जयपुर : चिकित्सा विभाग में संविदा पर लगे कर्मी रविवार शाम से स्वास्थ्य भवन के बाहर डेरा डाल विरोध प्रदर्शन कर रहे है। संविदा कर्मियों की मांग है कि चिकित्सा विभाग में 33 कैडर के पदों को नियमित किया जाए। जिसमें कंप्यूटर ऑपरेटर, हेल्थ सुपरवाईजर जैसे कई पद शामिल है। कार्मिक सोमवार को आंदोलन की तैयारी में है। इसे लेकर राजनीति भी तेज हो गई है।
बीजेपी के नेता राजेंद्र राठौड़ ने सोशल मीडिया के जरिए कहा है कि संविदाकर्मियों को नियमित करने के नाम पर कांग्रेस सरकार ने हमेशा उन्हें धोखा देने का काम किया है। जयपुर में स्वास्थ्य भवन के बाहर बड़ी संख्या में एकत्रित संविदाकर्मियों के साथ सरकार ने एक बार फिर भद्दा मजाक करते हुए प्रदेशभर से 33 कैडर के संविदाकर्मियों को नियमितीकरण करने के लिए दस्तावेजों के साथ बुलाया और अब महज एक कैडर की प्रक्रिया शुरू की है, वहीं शेष कैडरों के संविदाकर्मी रात्रि को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। क्या सरकार आचार संहिता लगने का इंतजार कर रही है?
संविदाकर्मियों का कहना है कि राजस्थान की गहलोत सरकार ने संविदा कर्मियों को नियमित करने का वादा किया था। उसे निभाने के लिए प्रयास भी किए। लेकिन आखिर में यह भर्ती कुछ अधिकारियों – कर्मचारियों की मनमर्जी से विवादों में आ गई। इससे संविदा कर्मियों में निराशा के साथ भारी रोष है।
उनका कहना है कि राज्य सरकार ने वर्षों से लगे संविदा कर्मियों को नियमित करने का रास्ता निकालते हुए सीएसआर रूल्स 2022 लागू किए। सभी कर्मियों को रूल्स के तहत नियुक्ति दी। इसके बाद सरकार ने अधिकाधिक लोगों को लाभ देने के लिए 9 वर्ष से अधिक कार्य करने वाले सभी कर्मियों को नियमित करने का निर्णय लेते हुए सभी पद सृजित किए। सृजित पदों का पे ग्रेड भी निर्धारित कर दिया। इसका वित्त विभाग और राज्यपाल से भी अनुमोदन हुआ। सरकार ने ये आदेश भी जारी कर दिए।
इसी दौरान सरकार ने जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक कर्मियों की स्क्रीनिंग भी कर ली। वहीं पिछले तीन दिनों से दस्तावेज आदि की जांच की जा रही है। जिसमें सभी जिलों से सभी पदों पर भर्ती होने वाले संविदा कर्मियों के दस्तावेज मंगवाए गए। लेकिन रविवार दोपहर के बाद स्वास्थ्य भवन में बैठे कुछ अधिकारी और कर्मचारियों ने नया अडंगा लगाते हुए केवल अकाउंट पद को ही नियमित करने का कथित फरमान जारी कर दिया। जबकि सभी पदों के लिए दस्तावेज मंगवाए गए थे। कार्मिकों ने स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा, एसीएस शुभ्रा सिंह और मिशन निदेशक डॉ जितेंद्र कुमार सोनी से मिलकर भी अपनी व्यथा सुनाई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।