
चंदा आम बोलचाल की भाषा में लेना या मांगने जैसे शब्दों से संबोधित करना वर्जित है । चंदा लेने वाले में अद्भुत वाकपटुता साथ साथ उस प्रतिभा का भी होना जरुरी है जिससे सामने वाले को शीशे में उतारा जा सके उसे इस उधोग का विशेषज्ञ कहा जाता है । इस कार्य में लिप्त व्यक्ति अपने शिकारी की खोज में ऐसे निकल पड़ता है जैसे गौतम बुद्ध सत्य की खोज मे निकले थे । चंदे की अनगिनत परिभाषाओं में एक परिभाषा यह भी है कि यह एक प्रकार से अघोषित समझौता है सेवा लेने वाले व सेवा देने वाले के बीच का । जिला मुख्यालय झुंझुनूं में यह व्यापार बहुत फल-फूल रहा है । क्योंकि इस उधोग को समझने के बाद बहुत से संभ्रांत लोगों ने इसको अंगीकार किया है ।
ऐसे शख्स हर समाज में पाए जाते हैं व खुद को इस उधोग के जरिये समाज में चंदे के बलबूते पर खुद को प्रतिस्थापित इस तरह से करते नजर आ रहे थे जैसे उनसे बड़ा समाजसेवी दीपक लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। ऐसे महानुभाव जो हर समाज के पथ-प्रदर्शक बने हुए हैं। समाज में इस धंधे की ओट में खुद को महान समाज सेवक की छवि के रूप में प्रतिपादित कर रहे हैं। इसी तरह जिले में अनगिनत गौशालाएं है और गौवंश की आड़ में इस उधोग के पंख लगे हुए हैं। जिनको लेकर लोगों द्वारा इस उधोग में निवेश करवाया जा रहा है वे तो गलियों में लठ्ठ खाते घूम रहे हैं और यह उधोग चलाने वाले मलाई के साथ मौज कर रहे हैं । इस उधोग को चलाने में हर तरह के प्रशिक्षित लोग हैं जिनमें से कुछ जिले के नेताओ को अपनी वाकपटुता के जरिये शीशे में उतार कर उनका अभिनंदन समारोह आयोजित करते हैं जिसमें उनको केवल एक शाल व एक माला के लिए ही खर्चा करना पड़ता है वैसे इसको देने वाले भी पहुंच ही जाते हैं।
यह उधोग साफ सुथरा होने की वजह से इस फील्ड में कूदने वाले संभ्रांत परिवार के लोग भी हैं । क्योंकि उनकी नजरों में यही वह व्यापार है जिसमें पगड़ी बचाकर घी खाया जा सकता है और संभ्रांत परिवार का होने की वजह से कोई शक भी नहीं करता की चंदे का सेवन कर समाज में प्रतिष्ठा बनाई है । सामाजिक आयोजनों को लेकर इस उधोग में लिप्त जेब में टोपी लेकर निकल पड़ते हैं और जैसे जिसका सर उसी साईज की टोपी उसे पहनाकर अपना उल्लू सीधा करते है व इस तरह के सामाजिक सरोकार के आयोजनों की आड़ में समाज में प्रतिष्ठा पाने के साथ ही समाज के हितैषी होने का प्रमाण पत्र भी पा लेते हैं । उपरोक्त तथ्यों को देखें तो चंदा को धंधा कहना इसकी गरिमा को गिराना है अब यह धंधा न होकर प्रतिष्ठित उधोग हो गया है । – राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक