गई थी। लेकिन फिर धीरे-धीरे बेटे की यादों के सहारे जीना सीख लिया।
गांव का हर शख्स करता हैं प्रतिमा को प्रणाम
झुंझुनूं मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर गांव टिटनवाड़ में मुख्य सडक़ पर कारगिल शहीद श्रीपाल सिंह शेखावत की प्रतिमा गांव हर शख्स को प्ररेणा देती है। शहीद का बेटा संग्राम सिंह कहता है कि वह पिता की प्रतिमा को नमन कर किसी काम के लिए निकलता है तो हर काम सिद्ध होता है। वह अपने पापा को भगवान की तरह ही नमन करता है। गांव के लोग भी अच्छे कार्य करने से पहले शहीद श्रीपाल सिंह शेखावत की प्रतिमा को नमन करते हैं और उन्हें एक देवता की तरह पूजते हैं।
वीरांगना ज्ञान कंवर का कहना है कि सात जनम साथ देने का वचन देने वाले पति ने वचन तोड़ा, लेकिन इसका उन्हें कोई अफसोस नहीं है। वे देश के लिए बलिदान देकर अमर हो गए। 28 जून 1999 को जब पति की पार्थिव देह तिरंगे में लिपटकर घर की देहरी पर लौटी थी, तब ज्ञान कंवर की गोद में छोटी बच्ची सोनू थी। बेटा पांच साल का था। पति की शहादत से अकेली हो चुकी ज्ञान कंवर ने हिम्मत नहीं हारी। वे स्कूल नहीं गई, मगर बेटे और बेटी को पढ़ाया। बेटा संग्राम कलेक्ट्रेट में सरकारी नौकरी में कार्यरत है। वीरांगना बताती है कि दो बेटियां है। दोनों की शादी कर दी गई है। वीरांगना बताती है कि उन्हें गए 25 साल हो गए हैं और उन्हीं के साथ से परिवार में सुख-समृद्धि बनी हुई है।
वीरांगना बोली- एसटीडी बूथ से ऑफिसर को फोन कर ली जानकारी
वीरांगना ज्ञान कंवर बताती हैं कि जब उनके पास पति के शहीद होने की सूचना आई तो यकीन ही नहीं हुआ। 26 जून को श्रीपाल सिंह शहीद हो गए थे। इसके बाद इसी रात को शहीद श्रीपाल सिंह के भाई के पास सूचना आ गई थी। लेकिन यह बात उनसे छिपाई गई। घर में हलचल हुई, जिसे देखकर वीरांगना ज्ञान कंवर को अनहोनी की आशंका हो गई।
वह घर से निकली और एसटीडी बूथ पर पहुंचकर पति की यूनिट में फोन किया, लेकिन वहां से काफी देर तक किसी ने कुछ भी नहीं बताया। आखिरकार यूनिट के अधिकारी भी मेरी जीद के आगे हार गए और फिर शहादत की जानकारी दी। फोन पर सामने से आवाज आई कि सूबेदार श्रीपाल सिंह शहीद हो गए हैं। इस बात पर यकीन ही नहीं हुआ। ऐसा लगा मानों जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई। लेकिन वे इस बात पर गर्व महसूस कर रही हैं कि उनके पति ने देश के लिए जान दी।
बता दें कि शहीद सूबेदार सिंह श्रीपाल सिंह 8 ग्रेनेडियर्स में तैनात थे। उनकी यूनिट को मैदान में जाने के लिए निर्देश प्राप्त हुए। उनकी यूनिट आगे बढ़ रही थी। इसी दौरान ऊपर से हमला हुआ, बम गिरे, जिसमें उन समेत कई जवान वीर गति को प्राप्त हुए।