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एक बच्चे को दिखना बंद, दूसरे की आवाज गई:मासूमों को ब्रेन स्ट्रोक, राजस्थान में रोज 500 -700 केस, जानिए- कोविड ने कैसे बढ़ाया खतरा


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स्वास्थ्य

एक बच्चे को दिखना बंद, दूसरे की आवाज गई:मासूमों को ब्रेन स्ट्रोक, राजस्थान में रोज 500 -700 केस, जानिए- कोविड ने कैसे बढ़ाया खतरा

एक बच्चे को दिखना बंद, दूसरे की आवाज गई:मासूमों को ब्रेन स्ट्रोक, राजस्थान में रोज 500 -700 केस, जानिए- कोविड ने कैसे बढ़ाया खतरा

वर्ल्ड ब्रेन स्ट्रोक डे : आज वर्ल्ड ब्रेन स्ट्रोक डे है। ब्रेन स्ट्रोक यानी लकवे की वजह। कभी ब्रेन स्ट्रोक को बुजुर्गों की बीमारी कहा जाता था, लेकिन अब ये मासूमों पर भी अटैक कर रहा है। एक आठ साल के बच्चे को दिखना बंद हो तो 16 साल की बच्ची की आवाज चली गई।

डॉक्टर के अनुसार, लकवे से मरीज के बचने का एक मात्र सूत्र है-BEFAST

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भारत में हर साल ब्रेन स्ट्रोक के 15 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं। वहीं, राजस्थान में भी रोजाना 500 से 700 मरीज सामने आ रहे हैं। बड़ी चिंता की बात है कि स्ट्रोक आने पर राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में लोग डॉक्टर के पास जाने के बाद झाड़-फूंक करने वालों के पास पहुंच जाते हैं। जो घातक साबित हो सकता है।

क्योंकि ब्रेन स्ट्राेक आने के 4 से 6 घंटे बहुत क्रिटिकल होते हैं। 6 घंटे से पहले मरीज का अस्पताल में इलाज शुरू हो जाना चाहिए, वरना हालत बद से बदतर हो सकती है। 40 हजार से ज्यादा मरीजों को इलाज कर चुके सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डा.सूर्यप्रकाश पाटीदार से बता रहे हैं ब्रेन स्ट्रोक कैसे बच्चों को शिकार बना रहा है।

पहले पढ़िए ये दो डरावने केस…

केस : 1 : 8 साल के मासूम को दिखना बंद हुआ

डॉ. सूर्यप्रकाश पाटीदार के पास 6 महीने पहले चूरू से 8 साल का बच्चा आया था। उसकी आंखों के आगे धुंधलापन रहने लगा। फिर उसे अचानक दोनों आंखों से दिखाई देना बंद हो गया। परिवार ने उसे आंखों के कई डॉक्टरों को दिखाया। फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ा। हालांकि, बच्चा सुन और बोल सकता था।

डॉ. सूर्यप्रकाश पाटीदार ने बच्चे का ट्रीटमेंट शुरू किया। सारे टेस्ट किए गए। जांच में पता लगा कि उसके सिर में पीछे दोनों नसों में ब्लॉकेज है। इसी वजह से उसे दिखाई देना बंद हो गया था। पता लगा कि जन्म के समय से उसका खून गाढ़ा हो गया था। फिर उसकी मेडिसिन शुरू की गई। कई दिनों तक अस्पताल में ही भर्ती रखा गया था। ट्रीटमेंट शुरू करने के बाद बच्चे को वापस से दिखाई देने लग गया है। अपना सारा काम करने लगा है। चलने फिरने भी लगा है। हालांकि अभी उसकी दवाई चल रही है।

केस 2 : 11वीं में पढ़ रही बच्ची की आवाज हुई बंद

11वीं कक्षा में पढ़ने वाली 16 साल की बच्ची की आवाज बंद हो गई थी। मुंह टेढ़ा हो गया और आधा शरीर सुन्न हो गया था। परिवार उसे दौसा से लेकर इलाज के लिए लाया। उसका चेकअप किया तो पता लगा कि उसे मोयाया डिजीज है। टेस्ट किए गए। बाकी चीजें नॉर्मल मिली। उसकी कुछ सर्जरी की गई थी।

4 से 6 महीने उसका इलाज चला था, लेकिन अब वह ठीक है। हालांकि इस वजह से उसकी एक साल की पढ़ाई खराब हो गई। अब दोबारा से 11वीं में एडमिशन दिलाया है। अब बोलने भी लगी है और सारा काम करती है। अभी उसके हाथ की नसें थोड़ी कमजोर है।

डॉ. सूर्यप्रकाश पाटीदार ने बताया कि मोयाया डिजीज में बच्चों के मसल्स में ब्लॉकेज हो जाती है। जिससे स्ट्रोक आ जाता है। इसमें गर्दन तक मसल्स पूरी तरह से सही रहती है, लेकिन आगे सिर में मसल्स सिकुड़ने लगती है। उसकी चौड़ाई कम हो जाती है। ब्लॉकेज होने से सिर में खून का संचार कम हो जाता है।

आखिर ब्रेन स्ट्रोक क्या है?

डाॅ. पाटीदार ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक दो प्रकार का होता है। पहला किसी मरीज की नस बंद हो जाए या फिर फट जाए। मेडिकल लैंग्वेज में इसे स्कीमिक स्ट्रोक और हैमेरेजिक स्ट्रोक कहते हैं। दोनों के लक्षण एक ही तरह के होते है। जो एरिया ब्रेन का ब्लॉक होता हैै, उसका शरीर में भी उसी तरह से असर पड़ता है। जैसे आवाज की नसों में स्ट्रोक पड़े तो आवाज बंद हो सकती है। चेहरा टेढ़ा हो जाता है। सिर के पीछे आंखों की नसों में स्ट्रोक आता है तो दिखना बंद हो जाता है।

सिर के उल्टे हिस्से में स्ट्रोक आता है तो शरीर का आगे का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। इसी तरह सिर के सीधे हिस्से में स्ट्रोक होता है तो शरीर का उल्टा भाग काम करना बंद कर देता है। दिमाग के मेमोरी हिस्से में ब्लॉकेज होती है तो याददाश्त कमजोर हो जाती है। मरीज बातें भूलने लग जाता है। अधिकतर स्ट्रोक के मामले मुंह टेढ़ा होना, आवाज बदलना, मेमोरी खोना, शरीर का हिस्सा सुन्न होना, दिखाई नहीं देना जैसे मामले सामने आते है। ऐसे लक्षण हो तो तुरंत जांच करानी चाहिए।

पहले 60 की उम्र में स्ट्रोक आते थे। अब बच्चों में केस सामने आ रहे हैं, ऐसा क्यों?

स्ट्रोक की उम्र धीरे-धीरे कम हो रही है। पहले 60 साल की उम्र के बाद ही स्ट्रोक के केस होते थे। अब 8 से 10 साल के बच्चों में भी स्ट्रोक आ रहे हैं। इतना ही नहीं, नवजात बच्चों में भी ऐसे केस आए हैं। इसके मल्टीपल फैक्टर सामने आए है। कुछ अपने हाथ में होते हैं। उन्हें बदल सकते हैं, जबकि कुछ केस में हम कुछ नहीं कर सकते हैं। जहां तक पीडियाट्रिक स्ट्रोक है वो पहले भी 60 साल की उम्र के बाद ही आता था। इसका जीवन प्रक्रिया से ज्यादा संबंध नहीं है। जैसी पहले कंडीशन थी वैसी ही आज भी है। अब 20-25 साल की उम्र में स्ट्रोक आ रहे हैं। कोविड के बाद ऐसे केस बढ़े हैं। जिन्हें कोविड हुआ था, उनमें 70 प्रतिशत लक्षण देखने को मिले। इसके पीछे क्या बड़ी वजह है, ये बड़ी रिसर्च के बाद ही सामने आएगा। कोविड के बाद कार्डियक और ब्रेन स्ट्रोक बढ़ रहे हैं। नसों में खून जमने या थक्का होने की शिकायतें मिल रही है।

डॉक्टर्स का मानना है कि नवजात बच्चों में ब्रेन स्ट्रोक की वजह जैनेटिक होती है।
डॉक्टर्स का मानना है कि नवजात बच्चों में ब्रेन स्ट्रोक की वजह जैनेटिक होती है।

नवजात बच्चों में भी ब्रेन स्ट्रोक केस मिले हैं?

जी हां, नवजात बच्चों में भी ब्रेन स्ट्रोक के केस मिल रहे हैं। उनमें जैनेटिक कारण सामने आ रहे हैं। जन्मजात विकृति से भी हो रहे हैं। ऐसे बच्चों के पेरेंट्स या फिर परिवार की हिस्ट्री में ब्रेन स्ट्रोक आया होता है। ऐसे केस में परिवार की हिस्ट्री सर्च की जाती है। इसके बाद इलाज शुरू होता है। राजस्थान में ब्रेन स्ट्रोक के काफी केस बढ़ रहे है। पहले मैं रोजाना 10 से 15 केस देखता था। अब रोजाना 20 से ज्यादा नए केस देख रहा हूं। पूरे राजस्थान में भी 500 से 700 नए सामने आ रहे हैं। कोविड के बाद पिछले दो साल में ऐसे केस में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।

क्या इसकी एक वजह क्लाइमेट भी हो सकता है?

राजस्थान में गर्मियों के मौसम में बहुत ज्यादा स्ट्रोक के केस आते हैं। क्योंकि राजस्थान का क्लाईमेट ड्राई है। डिहाइड्रेशन बहुत कॉमन है। लोग प्रॉपर पानी नहीं पीते हैं। CVT के चांस अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा होते हैं। खून को लौटाने वाली जो नसें होती हैं, उनमें क्लॉट्स जम जाते हैं। प्रेशर बढ़ कर थक्के जम जाते हैं। गर्मियों में बहुत केस होते हैं। गर्भवती महिलाओं को भी ये खतरा रहता है। ऐसे में गर्भावस्था में पानी नियमित पीते रहे और एक्सरसाइज जल्दी से जल्दी शुरू कर दें।

स्ट्रोक के लक्षण क्या होते हैं। स्ट्रोक आए तो क्या करना चाहिए?

आंख, चेहरे, हाथ या बोलने में प्राॅब्लम आए तो तुरंत अस्पताल जाएं। लकवा आए तो न्यूरो के डॉक्टर को दिखाना चाहिए। बिल्कुल घबराना नहीं चाहिए। अगर समय पर इलाज शुरू हो जाता है तो मरीज जल्दी ठीक हो जाता है।

गांवों में स्ट्रोक आने पर झाड़ा लगवाते हैं। कितना खतरनाक है?

मैं झाड़ा लगाने की बात पर ज्यादा कमेंट नहीं करूंगा। इतना कहूंगा कि समय जितना व्यर्थ करेंगे, मरीज को उतनी ज्यादा दिक्कत रहेगी। भगवान को मानते है तो तुरंत अस्पताल में दिखाएं। समय नहीं गंवाएं। मरीज की मौत भी हो सकती है। उदाहरण के लिए बताता हूं कि रामायण में भी लक्ष्मण मूर्छित हुए तो भगवान राम ने झाड़ा नहीं लगवाया था। भगवान राम ने डॉक्टर को बुला कर इलाज कराया था। डॉक्टर ने आने पर बताया था कि समय पर इलाज जरूरी है। उन्हें भी सूर्यादय से पहले बूटी दी गई थी। समय पर दवाई देना बहुत जरूरी है।

स्थाई विकलांगता का लकवा दूसरा सबसे बड़ा कारण है?

जी हां, रोड एक्सीडेंट के बाद ब्रेन स्ट्रोक स्थाई विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। ब्रेन स्ट्रोक किसी को तब होता है, जब उसके दिमाग में पर्याप्त मात्रा में खून और ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो पाती है। समय पर इलाज नहीं हाेता है तो मरीज जीवन भर तकलीफ पाता है।दिमाग में खून के थक्के जम जाते हैं। शरीर के अंग काम नहीं कर पाते हैं। उसकी समय से पहले ही मौत हो जाती है। स्ट्रोक के मरीज का जल्दी से जल्दी इलाज कराएं तो बचाया जा सकता है। रिकवरी के लिए ट्रीटमेंट का फर्क पड़ता है। उसे पहले से हाईबीपी, शुगर जैसी बीमारी नहीं होनी चाहिए। 70 से 80 प्रतिशत मरीज समय पर ठीक हो जाते है।

मरीज के इलाज में रिहैब सेंटर महत्वपूर्ण होते हैं। यहां उन्हें एक्सरसाइज और फिजियोथैरेपी कराई जाती है।
मरीज के इलाज में रिहैब सेंटर महत्वपूर्ण होते हैं। यहां उन्हें एक्सरसाइज और फिजियोथैरेपी कराई जाती है।

स्ट्रोक के बाद रिहैब सेंटर का क्या मतलब है?

स्ट्रोक आने के बाद गोल्डन आवर का बहुत महत्व रहता है। मरीज का इलाज शुरू किया जाता है तो रिहैब सेंटर बहुत महत्वपूर्ण रहते हैं। रिहैब सेंटर में मरीजों को एडमिट रखा जाता है। वहां उन्हें नियमित तौर पर एक्सरसाइज कराई जाती है। रिहैब सेंटर ही मरीजों को दोबारा से जीवनदान देते हैं। वहां उन्हें समय पर दवाई दी जाती है। फिजियो थैरेपी कराई जाती है। चलने-फिरने, बोलने आदी की एक्सरसाइज होती है।

तेज दिल धड़कने पर भी स्ट्रोक हो सकता है?

AF एट्रियल फिब्रिलेशन का मतलब है दिल की धड़कन का अत्यधिक तेज हो जाना। 60 की उम्र के बाद अगर AF है तो इलाज कराते रहे। दवाई लेते रहे। हार्ट तेज धड़कने लगता है तो कमजोर हो जाता है। नसों में ब्लॉकेज होता है तो खून भी तेज दौड़ने लगता है। खून का प्रेशर बढ़ने पर फिर वही थक्का नसों से निकलकर दिमाग में चला जाता है। ऐसे में स्ट्रोक हो जाता है। अगर किसी को एट्रियल फिब्रिलेशन पहले से है तो अपने डॉक्टर को दिखाएं। क्योंकि स्ट्रोक आने के 15 प्रतिशत चांस बढ़ जाते है।

कॉस्मेटिक सर्जरी वाले इंजेक्शन का कितना रोल होता है?

ये सही है कि बोटोक्स इंजेक्शन को सर्जरी में लगा रहे है, लेकिन ये सभी मरीजों को नहीं लगाते है। स्ट्रोक आने के बाद मरीजों को रिहैब देते है। जैसे कई महीनों को तीन महीने से ज्यादा हो जाते हैं तो उनके हाथ काफी सख्त हो जाते हैं। ऐसे मरीजों को बोटोक्स लगाए जाते है। इससे उनके हाथ मुलायम हो जाते हैं।

स्ट्रोक से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

रोजाना 45 मिनट एक्सरसाइज करनी चाहिए। नींद पूरी लेनी चाहिए। जीवनचर्या को नियमित रखना चाहिए। फल, सब्जी का ज्यादा प्रयोग करना चाहिए। वजन को कंट्रोल रखना चाहिए। स्मोकिंग और शराब को छोड़ देना चाहिए। रेड मीट को छोड़ देना चाहिए। बीपी और शुगर को कंट्रोल रखना होगा।

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