आवासीय कॉलोनियों में आफत बन रही बिना पार्किंग बिल्डिंगें
प्रशासन अस्थाई अतिक्रमण हटाने के साथ ही स्थाई अतिक्रमण करे ध्वस्त

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका
झुंझुनूं : जिला मुख्यालय की सबसे बड़ी आवासीय कॉलोनी हाउसिंग बोर्ड के बाद अब इंदिरा नगर, मान नगर आवासीय कॉलोनी रहवासियों के साथ ही राहगीरों के लिए भी परेशानी का सबब बनती जा रही है। केंद्रीय बस डिपो के नजदीक होने के कारण आवासीय इंदिरा नगर कॉलोनी में बिना स्वीकृति और स्वीकृति विपरीत बन रही बहु मंजिला इमारतें अधिकांश पार्किंग रहित है। इंदिरा नगर कॉलोनी और मान नगर अब महज कागजों में ही आवासीय रह गई है। कॉलोनीयां पूरी तरह से व्यावसायिक होती जा रही है, जिसका खामियाजा वहां के रहवासियों सहित राहगीरों को भी उठाना पड़ रहा है। साथ ही आवागमन करने वाले दुपहिया वाहनों के अलावा कई मर्तबा एंबुलेंस को भी कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ता है। जनसंख्या के हिसाब से बढ़ती वाहनों की संख्या को देखते हुए इंदिरा नगर आवासीय कॉलोनी में निर्माणाधीन बहु मंजिला इमारतें आम जनजीवन के लिए आफत बनती जा रही है।
बहुमंजिला हॉस्पिटलों की भरमार, पार्किंग नहीं
आवासीय इंदिरा नगर कॉलोनी केंद्रीय बस डिपो के नजदीक बसावट होने के कारण व्यावसायिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। इंदिरा नगर में तकरीबन दो दर्जन से ज्यादा अस्पताल संचालित है वहीं कोचिंग शिक्षण संस्थान के साथ ही अन्य व्यावसायिक गतिविधियों की भरमार है। चिकित्सा सुविधाओं का हब बन चुका इंदिरा नगर का सुभाष मार्ग और बस डिपो के सामने का इलाका तो रहवासियों के लिए सिरदर्द बना हुआ है। आम राहगीर का भी इस इलाके से सुरक्षित निकलना दूभर होता जा रहा है। आवासीय परिक्षेत्र में अस्पताल कोचिंग और शिक्षण संस्थान होने के चलते आने वाली भीड़ की तादाद को देखते हुए निवास करने वाले लोगों ने भी अपने घरों के परिसर में ही दुकानें खोलकर व्यवसाय चालू कर दिया।
टैक्स बचाने के लिए बैंक से लोन
अवैध निर्माण कर्ताओं द्वारा आयकर बचाने के लिए नगर परिषद से स्वीकृति और फिर बैंक से कर्ज लिया जाता है। नगर परिषद से स्वीकृति मिलते ही अवैध निर्माण कर्ताओं के हौसले हो जाते हैं बुलंद। इनकम टैक्स बचाने के लिए नगर परिषद से स्वीकृत नक्शे के अनुसार ना तो भवन बनता है ना ही नियमों की होती है पालना। इंदिरा नगर आवासीय कॉलोनी में आवासीय के नाम पर ली जाती है नगर परिषद से स्वीकृति और बनते है व्यावसायिक केंद्र।
सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट भी आदेश सख्त
अवैध निर्माण और अतिक्रमण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अवैध निर्माणों पर सुप्रीम फैसला देते हुए सख्त निर्देश जारी किए। गत वर्ष 17 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की सरकारों को अवैध निर्माण रोकने के लिए स्थानीय निकायों को दिशा निर्देश जारी करने और अतिकर्मियों पर कार्रवाई करने को कहा था। ज्ञात रहे सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी लिखा है जिन अधिकारियों की मौजूदगी और जानकारी में होने के बावजूद अवैध निर्माण और अतिक्रमण होता है उन पर भी कार्रवाई करते हुए जुर्माना लगाया जाए।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण व अवैध निर्माण पर कार्रवाई के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना के बारे में राज्य सरकार, जेडीए, अतिरिक्त मुख्य सचिव (ऊर्जा), अतिरिक्त मुख्य सचिव जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, नगरीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव, अवासन मंडल आयुक्त व स्वायत शासन विभाग के निदेशक से जानकारी मांगी है। साथ ही, पूछा कि क्यों नहीं जनहित याचिका मंजूर कर अतिक्रमण व अवैध निर्माण कर बनाए गए घरों में बिजली पानी कनेक्शन पर रोक लगा दी जाए ? राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश इन्द्रजीत सिंह और न्यायाधीश प्रमिल कुमार माथुर की खंडपीठ जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया जा चुका है।