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रोज़ा : नफ़्सियात पर नियंत्रण का सशक्त माध्यम‌ ‌ डॉ शमशाद अली असि. प्रोफेसर


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रोज़ा : नफ़्सियात पर नियंत्रण का सशक्त माध्यम‌ ‌ डॉ शमशाद अली असि. प्रोफेसर

रोज़ा : नफ़्सियात पर नियंत्रण का सशक्त माध्यम‌ ‌ डॉ शमशाद अली असि. प्रोफेसर

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान

चूरू : जिला मुख्यालय पर ‌ डॉ शमशाद अली असिस्टेंट प्रोफेसर उच्च शिक्षा विभाग राजस्थान सरकार ने माहे रमजान ‌ की मुबारकबाद देते हुए। कहा इस्लाम धर्म के पांच मूल स्तंभों में कलमा- ए- शहादत, नमाज़, ज़कात, रोज़ा और हज शामिल हैं।

इस्लामी कैलेंडर या हिजरी- सन का नवाँ महीना रमजान कहलाता है जिसे माहे सय्याम व माहे मुबारक भी कहा जाता है। इसे तक़्वा, परहेजगारी और नेकियों का मौसम- ए- बहार भी कहा जाता है।माहे रमज़ान में सुबह सादिक यानी फजर की पौ फटने से सूरज डूबने तक रखा जाने वाला उपवास रोज़ा कहलाता है । हालांकि रोज़े गुज़श्ता नबियों की उम्मतों पर भी फ़र्ज़ थे लेकिन रमज़ान के रोज़ों का हुक्म पवित्र क़ुरआन में दो हिजरी को नाज़िल हुआ और इन्हें फ़र्ज़ क़रार दिया गया। इसी महीने में खालिस आसमानी और मुकद्दस किताब कुरआन भी लौह- ए- महफूज़ (अर्श पर एक स्थान जहाँ संसार में होने वाली घटनाओं का उल्लेख है) से नाज़िल (अवतरित) हुआ था। पूरे महीने भर सुबह से शाम तक रोज़े (व्रत) रखे जाते हैं और ख़ुदा की इबादत की जाती है। रोज़े के शुरू होने का अमल अर्थात सुबह का खाना जिसे सहरी या सहर-गही कहा जाता है और शाम के वक़्त रोज़ा खोलने की प्रक्रिया को इफ्तार कहते हैं। सहरी को मुबारक नाश्ता भी कहा जाता है और बेहतरीन सहरी खजूर है इसलिए कि इसमे इंसान की तमाम गिज़ाई ज़रूरियात पूरी करने की सलाहियत है।

रमज़ान को तीन हिस्सों में बाँटा गया है, पहला हिस्सा रहमत, दूसरा मग़्फ़िरत, तीसरा और आखरी हिस्सा जहन्नुम से आज़ादी का है । रोज़ा इंसान में उबूदियत अर्थात् भृत्यभाव, भक्ति और निष्ठा की भावना पैदा करता है। जन्नत के आठ दरवाज़ों में से एक दरवाजा सिर्फ रोज़ेदारों के लिए मख़्सूस कर दिया गया है जिसे रय्यान कहते हैं। रोज़ा नफ़्सियात पर नियंत्रण और रूहानियत के क़रीब लाता है। पाक और मुकद्दस माहे रमजान खुदा की फजीलतों, बरकतों और अज़मतों से लबरेज़ है जिसमे खुदा की रहमतें इंतिहाई फरावानी के साथ नाज़िल होती हैं। इस्लामी साल का यह महीना रोजेदारों (व्रत करने वालों) के लिए तक़्वा और परहेजगारी के साथ जिंदगी बसर करने का पैग़ाम लाता है। रोजा रखने का अमल न सिर्फ सुबह से शाम तक भूख और प्यास की शिद्दत सहन करने बल्कि नफ़्सियात पर नियंत्रण कर बेहतर जिंदगी के लिए अपने आप को तैयार करने का भी अमल है।

रोज़े में बहुत सी सिफ़ात पोशीदा हैं जो इंसान को साल भर के लिए न सिर्फ बीमारियों से दूर रखती है बल्कि उनकी संभावनाओं को भी कम कर देती है। रोजा आत्म नियंत्रण का सशक्त माध्यम है जो इंसान को बुराइयों से बचाता है और भलाईयों की तरफ ले जाता है, संयमित और आत्म नियंत्रित जिंदगी का प्रेरक बनता है, बेसहारा को सहारा देने की प्रेरणा का सबब बनता है। आपसी भाईचारा, मोहब्बत और सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने में भी माहे रमजान का एक अहम किरदार है। हिंदुस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया में यह मुकद्दस माह अम्न और शांति का पैगाम लेकर आता है। इंसानी हमदर्दी और दूसरों की परेशानी को समझने का इससे बेहतर और कोई मौक़ा हो नहीं सकता।आइए इंसानियत की राह पर चलते हुए रोज़े के फरीज़े को बखूबी अंजाम देते हैं और इस माह का एहतिराम करके हमारे अखलाकी फर्ज़ को निभाते हैं।

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