60 साल से इस मंदिर के दो खंभे हवा में:जोधपुर में तनोट माता मंदिर; ठेकेदार की मन्नत पूरी हुई तो कराया निर्माण
60 साल से इस मंदिर के दो खंभे हवा में:जोधपुर में तनोट माता मंदिर; ठेकेदार की मन्नत पूरी हुई तो कराया निर्माण

जोधपुर : धर्म, अध्यात्म के शहर जोधपुर में माता के कई मंदिर हैं, जो अपनी भव्यता और इतिहास के चलते जाने जाते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जोधपुर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर एक मंदिर ऐसा भी है जहां आस्था के आगे विज्ञान भी हार जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में माता के विराजमान होने को लेकर किसी भक्त के मन में शंका हुई। इसके बाद मंदिर के दो खंभे अचानक से हवा में उठ गए। 60 साल बीत जाने के बाद भी यहां खंभे जमीन से उठे हुए हैं।
यह कैसे हुआ आज भी रहस्य बना हुआ है। तनोट माता का मुख्य मंदिर जैसलमेर में है। उसी मंदिर की तर्ज पर जोधपुर में भी तनोट राय माता का मंदिर बनवाया गया। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया है।

मान्यता है कि जो भक्त तनोट माता के दर्शन के लिए जैसलमेर नहीं जा पाते, वे यहां आकर शीश नवाते हैं तो उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
मंदिर में कुल 8 खम्भे हैं। जिसमें से दो का जमीन से जुड़ाव नहीं है। यह खंभे रहस्यमय तरीके से हवा में उठे हुए हैं। कई लोग इस खंभे के नीचे से कपड़ा फिराकर अपने पूजाघर में रखते हैं। बगैर जमीन के यह खंभे कैसे टिके हुए हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं। जबकि उस समय लैंटर की छत डालने का चलन नहीं था। इसके बावजूद भारी-भरकम खंभों का हवा में लटके रहना आश्चर्य पैदा करता है।

आज तक रहस्य
वैज्ञानिक दृष्टि से इसके कई कारण होंगे, लेकिन यहां के ग्रामीणों की मंदिर की प्रति गहरी आस्था ऐसा मानने को तैयार नहीं। ग्रामीणों ने बताया- पहले यहां कई इंजीनियर भी आकर देखकर गए थे, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि दोनों पिलर हवा में कैसे उठे।
पुजारी अमित ने बताया- मैं लगभग 22 साल से पूजा कर रहा हूं। जब से यहां आया तभी से पिलरों को हवा में उठे देखा है। उस समय यहां आने वाले ग्रामीणों से पूछा तो उन्होंने बताया कि ये माता के चमत्कार से हुआ है। माता के परम भक्त शिवराम टाक ने इस मंदिर की स्थापना की थी। उस समय उन्हें एक संदेह हुआ कि माता यहां विराजमान हुई या नहीं। इसी संदेह को दूर करने उन्हें स्वप्न आया कि अगले दिन मंदिर में इसका प्रमाण मिल जाएगा। सुबह जब वे मंदिर पहुंचे तो दो पिलर हवा में लटके हुए मिले। उन्हें विश्वास हो गया कि यहां माता विराजित हैं।

ऐसे हुई मंदिर की स्थापना
इस मंदिर की स्थापना ठेकेदार शिवराम नत्थू टाक ने की थी। टाक पीडब्लयूडी में ए क्लास कांट्रैक्टर थे। उन्होंने सन 1971 में खेती के लिए फॉर्म हाउस खरीदा था। तनोट माता में आस्था होने की वजह से यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया। उस समय तनोट माता के मुख्य मंदिर से ज्योत लाकर यहां पर मूर्ति की स्थापना की गई। मंदिर की स्थापना के कुछ ही समय बाद दो पिलर अचानक से हवा में उठ गए थे। इसे लोग माता का चमत्कार भी मानते हैं। 2017 में इस मंदिर में अचानक से आग लग गई थी, उसके बाद मूल प्रतिमा खंडित हो गई। बाद में उनके परिवार के लोगों ने नई प्रतिमा बनवाकर प्राण प्रतिष्ठा करवाई।

इसलिए करवाया मंदिर निर्माण
उन दिनों साल 1962-63 में इंडो-पाक बॉर्डर पर स्थित तनोट माता मंदिर के लिए जैसलमेर से तनोट तक की 120 किमी में से लगभग 100 किमी सड़क बनाने का ठेका इनके पास में था। इस दौरान कम संसाधनों के साथ मुश्किल हालात में सड़क बनाई थी। इस ठेके में अधिक लागत के चलते काम समाप्त हुआ। तब तक टाक की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि कई वाहन और संपत्ति गिरवी रखनी पड़ गई। इसके बाद जैसलमेर की तनोट माता से मन्नत मांगी तो धीरे-धीरे सब कुछ पहले से बेहतर होने लग गया। यही वजह थी कि उनकी माता के प्रति आस्था दिनों दिन बढ़ती चली गई। उनका संकल्प था की वे जोधपुर में माता का एक भव्य मंदिर जरूर बनाएंगे।

तनोट के मंदिर में भी करवाया था जीर्णोद्धार
प्रारम्भ में जोधपुर में तनोट माता का छोटा सा प्राचीन मंदिर बना हुआ था। आस्था के चलते शिवराम टाक ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया था। इसके साथ ही शिव मंदिर की स्थापना भी की थी। बाद में इस मंदिर पर स्वर्ण कलश भी चढ़ाया था। टाक का 1994 में निधन हो गया था। इसके बाद उनकी पत्नी इस मंदिर की व्यवस्थाएं देखती थीं। उनका भी 2003 में निधन हो गया था। अभी इनकी पुत्री श्यामा गहलोत मंदिर की व्यवस्थाएं देखती हैं।

टाक ने भामाशाह के तौर पर 1960 में मगरा पूंजला में स्कूल बनाकर सरकार को समर्पित की थी। इसके अलावा वर्तमान में मंडोर में स्थापित सैटेलाइट हॉस्पिटल भी उन्होंने ही बनाकर आमजन के हित में सरकार को समर्पित किया था
आस-पास के गांवों की प्यास बुझाती थी प्याऊ
ग्रामीण और समाजसेवी सूरताराम देवासी ने बताया- मंदिर की स्थापना के समय यहां पर पानी की एक प्याऊ भी बनवाई गई थी। आज से लगभग 50 साल पहले दूर-दूर तक आने जाने वाले राहगीरों के लिए यह प्याऊ जीवनदायिनी साबित हुई। मंदिर की जमीन पर ही पास में एक कुआं बना हुआ है। लगभग 370 फीट गहरे स्कूल से आसपास के कई गांवों के लोगों की प्यास बुझती थी।
