RGHS भ्रष्टाचार के विरोध में कर्मचारियों का प्रदर्शन:रैली निकाल कर मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन, आंदोलन की चेतावनी दी
RGHS भ्रष्टाचार के विरोध में कर्मचारियों का प्रदर्शन:रैली निकाल कर मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन, आंदोलन की चेतावनी दी

झुंझुनूं : अखिल राजस्थान राज्य कर्मचारी संयुक्त महासंघ के बैनर तले बुधवार को कर्मचारियों ने राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) में चल रहे कथित भ्रष्टाचार और योजनाओं में की जा रही कटौतियों के विरोध में शहीद स्मारक से कलेक्ट्रेट तक रैली निकाली। कर्मचारियों ने हाथों में बैनर-पोस्टर लेकर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और जिला कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। महासंघ ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर सरकार ने जल्द उनकी मांगें नहीं मानी तो पूरे प्रदेश में आंदोलन छेड़ा जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी शासन की होगी।
दवा और जांच की सुविधा प्रभावित
जिला अध्यक्ष उम्मेद महला ने बताया कि आरजीएचएस योजना प्रदेश के कर्मचारियों के लिए एक बेहद जरूरी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना है, लेकिन कुछ चिकित्सा संस्थानों, दवा विक्रेताओं और इस योजना को संचालित करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की मिलीभगत से इस योजना के बजट का दुरुपयोग हो रहा है। इलाज के नाम पर कर्मचारियों के लिए आवंटित राशि का खुलकर दुरुपयोग किया जा रहा है और भ्रष्टाचार की परतें लगातार खुल रही हैं। उन्होंने बताया कि सरकार भ्रष्टाचार रोकने के बजाय योजना के स्वरूप में कटौती कर रही है, जिससे कर्मचारियों की दवा और जांच की सुविधा प्रभावित हो रही है।
मजबूरन आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा
महला ने बताया कि हाल ही में सरकार ने इस योजना की जिम्मेदारी राज्य बीमा एवं प्रावधायी विभाग से हटाकर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को सौंप दी है। यह निर्णय बिना प्रक्रिया और नियमों का पालन किए जल्दबाजी में किया गया, जिससे विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में भारी रोष व्याप्त है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सा विभाग पहले से ही कई योजनाओं के संचालन में सवालों के घेरे में रहा है, ऐसे में एक और बड़ी योजना उसके हवाले करने से व्यवस्था बिगड़ सकती है।
जिला संयोजक योगेश जाखड़ ने बताया कि महासंघ को यह जानकारी भी मिली है कि योजना के साथ ही राज्य बीमा विभाग के कर्मचारियों को भी चिकित्सा विभाग में प्रतिनियुक्त कर दिया गया है, जिससे असंतोष की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि यदि कर्मचारियों की स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती बंद नहीं हुई, तो महासंघ को मजबूरन आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा।
बोले- सरकार निजीकरण की ओर बढ़ रही
प्रदर्शन के दौरान महासंघ की ओर से राज्य सरकार को 11 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन सौंपा गया। इन मांगों में स्वास्थ्य योजना में पारदर्शिता लाने और कर्मचारियों के हितों की बहाली को प्राथमिकता देने की बात कही गई। साथ ही कर्मचारियों की सेवा, वेतन, पदोन्नति और पेंशन से जुड़ी वर्षों पुरानी समस्याओं के समाधान की मांग की गई। प्रदर्शनकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार लगातार निजीकरण की ओर बढ़ रही है, जिससे कर्मचारियों का भविष्य असुरक्षित हो रहा है।
दोषियों पर कठोर कार्रवाई की मांग
महासंघ ने मांग की है कि राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम में हो रहे भ्रष्टाचार की उच्च स्तरीय समिति से जांच करवाई जाए और दोषियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही योजना को चिकित्सा विभाग को सौंपने के निर्णय की पुनर्रवीक्षा की जाए और राज्य बीमा विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को पुनः उसी विभाग में यथावत रखा जाए। कर्मचारियों की दवा और जांच संबंधी सभी कटौतियां वापस ली जाएं ताकि बीमार कर्मचारी सुचारु रूप से इलाज करवा सकें।
महासंघ की अन्य मांगों में पीएफआरडीए अधिनियम को निरस्त कर राज्य कर्मचारियों के 53 हजार करोड़ रुपए जीपीएफ खाते में जमा करवाना शामिल है।
10 प्रतिशत ग्रामीण भत्ता देने की मांग
इसके अलावा पुरानी पेंशन योजना को यथावत रखने, समान काम के लिए समान वेतन नीति लागू करने, न्यूनतम वेतन 26,000 तय करने और 30.10.2017 की अधिसूचना को निरस्त कर 28.06.2013 के अनुसार वेतनमान लागू करने की मांग भी उठाई गई।
कर्मचारियों ने जनवरी 2020 से जून 2021 तक के डीए एरियर का नकद भुगतान करने और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत कार्मिकों को 10 प्रतिशत ग्रामीण भत्ता देने की भी मांग की है।
सेवा काल में पांच पदोन्नति के अवसर देने, 7, 14, 21, 28 व 32 वर्ष की सेवा पर पदोन्नति वेतनमान देने तथा एमएसीपी के लिए आवश्यक शैक्षणिक योग्यता की बाध्यता समाप्त करने की मांग की गई है। साथ ही सभी संविदा व आउटसोर्स नियुक्तियों को बंद कर उन्हें नियमित करने, प्रत्येक विद्यालय में शारीरिक शिक्षक का पद सृजित करने और रिक्त पदों पर सीधी भर्ती करने की मांग भी ज्ञापन में दर्ज है।
कोटा 50% करने की मांग
महासंघ ने सहायक कर्मचारियों को एमटीएस घोषित कर 26 हजार न्यूनतम वेतन देने, बजट में घोषित 60 हजार पदों पर शीघ्र भर्ती करने और पदोन्नति कोटा 50% करने की मांग भी उठाई। मंत्रालयिक कर्मचारियों को सचिवालय व आयोग के बराबर वेतन, भत्ते व सुविधाएं देने और उनके लिए अलग निदेशालय गठित करने की बात कही गई।
ज्ञापन में यह भी कहा गया कि महासंघ के घटक संगठनों के मांग-पत्रों पर संबंधित मंत्रियों और अधिकारियों से नियमित वार्ता हेतु वार्ता केलेंडर जारी किया जाए और पूर्व समझौतों को लागू किया जाए। एएनएम, एलएचवी और अन्य संवर्गों के पदनाम परिवर्तन की प्रक्रिया शीघ्र पूरी की जाए।
आदेश रद्द करने की मांग
महासंघ ने स्थानांतरण नीति को पारदर्शी व स्पष्ट बनाने, तृतीय श्रेणी शिक्षकों के वर्षों से लंबित तबादलों को शीघ्र पूर्ण करने और इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप रोकने की मांग की है। इसके अलावा सामूहिक अवकाश को ‘नो वर्क नो पे’ की श्रेणी में रखने वाले आदेशों को रद्द करने, आरजीएचएस योजना की कटौतियां वापस लेने और योजना में सभी दवाएं एवं जांचें पहले की तरह उपलब्ध करवाने की मांग भी शामिल है।
सरकारी विभागों व सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में निजीकरण और पीपीपी मॉडल समाप्त कर उन्हें सशक्त करने तथा नई शिक्षा नीति 2020 को रद्द करने की मांग की गई है। साथ ही कर्मचारियों को सेवा के दौरान निर्धारित कार्य समय, साप्ताहिक अवकाश व पुलिस कर्मचारियों की लंबित पदोन्नति शीघ्र कराने और उनके लिए अलग प्राधिकरण की व्यवस्था करने की मांग भी की गई।
महासंघ ने अंत में स्पष्ट किया कि यदि इन मांगों पर शीघ्र निर्णय नहीं हुआ तो कर्मचारी वर्ग आंदोलन करने को विवश होगा। प्रदर्शन के दौरान विभिन्न विभागों के कर्मचारी, शिक्षक, महिला कर्मचारी और महासंघ के पदाधिकारी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।