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न्यूरालिंक को ब्रेन-चिप ट्रायल के लिए रिक्रूटमेंट की मंजूरी:रोबोटिक सर्जरी से ब्रेन में चिप लगाई जाएगी, सोचने भर से कंप्यूटर ऑपरेट होगा


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न्यूरालिंक को ब्रेन-चिप ट्रायल के लिए रिक्रूटमेंट की मंजूरी:रोबोटिक सर्जरी से ब्रेन में चिप लगाई जाएगी, सोचने भर से कंप्यूटर ऑपरेट होगा

न्यूरालिंक को ब्रेन-चिप ट्रायल के लिए रिक्रूटमेंट की मंजूरी:रोबोटिक सर्जरी से ब्रेन में चिप लगाई जाएगी, सोचने भर से कंप्यूटर ऑपरेट होगा

एलन मस्क की ब्रेन-चिप कंपनी न्यूरालिंक को अपने पहले ह्यूमन ट्रायल के लिए इंडिपेंडेंट इंस्टिट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से रिक्रूटमेंट की मंजूरी मिल गई है। यानी अब न्यूरालिंक ह्यूमन ट्रायल के लिए लोगों की भर्ती कर सकेगी। अगर ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो चिप के जरिए ब्लाइंड भी देख सकेंगे। पैरालिसिस से पीड़ित मरीज सोचकर कंप्यूटर चला सकेंगे।

न्यूरालिंक ने कहा कि जिन लोगों को सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड की चोट या एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के कारण क्वाड्रिप्लेजिया है, वे इस ट्रायल में हिस्सा ले सकते हैं। उनकी उम्र मिनिमम 22 साल होनी चाहिए। स्टडी को पूरा होने में करीब 6 साल लगेंगे। इस दौरान पार्टिसिपेंट को स्टडी रिलेटेड कॉस्ट, जैसे साइट तक आने-जाने का ट्रैवल एक्सपेंस मिलेगा।

ट्रायल के जरिए कंपनी यह देखना चाहती है कि डिवाइस मरीजों पर कैसे काम कर रहा है। N1 इंप्लांट, R1 रोबोट और N1 यूजर ऐप की सेफ्टी भी चेक की जाएगी। हालांकि कंपनी ने अभी यह नहीं बताया है कि ट्रायल कब शुरू होगा, या इसमें कितने प्रतिभागी शामिल होंगे। इससे पहले मई में कंपनी को ट्रायल के लिए यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मंजूरी मिली थी।

N1 इम्प्लांट मस्तिष्क में सर्जरी के जरिए लगाया जाएगा
मरीजों में सर्जरी के जरिए N1 इम्प्लांट को मस्तिष्क के उस क्षेत्र में लगाया जाएगा जो मूवमेंट को कंट्रोल करता है। ये सर्जरी R1 रोबोट के जरिए होगी। जिन भी लोगों में N1 इम्प्लांट लगेगी, उनसे कंप्यूटर को कंट्रोल करने के लिए कहा जाएगा। N1 इम्प्लांट के साथ N1 यूजर ऐप भी होगा। इसके बाद इन लोगों को इस पूरे सिस्टम का फीडबैक देना होगा।

न्यूरालिंक का सर्जिकल रोबोट जिसके जरिए N1 इम्प्लांट को मस्तिष्क में लगाया जाएगा
न्यूरालिंक का सर्जिकल रोबोट जिसके जरिए N1 इम्प्लांट को मस्तिष्क में लगाया जाएगा

न्यूरालिंक डिवाइस क्या है?

1. सोचने भर से ऑपरेट होगा कंप्यूटर
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न्यूरालिंक ने सिक्के के आकार का एक डिवाइस बनाया है। इसे लिंक नाम दिया गया है। यह डिवाइस कंप्यूटर, मोबाइल फोन या किसी अन्य उपकरण को ब्रेन एक्टिविटी (न्यूरल इम्पल्स) से सीधे कंट्रोल करने में सक्षम करता है। उदाहरण के लिए पैरालिसिस से पीड़ित व्यक्ति के मस्तिष्क में चिप लगाने के बाद वह सिर्फ सोचकर माउस का कर्सर मूव कर सकेगा।

2. कॉस्मेटिक रूप से अदृश्य चिप
न्यूरालिंक ने कहा, हम पूरी तरह से इम्प्लांटेबल, कॉस्मेटिक रूप से अदृश्य ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस डिजाइन कर रहे हैं, ताकि आप कहीं भी जाने पर कंप्यूटर या मोबाइल डिवाइस को कंट्रोल कर सकें। माइक्रोन-स्केल थ्रेड्स को ब्रेन के उन क्षेत्रों में डाला जाएगा जो मूवमेंट को कंट्रोल करते हैं। हर एक थ्रेड में कई इलेक्ट्रोड होते हैं, जिसे वह लिंक इम्प्लांट से जोड़ता है।

3. रोबोटिक प्रणाली डिजाइन की
कंपनी ने बताया कि लिंक पर थ्रेड इतने महीन और लचीले होते हैं कि उन्हें मानव हाथ से नहीं डाला जा सकता। इसके लिए कंपनी ने एक रोबोटिक सिस्टम डिजाइन किया है। यह थ्रेड को मजबूती से और कुशलता से इम्प्लांट कर सकेगा।

इसके साथ ही न्यूरालिंक ऐप भी डिजाइन किया गया है। ब्रेन एक्टिविटी से सीधे अपने कीबोर्ड और माउस को बस इसके बारे में सोच कर कंट्रोल कर सकते हैं।

डिवाइस को चार्ज करने की भी जरूरत होगी। इसके लिए कॉम्पैक्ट इंडक्टिव चार्जर डिजाइन किया गया है जो बैटरी को बाहर से चार्ज करने के लिए वायरलेस तरीके से इम्प्लांट से जुड़ता है।

एक चिप लाएगी क्रांति
न्यूरालिंक ने कहा, हमारी तकनीक का प्रारंभिक लक्ष्य पैरालिसिस वाले लोगों को कंप्यूटर और मोबाइल डिवाइसेस का नियंत्रण देना है। हम उन्हें इंडिपेंडेंट बनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी डिवाइस के जरिए ऐसे लोग फोटोग्राफी जैसी अपनी क्रिएटिविटी भी दिखा सकें। इस तकनीक में कई सारे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का इलाज करने की क्षमता है।

क्या इसे लगाना सेफ होगा?
चिप इम्प्लांट करने में हमेशा जनरल एनेस्थीसिया से जुड़ा रिस्क होता है। ऐसे में प्रोसेस टाइम को कम करके रिस्क कम किया जा सकता है। कंपनी ने इसके लिए न्यूरोसर्जिकल रोबोट डिजाइन किया है, ताकि यह बेहतर तरीके से इलेक्ट्रोड को इम्प्लांट कर सके।

इसके अलावा, रोबोट को स्कल (खोपड़ी) में 25 मिमी डायमीटर के एक छेद के जरिए थ्रेड डालने के लिए डिजाइन किया गया है। ब्रेन में एक डिवाइस डालने से ब्लीडिंग का भी रिस्क है। कंपनी इसे कम करने के लिए माइक्रो-स्केल थ्रेड्स का उपयोग कर रही है।

न्यूरालिंक इम्प्लांटेशन प्रोसेस के विभिन्न चरणों को दर्शाने वाला डायग्राम।
न्यूरालिंक इम्प्लांटेशन प्रोसेस के विभिन्न चरणों को दर्शाने वाला डायग्राम।

ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस का इस्तेमाल
एलन मस्क ने जिस टेक्नोलॉजी के जरिए चिप बनाई है उसे ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस या शॉर्ट में BCIs कहा जाता है। इस पर कई और कंपनियां सालों से काम कर रही हैं। ये सिस्टम ब्रेन में रखे गए छोटे इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल पास के न्यूरॉन्स से संकेतों को “पढ़ने” के लिए करता है। इसके बाद सॉफ्टवेयर इन सिग्नल्स को कमांड या एक्शन में डिकोड करता है, जैसे की कर्सर या रोबोटिक आर्म को हिलाना।

6 साल पहले शुरू किया था ब्रेन कंट्रोल इंटरफेसेस स्टार्टअप
मस्क ने 6 साल पहले ब्रेन कंट्रोल इंटरफेसेस स्टार्टअप की स्थापना की थी और 2 साल पहले अपने इम्प्लांटेशन रोबोट को दिखाया था। वहीं मस्क ने 6 महीने पहले न्यूरालिंक के कैलिफोर्निया हेडक्वार्टर में ‘शो एंड टेल’ इवेंट में अपनी इस डिवाइस की प्रोग्रेस की जानकारी दी थी।

टेलिपैथी के जरिए बंदर ने टाइपिंग की थी
इवेंट में मस्क ने जॉयस्टिक का इस्तेमाल किए बिना एक बंदर का पिनबॉल खेलते हुए वीडियो भी दिखाया था। टेलीपैथी के जरिए बंदर ने टाइपिंग भी की। न्यूरालिंक टीम ने उसके सर्जिकल रोबोट को भी डेमॉन्सट्रेट किया। इसमें दिखाया गया कि कैसे रोबोट पूरी सर्जरी को अंजाम देता है।

YouTube पर न्यूरालिंक प्रेजेंटेशन वीडियो के स्क्रीनशॉट में बाईं ओर खड़े प्रेजेंटर ने बताया कि कैसे एक बंदर वायरलेस ट्रांसमिटर की मदद से टाइपिंग कर रहा है।
YouTube पर न्यूरालिंक प्रेजेंटेशन वीडियो के स्क्रीनशॉट में बाईं ओर खड़े प्रेजेंटर ने बताया कि कैसे एक बंदर वायरलेस ट्रांसमिटर की मदद से टाइपिंग कर रहा है।

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