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बाय का ऐतिहासिक दशहरा मेला, अनोखी परंपरा और कौमी एकता की मिसाल


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बाय का ऐतिहासिक दशहरा मेला, अनोखी परंपरा और कौमी एकता की मिसाल

बाय का ऐतिहासिक दशहरा मेला, अनोखी परंपरा और कौमी एकता की मिसाल

जनमानस शेखावाटी सवंददाता : नैना शेखावत

दांतारामगढ़ : खाटूश्यामजी के निकटवर्ती गांव बाय में 172 वर्षों से लगातार आयोजित हो रहा दशहरा मेला इस बार भी धूमधाम से संपन्न हुआ। प्रदेशभर में प्रसिद्ध इस मेले की विशेषता यह है कि यहां रावण का पुतला दहन नहीं होता, बल्कि दक्षिण भारतीय शैली पर आधारित मुखौटे पहनकर राम और रावण की सेनाओं के बीच युद्ध का सजीव मंचन किया जाता है। नगाड़ों की थाप और तलवार-धनुष से सजे दृश्य दर्शकों को रोमांचित कर देते हैं।

कार्यक्रम में लगभग 260 स्थानीय कलाकार देवी-देवताओं का रूप धारण कर प्रस्तुतियां देते हैं। खास बात यह है कि आयोजन में मुस्लिम समाज की सक्रिय भागीदारी भी रहती है-व्यवस्था से लेकर आर्थिक सहयोग तक वे योगदान देते हैं। यही कारण है कि यह मेला कौमी एकता और सद्भाव की अनोखी मिसाल माना जाता है।

सदर थानाधिकारी कैलाश चंद यादव के नेतृत्व में 110 पुलिसकर्मी सुरक्षा में तैनात रहे। व्यवस्थाओं पर ड्रोन कैमरे से निगरानी रखी गई। ऐतिहासिक रूप से भी यह मेला खास महत्व रखता है। बताया जाता है कि कभी जयपुर रियासत द्वारा लगाए गए कर के खिलाफ ग्रामीणों ने विजयदशमी पर संघर्ष कर जीत हासिल की थी। तब से कर समाप्ति की खुशी में विजयादशमी महोत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई।

लोकप्रियता के लिहाज से बाय का दशहरा मेला कोटा के बाद प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है, जिसमें दूर-दराज से आए प्रवासी और हजारों दर्शक परंपरा और संस्कृति का आनंद उठाते हैं।

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