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गोडावण को बचाने के लिए बनेगा 8 करोड़ का पिंजरा:इनका डर भगाने के लिए बच्चों को हाथों से खाना खिला रहे हैं; साथ-साथ में वॉक करते हैं


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गोडावण को बचाने के लिए बनेगा 8 करोड़ का पिंजरा:इनका डर भगाने के लिए बच्चों को हाथों से खाना खिला रहे हैं; साथ-साथ में वॉक करते हैं

गोडावण को बचाने के लिए बनेगा 8 करोड़ का पिंजरा:इनका डर भगाने के लिए बच्चों को हाथों से खाना खिला रहे हैं; साथ-साथ में वॉक करते हैं

जैसलमेर : राजस्थान में विलुप्त हो रहे गोडावण को बचाने की मुहिम शुरू हो गई है। इनके लिए 8 करोड़ की लागत से पिंजरा तैयार किया जा रहा है ताकि ये लंबे समय तक जीवित रह सके। इतना ही नहीं जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क (डीएनपी) के स्टाफ ने अपना शेड्यूल तक बदल लिया। इनके बच्चों को डर नहीं लगे इसलिए स्टाफ तक ने अपना शेड्यूल बदल दिया। यहां तक की इन्हें अपने हाथ से खाना भी खिला रहे हैं और इनके साथ वॉक भी कर रहे हैं। इसी का नतीजा ये भी रहा कि धीरे-धीरे इनका कुनबा बढ़ रहा है और इनकी संख्या 40 हो गई है। दावा किया जा रहा है कि इस महीने दो नए गोडावण का भी जन्म होने वाला है।

डीएनपी के स्टाफ ने अपना शेड्यूल गोडावण के इन बच्चों जैसा कर दिया है। इनके साथ ये वॉक भी करते हैं और समय भी बीताते हैं।
डीएनपी के स्टाफ ने अपना शेड्यूल गोडावण के इन बच्चों जैसा कर दिया है। इनके साथ ये वॉक भी करते हैं और समय भी बीताते हैं।

गोडावण के लिए तैयार कि 8 करोड़ का पिंजरा

वैज्ञानिक और परियोजना अन्वेषक सुतीर्थ दत्ता ने बताया- राज्यपक्षी को जंगल फ्रेंडली बनाने के लिए भी पहली बार टनल की शेप में पिंजरा तैयार किया जाएगा, जिसकी लागत करीब आठ करोड़ रुपए होगी। यह 150 से 200 मीटर लंबा, करीब 100 मीटर चौड़ा और लगभग 15 मीटर ऊंचा होगा। जिससे पिंजरे में गोडावण आसानी से उड़ान भर सके और नेचर को करीब से देख सके।

पिंजरे में उन्हीं गोडावण को रखा जाएगा, जिन्हें जंगल छोड़ा तय होगा। इनमें शुरुआती प्रोग्राम के तहत फाउंडेशन स्टॉक को रखा जाएगा, जिसमें 15 मादा और 5 नर गोडावण शामिल होने की संभावना है। वहीं पिंजरे में जंगल फ्रेडली माहौल तैयार किया जाएगा। इसके लिए उबारा फाउंडेशन, भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून और राजस्थान सरकार के वन विभाग के एक्सपर्ट्स की ओर से ट्रेनिंग दी जाएगी। हालांकि पिंजरे को लेकर डिजाइन फाइनल नहीं है, जिसके आगामी चंद दिनों में फाइनल होने की संभावना है।

जंगल से गोडावण के अंडों को डीएनपी में लाकर इस तरह से डेवलप किया जा रहा है ताकि इनका कोई शिकार नहीं कर सके।
जंगल से गोडावण के अंडों को डीएनपी में लाकर इस तरह से डेवलप किया जा रहा है ताकि इनका कोई शिकार नहीं कर सके।

वन विभाग के अलावा 48 सदस्यीय टीम करती है केयर

जैसलमेर में फिलहाल दो सेंटर है। इनमें तीन वेटेरनरी डॉक्टर्स की टीम के अलावा 15 रिसर्चर्स है। वहीं करीब 30 सपोर्टिंग स्टाफ है। इनके अलावा राजस्थान वन विभाग की टीम अलग है, जो इन स्टाफ के साथ दिन रात कॉर्डिनेट करके गोडावण की देखभाल और उसकी सुरक्षा करती है। मेडिकल टीम की ओर से गोडावण का इंसानों की जैसे ही ब्लड सैंपल लिया जा रहा है और बीमार होने अथवा उसके द्वारा हरकत कम करने पर इंसानों की तरह ही देखभाल की जाती है। इसी कारण गोडावण और टीम में लगातार बॉन्डिंग बढ़ती जा रही है।

स्टाफ मां बनकर कर रहा देखभाल

गोडावण ब्रीडिंग सेंटर जैसलमेर के वैज्ञानिक और परियोजना अन्वेषक सुतीर्थ दत्ता ने बताया- हमनें हमारा शेड्यूल गोडावण के अनुरूप बना लिया है। 2019 में डीएनपी की शुरुआत हुई। हमारे लिए गोडावण के चूजों या फिर उसके अंडों को तलाशना बड़ी चुनौती थी, क्योंकि यह जमीन पर घोंसला बनाकर अंडे देते है। इसके लिए हमें धीरे-धीरे सफलता मिलना शुरू हुई। हम अंडों और छोटे चूजों को जंगली जानवर और बड़े पक्षियों से बचाकर सेंटर पर लाते और उन्हें एक निश्चित अनुकूल तापमान में रखते। जिससे अंडों में से 10 से 15 दिनों में चूजा बाहर आता। उसके लिए हम ही मां की भूमिका में होते और उसकी फिडिंग करते। यह बॉन्ड हम कंटीन्यू करते, जिससे उसे अपनापन लगे और बॉन्डिंग बनी रहे। चूजों को इंटेंसिव फीडिंग करते और हाई प्रोटीन डाइट को मेनू में शामिल करते है, जिससे उसका विकास अच्छे से हो।

भूखा होने पर खाना खिलाते, फिर सुलाते

ह्यूमंस के साथ गुड बॉन्डिंग रहे, इसके लिए उसके आसपास ही रहते। गोडावण को दिन में तीन बार खाना खिलाते है। सुबह 6:30 बजे पहला फीडिंग होता है। फिर दस बजे के करीब दूसरा फीडिंग करवाते है। इसके बाद तीसरा फिडिंग 5 से 7 बजे के बीच फिक्स करते है। इनके बीच पानी भी पिलाते है। गोडावण भूखा होता है तो उठ जाता है और फिर खाना खाकर आराम से नींद पूरी करता है और यह इसकी खासियत है। हालांकि गोडावण को खिलाने के लिए डीएनपी में ही बैलेंस प्लेट तैयार की जाती है, जिससे सीजन के हिसाब से चेंज करते रहते है।

गोडावण को खास तौर पर कंसारी, गेंहू के अंदर वाले इन्सेक्ट्स खिलाते है। इसके अलावा गर्मियों में तरबूज भी उन्हें पसंद है। वहीं हरी सब्जियों के साथ चूहे भी गोडावण को अच्छे लगते है। शुरुआती एक-दो महिनों तक हाई प्रोटीन डाइट देते है, फिर डाइट को भी मॉडिफॉई करते है, जिससे इनकी ग्रोथ अच्छी हो।

यहां का स्टाफ इन्हें हाथ से खाना खिलाता है। यहां तक दिन में इनके खाने तक का शेड्यूल इन्हें पता है।
यहां का स्टाफ इन्हें हाथ से खाना खिलाता है। यहां तक दिन में इनके खाने तक का शेड्यूल इन्हें पता है।

ब्लड टेस्ट के जरिए समझते है बॉयो कैमिस्ट्री

डीएनपी के एक्सपर्ट्स के अनुसार- गोडावण का ब्लड सैंपल लेकर उसकी बॉयो कैमिस्ट्री समझी जाती है। उसकी हेल्थ की पूरी रिपोर्ट तैयार करते है। इसके बाद जब सभी परफेक्ट मिलता है तो उसे ब्रीड के लिए तैयार करते है। यदि वह स्ट्रेस में लगता है तो उसे नॉर्मल करने का प्रयास करते है, जिससे सबकुछ हेल्दी रहे। इसके बाद ब्रीड होने पर अंडे को वापस उसी साईकल के अनुरूप तैयार किया जाता है और हर एक अंडे का पूरा ध्यान रखते है, क्योंकि वह अनमोल है।

29 से बढ़कर 40 पहुंचा कुनबा

डीएनपी टीम के अनुसार- गोडावण का कुनबा अच्छा माहौल मिलने के कारण लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल सिर्फ 29 गोडावण थे। इस बार इसमें 11 नए सदस्य जुड़े है, जिससे कुनबा बढ़कर 40 हो गया है। हालांकि एक से दो सप्ताह में इनकी संख्या में बढ़ोतरी होने की संभावना है, क्योंकि फिलहाल कुछ अंडों से और चूजे निकलने की उम्मीद है, जिससे कुनबा बढ़ सकता है।

इन चूजों का डीएनपी में विशेष तौर पर ध्यान रखा जा रहा है ताकि ये यहां आराम से डेवलप हो सके।
इन चूजों का डीएनपी में विशेष तौर पर ध्यान रखा जा रहा है ताकि ये यहां आराम से डेवलप हो सके।

क्यों घटे गोडावण

  • ब्रिटिश शासन में लगातार शिकार किया गया।
  • शुरुआती तीन महीने में बड़े बर्ड्स चूजों का शिकार करते है।
  • फसलों में जहरीली खाद से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ा।
  • ओरण भूमि और हरित क्षेत्र में कमी आई।
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
  • क्रिटिकल मोर्टेलिटी को सहन नहीं कर पाए।
  • रेडिएशन और हाईटेंशन लाइन जानलेवा बनी।
  • प्राकृतिक माहौल में क्षरण होने से कमी आई।

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