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झुंझुनूं में चिचडोली को अलग पंचायत बनाने की मांग:प्रस्तावित ग्राम पंचायत मुरोत के परिसीमन के विरोध में ग्रामीणों का प्रदर्शन


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झुंझुनूं में चिचडोली को अलग पंचायत बनाने की मांग:प्रस्तावित ग्राम पंचायत मुरोत के परिसीमन के विरोध में ग्रामीणों का प्रदर्शन

झुंझुनूं में चिचडोली को अलग पंचायत बनाने की मांग:प्रस्तावित ग्राम पंचायत मुरोत के परिसीमन के विरोध में ग्रामीणों का प्रदर्शन

झुंझुनूं : झुंझुनूं की ग्राम पंचायत मुरोत के परिसीमन को लेकर ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। इसको लेकर आज बड़ी संख्या में चिचडोली और आसपास के गांवों के ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर विरोध प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि चिचडोली को ग्राम पंचायत के रूप में मान्यता दी जाए। इस दौरान ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगें जल्द नहीं मानी गईं, तो वे उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वर्तमान परिसीमन प्रक्रिया में ग्रामीणों की भावनाओं और भौगोलिक स्थिति को नजरअंदाज किया गया है। ज्ञापन के माध्यम से उन्होंने प्रशासन को अवगत कराया कि चिचडोली गांव, जो कि एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है, उसे प्रस्तावित मुरोत पंचायत में मिलाया जा रहा है।

ग्रामीणों ने बताई अपनी समस्याएं

गांव के निवासी सुनील शर्मा ने कहा, हम चाहते हैं कि चिचडोली को ग्राम पंचायत घोषित किया जाए, ताकि स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान सीधे तौर पर किया जा सके। मुरोत पंचायत में शामिल किए जाने से हमें कई प्रशासनिक और सामाजिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि चिचडोली गांव की जनसंख्या, संसाधन और भौगोलिक स्थिति इसे पंचायत बनाए जाने के लिए पूरी तरह उपयुक्त बनाते हैं।

ज्ञापन में रखी गई प्रमुख मांगें

ग्रामीणों ने ज्ञापन के माध्यम से प्रशासन से मांग की है कि चिचडोली को प्रस्तावित मुरोत पंचायत से अलग रखते हुए उसे एक अलग ग्राम पंचायत के रूप में स्थापित किया जाए। साथ ही, यह भी अनुरोध किया गया है कि भविष्य में किसी भी प्रकार का परिसीमन ग्रामीणों की सहमति और स्थानीय आवश्यकता के अनुसार किया जाए।

सैकड़ों ग्रामीणों ने लिया भाग

प्रदर्शन में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी देखने को मिली। उन्होंने नारेबाजी करते हुए प्रशासन के निर्णय का विरोध किया और चिचडोली की स्वायत्तता की मांग को दोहराया। ग्रामीणों का कहना था कि वे प्रशासन से शांति पूर्वक संवाद करने के पक्ष में हैं, लेकिन अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।

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