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छतों से बारिश का पानी जमा करने वाला अनूठा गांव:पहले बूंद-बूंद को तरसे, अब हर घर में 20-30 हजार लीटर पानी स्टोर करने का सिस्टम


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छतों से बारिश का पानी जमा करने वाला अनूठा गांव:पहले बूंद-बूंद को तरसे, अब हर घर में 20-30 हजार लीटर पानी स्टोर करने का सिस्टम

छतों से बारिश का पानी जमा करने वाला अनूठा गांव:पहले बूंद-बूंद को तरसे, अब हर घर में 20-30 हजार लीटर पानी स्टोर करने का सिस्टम

चिड़ावा : झुंझुनूं के चिड़ावा का जाखड़ा गांव। आज से करीब 15 साल पहले पीने के पानी की बूंद-बूंद को तरस गया था। भीषण गर्मी में कुएं-तालाब सूखे तो खेतों में खड़ी फसलें जल गई थीं। किसानों को कर्ज की मार सहनी पड़ी थी।

इस तरह की कहानी राजस्थान के किसी एक गांव की नहीं है। पर जाखड़ा गांव अन्य गांवों से जरा हटकर है। बूंद-बूंद को तरसने वाले इस गांव के लोगों में जागरूकता आई और नई तकनीक को अपनाया। यह तकनीक थी बारिश के पानी को इकट्‌ठा करने की। हर घर में 20 से 30 हजार लीटर पानी स्टोर होने लगा तो सारी समस्या दूर हो गई। पीने से लेकर घरेलू काम में इस पानी का उपयोग होता है। गांव का यह सिस्टम वाटर हार्वेस्टिंग की मिसाल बन गया है।

मीडिया टीम जाखड़ा गांव पहुंची और पानी बचाने के इस तकनीक को समझा। पढ़िए यह रिपोर्ट…

डार्क जोन, फिर भी पानी की समस्या नहीं

जाखड़ा गांव झुंझुनूं से 21 किलोमीटर उत्तर में और चिड़ावा से 12 किलोमीटर दूर है। गांव में 8वीं तक का सरकारी स्कूल है। गलियां और मकान पक्के हैं। गांव की सड़क इसे भेरूगढ़ और हमीरवास कस्बों से जोड़ती है। भूजल स्तर के मामले में यह डार्क जोन में है।

बारिश का पानी घर के बने वाटर टैंक में इकट्‌ठा किया जाता है। सालभर यही पानी पीया जाता है और घरेलू कामों के उपयोग में लिया जाता है।
बारिश का पानी घर के बने वाटर टैंक में इकट्‌ठा किया जाता है। सालभर यही पानी पीया जाता है और घरेलू कामों के उपयोग में लिया जाता है।

गांव में 225 मकान हैं। इनमें से 170 घरों में बारिश का पानी एक ढके हुए टैंक में इकट्‌ठा करने का स्ट्रक्चर बना हुआ है। टैंक पक्के और ढके हुए हैं। टैंक में जमा बारिश के पानी को सालभर पीने और घरेलू काम में लिया जाता है। बाकी बचे 55 मकानों में भी वाटर टैंक और स्ट्रक्चर बनाने का काम जारी है।

भूजल की भयंकर कमी वाले इलाके में बसे इस गांव के लोग कभी पानी के लिए नहीं भटकते। घर में स्टोर पानी इनके लिए खजाने से कम नहीं है। गांव को बारिश का पानी बचाने की यह सीख और सौगात रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान (चिड़ावा, झुंझुनूं) ने दी।

15 साल पहले चलाया गया था जागरूकता अभियान

बारिश के पानी को घर में स्टोर करने के लिए 15 साल पहले (2010 में) रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान ने जागरूकता अभियान चलाया था।

इस तकनीक में गांव में हर घर की छत की पक्की चारदीवारी बनाकर नाले को प्लास्टिक से पाइप से जोड़ना था। अगर मकान में दो-तीन कमरे हैं, तो सभी की छतों को पाइपों से जोड़कर घर में बने वाटर टैंक तक पहुंचाया गया है।

गांव में हर मकान की छत को पाइप से जोड़ा गया है। बारिश का पानी बहते हुए टैंक तक पहुंचता है।
गांव में हर मकान की छत को पाइप से जोड़ा गया है। बारिश का पानी बहते हुए टैंक तक पहुंचता है।

सालभर स्टोर रहता है ढका हुआ पानी

बारिश का पानी इन टैंक में सालभर स्टोर रहता है। इस पानी का इस्तेमाल गांव के लोग पेयजल और घरेलू काम में करते हैं। स्टोर पानी की मात्रा के अनुसार, पानी खर्चने में कटौती भी करते हैं। बूंद-बूंद पानी से काम चलाते हैं। बारिश आती है तो वाटर टैंक फिर भर जाते हैं।

किसी साल बारिश कम आती है तो कम पानी से काम चलाते हैं। खास बात यह है कि जब बाकी इलाकों में पानी के लिए हाहाकार मचता है। नलों में कई दिन पानी नहीं आता। लोग टैंकर डलवाने को मजबूर होते हैं, उस दौर में भी इस गांव के लोग अपने घर के आंगन में स्टोर किया पानी आराम से इस्तेमाल करते हैं।

गांव के लोग बोले- 55 घरों की छत पर काम बाकी

जाखड़ा गांव की सरपंच सुनीता देवी के ससुर शीशराम ने बताया- संस्थान ने पहले लोगों को इलाके के जल संकट के बारे में जागरूक किया। इसके बाद लोगों के सहयोग से घर-घर में वाटर टैंक और हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाना शुरू किया। गांव वालों ने श्रमदान किया। पहला वाटर टैंक 2010 में ही बना। इसके बाद 15 साल में 170 घरों में वाटर टैंक बन चुके हैं। बाकी बचे 55 घरों में काम जारी है।

गांव के 170 घरों में निजी इस्तेमाल के टैंक हैं। उन टैंक को चार हेड टैंक से जोड़ा गया है, ताकि पानी ज्यादा होने पर उन्हें भरा जा सके।
गांव के 170 घरों में निजी इस्तेमाल के टैंक हैं। उन टैंक को चार हेड टैंक से जोड़ा गया है, ताकि पानी ज्यादा होने पर उन्हें भरा जा सके।

जाखड़ा गांव की विमला कहती हैं- हम कुंड का ही पानी पीते हैं। सालभर यही पानी काम में आता है।

बलवीर बताते हैं- भूजल स्तर लगभग खत्म हो चुका है। गांव में बारिश पर आधारित बाजरा, मोठ, मूंग की खेती होती है। जल संरक्षण की तकनीक अपनाकर हमारे घरेलू जीवन में स्थिरता आई है। अब पानी के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं, पानी के मामले में हम आत्मनिर्भर हैं।

पंच प्रतिनिधि प्रेम कुमार ने बताया- डालमिया सेवा संस्थान ने इस काम में आर्थिक मदद भी की। सबके साझा प्रयास से पूरे गांव में यह साकार हो सका।

इलाके के जल विशेषज्ञ डॉ. रमेश मीणा ने बताया- जाखड़ा गांव ने वैज्ञानिक ढंग से वर्षा जल संग्रहण कर यह दिखाया है कि प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है। सरकार को ऐसे गांवों को मॉडल बनाकर प्रचारित करना चाहिए।

21 साल पहले हालात देखे और फैसला किया…

पानी बचाने के इस मिशन के पीछे प्रेरक कहानी है। रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान की कूप पुनर्भरण परियोजना के प्रबंधक भूपेंद्र पालीवाल ने बताया- रघु हरि डालमिया 2004 में अपने गांव चिड़ावा आए।

ग्रामीणों से बात की तो पता चला कि इलाके के तेजी से भूजल स्तर गिर रहा है। पानी को लेकर संकट के हालात हैं। ऐसे में उसी वक्त रघु हरि डालमिया ने एक संस्था बनाकर इलाके में भूजल संकट से निपटने और जल संरक्षण की दिशा में काम करने के लिए इस संस्थान का निर्माण किया। 2004 से यह संस्था पर्यावरण संरक्षण, खेती किसानी, जल संरक्षण की दिशा में अनेक काम कर रही है। यह ट्रस्ट चिड़ावा (झुंझुनूं) से ही संचालित होता है।

कौन हैं रघु हरि डालमिया
चिड़ावा का नाता उद्योगपति परिवार डालमिया से रहा है। रघु हरि डालमिया उद्योगपति जयदयाल डालमिया के बेटे और उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया के भतीजे हैं। पिता और ताऊ के नाम पर उन्होंने झुंझनूं में जल-संरक्षण के लिए 2004 में संस्था का निर्माण किया। यह संस्था- रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान 2010 से चिड़ावा में जल संरक्षण पर काम कर रही है। इसके प्रयास से इलाके के 90 गांवों में हर साल करीब 9 करोड़ लीटर वर्षा जल संग्रहीत किया जा रहा है।

संस्थान जल संरक्षण के लिए पुराने कुओं की सफाई कराता है। उनमें बारिश का पानी स्टोर करने के लिए स्ट्रक्चर डवलप करता है। नए कुएं-तालाब का निर्माण कराता है। तालाबों के जल प्रवाह क्षेत्र की साफ-सफाई कराता है। संस्थान ने चिड़ावा पंचायत समिति के 10 गांवों में भूजल मापी कूप (कुएं) बनाए हैं। इनमें हर महीने भूजल के स्तर में हो रहे परिवर्तन को जांचा जाता है। 45 गांवों में मैनुअल वर्षा जल मापी यंत्र लगाए हैं। इसका फायदा यह हुआ कि वर्षा एवं भूजल स्तर में आ रहे परिवर्तन के आधार पर ही किसान फसल का चयन करते हैं।

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