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लक्ष्मी औऱ फातिमा में इतना भेद क्यों ? हिजाब असहनीय क्यों ?


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लक्ष्मी औऱ फातिमा में इतना भेद क्यों ? हिजाब असहनीय क्यों ?

हिजाब नए भारत का ताजा मुद्दा है ,जिसको समझने की हमें उतनी ही अवश्यकता है जितनी जंगल को पानी की ।

लक्ष्मी औऱ फातिमा में इतना भेद क्यों ? हिजाब असहनीय क्यों ?

हिजाब नए भारत का ताजा मुद्दा है ,जिसको समझने की हमें उतनी ही अवश्यकता है जितनी जंगल को पानी की ।

हिजाब को बार-बार राजनीतिक दलों द्वारा एक हथियार बनाकर हम सब के बीच इस्तेमाल किया जा रहा है , इसी जद्दोजहद में हमें यह तय करने में परेशानी हो रही है कि हिजाब सही है या गलत ? ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमें धर्म का इतना तंग कपड़ा पहना दिया गया है जो एक दिन हमारी बर्बादी के किस्से लिखने लगेगा।

हिजाब स्कूलों और कॉलेजों में मुद्दा बनने को मजबूर क्यों है, जबकि वहाँ शिक्षा सर्वोपरि विषय होना चाहिए । हमें बच्चों के पाठ्यक्रम और दिनचर्या में तकनीकी औऱ वैश्विक शिक्षा लाने की फिक्र होनी चाहिए ना कि धर्म में उलझे रहने और इस तरह हिजाब जैसे विषय को हिकारत भरी नजर से देखने की ।

हमें एक सामुदायिक द्वंद्वता को भूलकर यह विचार करना चाहिए कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की आजादी में पहनावे पर पूर्ण स्वतंत्रता हासिल है ।

एक समुदाय विशेष की लड़कियों के हिसाब को मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है ?

जहां एक तरफ आधुनिक भारत मे कपड़ों पर टिका टिपण्णी करने से फेमिनिस्ट विचारधारा से खरी खोटी सुनना पड़ता है तो फिर हिजाब पर मौन क्यों ?

पहनें क्या नहीं पहने, इस पर बवाल क्यों ?

क्या यही आजादी है ?

क्या लक्ष्मी और फातिमा अब अलग-अलग गिनी जाएगी ?

अगर धार्मिक स्वतंत्रता की बात करें तो संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अनुसार चर्चा करें तो स्कूलों और कॉलेज में हिजाब का पहनना अगर इसलिए गलत है कि हिजाब धर्म विशेष को अंकित करता है तो फिर शिक्षा के मंदिरों में माथे पर तिलक लगाना, सिर पर पगड़ी पहनना , गले में क्रॉस का पहनना भी धर्म विशेष को अंकित करता है, तो क्या यह सब भी गलत है ?

आज भारत में हिजाब का मुद्दा इसलिए है क्योंकि राजनीतिक दलों ने हमारी मानसिकता को इतना गुलाम बना लिया है कि हम हमारी तर्कशक्ति को खो चुके हैं, इसका फायदा उठाकर नवोदित स्कूली बच्चों में भी साम्प्रदायिक माहौल बनाया जा रहा है । वर्तमान दौर के हालातों को देखें तो हिजाब उन दिमागी अपाहिज लोगों की सोच पर काला कपड़ा है जो बेटियों को घर से निकलने नहीं देना चाहते हैं मगर हिजाब का सहारा लेकर वह आज शिक्षित भारत का हिस्सा है । मुद्दा हिजाब का है या फिर किसी विशेष समुदाय के प्रति नफरत का यह सवालिया निशान है ।

क्या व्यवस्था होनी चाहिए : बल्कि होना तो ये चाहिए की जेसे सरदार मजहब के बच्चे] युनीफ़ोर्म  के रंग के हिसाब से अपनी पगड़ी पहनते है ठीक वेसे ही मुस्लिम बच्चियां भी हिजाब युनीफ़ोर्म के रंग का ही पहने । इसे हम व्यवस्था कहेंगे।

~ युवा लेखक आमिर सुहैल, बेसवा ।

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