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आम आदमी की पकड़ से दूर होती उच्च शिक्षा


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आम आदमी की पकड़ से दूर होती उच्च शिक्षा

आम आदमी की पकड़ से दूर होती उच्च शिक्षा

राजेंद्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

भारत में शिक्षा माफिया के शिकंजे मे जाने के कारण उच्च शिक्षा आम आदमी की पकड़ से दूर हो गई है । कर्नाटक व गुजरात जैसे राज्यों में मेडिकल कालेजो की फीस में बेतहाशा वृद्धि करते हुए दो लाख रुपये प्रति महीना कर दी है । इसका मतलब यह हुआ कि डाक्टर बनने के लिए हर बच्चे को करीब 25 लाख सालाना खर्च करना होगा । यदि डाक्टरी की पढ़ाई पांच साल की है तो उन्हें सवा करोड़ भरने के बाद ही डिग्री मिलेगी । अभिभावक अपने बच्चे को डाक्टर बनाने की ललक के कारण यह पैसा बैंक, निजी संस्थानों व सेठ साहूकारों से लेकर ब्याज भरते रहेंगे और जैसे तैसे डाक्टर की डिग्री दिला देंगे । इस बड़े कर्ज में डुबे उस डाक्टर से क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने पेशे से न्याय करेगा ? उसको पहाड़ जैसा कर्ज अपने सर पर दिखाई देने के कारण मरीजों का खून चूसने का काम करेगा । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के कारण है निजी अस्पताल लूट के अड्डे बन चुके हैं । यदि देखा जाए तो यह निजी अस्पताल पांच सितारा होटलों से कम नहीं है । किसी मरीज की बिमारी का पता करने के नाम पर दर्जनों टेस्ट बता देते हैं क्योंकि इन पर उनका कमीशन निर्धारित होता है । उसके बाद शुरू होता है दवाईयों का खर्च जो मरीज के साथ साथ घरवालों की बीमारी भी खत्म कर देता है। इस भंयकर फीस वृद्धि को एक व्यापार व शुद्ध लालच की संज्ञा दी जा सकती है । इस तरह की भारी भरकम फीस देकर जो डाक्टर बनता है तो उससे सेवा की उम्मीद करना बेमानी होगा । इस भारी भरकम फीस के चलते गरीब, ग्रामीण जो मेहनतकश है उनके मेघावी बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं । शिक्षा माफिया व ड्रग माफिया के इस चोली दामन के अनुठे संगम के चलते स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सोचना दूर की कोठी होगा । सरकारें शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर बड़े बड़े दावे करती रही है लेकिन शिक्षा निजी हाथों में जाने के परिणाम सभी के सामने है । हम डाक्टरों को उनकी भारी फीस, अस्पताल का बिल, दवाईयों का बिल व जांच के बिलों को लेकर कोसते रहते हैं परन्तु यह नहीं देखते कि डाक्टर बनने से पहले उसने एक करोड़ रूपये का जुआ खेला है और उसकी भरपाई उसकी पहली प्राथमिकता होगी ।

केन्द्र व राज्य सरकारों को इस और ध्यान देने की जरूरत है कि पूरे देश में एक समान ऐसा फीस का ढांचा तैयार किया जाए जो एक आम आदमी की पकड़ में हो तभी डाक्टर अपने पेशे के प्रति संवेदनशीलता का परिचय दे सकता है ।

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