‘चूं-चपड़ की तो भाजपा प्रभारी को RLP वाले जूते मारेंगे’:बेनीवाल बोले- मेरी पौधशाला में तैयार नेताओं का पॉलिटिकल पापा मैं ही रहूंगा
‘चूं-चपड़ की तो भाजपा प्रभारी को RLP वाले जूते मारेंगे’:बेनीवाल बोले- मेरी पौधशाला में तैयार नेताओं का पॉलिटिकल पापा मैं ही रहूंगा

नागौर : विधानसभा उपचुनाव में खींवसर सीट की सबसे ज्यादा चर्चा थी। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) प्रमुख नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल, भाजपा के कैबिनेट मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर और भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष डाॅ. ज्योति मिर्धा की साख दांव पर थी। उपचुनाव में भाजपा को 16 साल बाद इस सीट पर जीत नसीब हुई। वहीं विधानसभा में आरएलपी का प्रतिनिधित्व खत्म हो गया।
नतीजों को लेकर हमारे मीडिया कर्मी ने आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल से बात की।
बेनीवाल ने चेतावनी दी- भाजपा प्रदेश प्रभारी राधामोहन दास अग्रवाल ने ज्यादा चूं-चपड़ की तो रालोपा वाले जूते मारेंगे।
पार्टी छोड़ने वालों पर बोले- मेरी पौधशाला में तैयार नेताओं का पॉलिटिकल पापा मैं ही रहूंगा।
पढ़िए पूरा इंटरव्यू…
रिपोर्टर : खींवसर उपचुनाव के परिणाम में आप रालाेपा के प्रदर्शन को किस तरह देखते हैं?
बेनीवाल : देखिए, रालोपा के वोट भी बढ़े हैं। मैंने शुरू से एक लाख के करीब वोट जोड़ रखे थे कि 95 हजार या 1 लाख के करीब हम वोट ले लेंगे। हमें लगा था कि कांग्रेस भी कुछ वोट लेगी। चूंकि कांग्रेस ने जो उम्मीदवार उतारा, वो भाजपा से बात करके उतारा।
कांग्रेस ने राजस्थान के अंदर उपचुनाव में 3-4 प्रत्याशी भाजपा से मैच फिक्सिंग करके उतारे। मैच फिक्सिंग का सबसे बड़ा कारण ये था कि कांग्रेस के कुछ नेता सीबीआई और ईडी के रडार पर हैं। भजनलाल को मुख्यमंत्री रहना था, इसलिए उन्होंने कांग्रेस से इस तरह की टिकटें दिलाईं, जिससे भाजपा को सीधा-सीधा फायदा हो।
मैंने खींवसर, लोहावट समेत राजस्थान में जो जातिवाद खत्म किया था, वो इन्होंने जातियों में जहर घोलकर फिर से चालू कर दिया था। चुनाव के अंदर खरीद-फरोख्त हुई। दिल्ली और स्टेट गवर्नमेंट ने कांग्रेस-भाजपा की मिलीभगत करके जो किया, उससे 5-7 हजार वोट उल्टे-सुल्टे हो गए।
बाकी कोई हार नहीं हमारी जीत है। एक साल में मैंने 15 हजार वोट बढ़ाए। 79 हजार से बढ़कर आरएलपी 95 हजार पर आ गई। कांग्रेस 4 हजार पर रह गई और बीजेपी के कोई ज्यादा वोट नहीं बढ़े।

रिपोर्टर : तो फिर हार की वजह क्या रही?
बेनीवाल : सारी सरकारी मशीनरी ने एमएलए कोष और एमपी कोष का पैसा रोक लिया। विकास कार्य राेके, कार्यकर्ताओं को डिमॉरलाइज किया। इसके बावजूद कार्यकर्ता लड़े। जिन पंचायतों में हमें लीड मिलती थी, वहां बढ़त ठीक ही रही और जिन पंचायतों में हमेशा हार होती थी, वहां हार कुछ बढ़ गई।
अन्य जो प्रत्याशी लड़ रहे थे, वो भी भाजपा में शामिल हो गए। ये एक व्यक्ति की जीत नहीं है। इस जीत के दूल्हे बहुत हैं। किसके सिर पर सेहरा बंधता है, वो तो भाजपा के लोग जानें। बहुत लोगों ने मिलकर भाजपा की नैया पार करवाई है। इसके परिणाम भाजपा-कांग्रेस को आगामी चुनावों में राजस्थान में भुगतने होंगे।
रिपोर्टर : आरएलपी के लिए आगे की राह आसान नहीं दिख रही?
बेनीवाल : आरएलपी निश्चित रूप से मजबूत होकर प्रदेश में उभरेगी। उन व्यक्तियों को मेरे यहां से छुरा घोंप कर गए हुए जयचंद का झंडा पकड़वा दिया गया, जो खुद को किसान नेता कहते थे। उन लोगों ने उस व्यक्ति का झंडा पकड़ लिया, जो अंगूठा टेक है। मेरी तो बहुत बड़ी जीत है।
मुझे हराने के लिए सब एक हो जाएं। मेरी स्कूल में फेल हुए व्यक्ति को वो एडमिशन भी दे दें और नकल करवाकर उसको पास भी करवा दें। उसका झंडा पकड़ लें तो ये तो मेरी बहुत बड़ी जीत है। किसान राजनीति जिनके नाम से चलती थी, उनका यहां खात्मा हो गया। मूंछ तक बात आ गई।
मैंने तो कोई ऐसा बयान नहीं दिया। ये बयान उन सबको भारी पड़ेगा आने वाले समय में। मेरी एक आदत है मैं भूलता नहीं हूं, याद बहुत रखता हूं।
रिपोर्टर : आप अपनी हार के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा रहे हैं?
बेनीवाल : मेरी कोई हार नहीं हुई। ये मेरा कोई वोट नहीं तोड़ पाए, मैं (रालोपा) 80 हजार से 95 हजार तक पहुंच गया। कांग्रेस का वोट भाजपा में शिफ्ट हो गया। कांग्रेस ने वोट मांगे ही नहीं। कांग्रेस सिर्फ इस दबाव में 3-4 सीटें हारी कि कहीं उनके नेता जेल न चले जाएं।
ईडी-सीबीआई के रडार पर होने के कारण वो भाजपा के साथ मिलकर रालोपा को हराने में लग गए, जो रालोपा इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। जिस आरएलपी की वजह से 11 लोकसभा सीट राजस्थान में कांग्रेस और सहयोगियों ने जीतीं, उसी आरएलपी को मारने के लिए कांग्रेस, भाजपा की गाेद में जाकर बैठ गई। यही हमारी जीत है। कांग्रेस धीरे-धीरे राजस्थान में अपने आपको खत्म कर लेगी। पूरे देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, कांग्रेस को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी।
रिपोर्टर : आपका सबसे ही विरोध हो जाता है, इसकी क्या वजह है?
बेनीवाल : लगातार चुनाव लड़ते हुए वोट बैंक बढ़ाकर विरोधियों को खत्म करते जा रहा हूं। विरोधी बचे ही कहां हैं? कांग्रेस-बीजेपी के पास तो उम्मीदवार ही नहीं बचे। मेरे यहां से मेरी ही पार्टी के प्रधान को लेकर चले गए। जो मंडल में हारा, सरपंच में 2 बार हारा, बूथ से भाग गया। मैं उसका कितना ध्यान रख रहा था, मेरा जी जानता है। उसको जीरो से यहां तक लेकर आया।
वो मेरी पीठ में खंजर घोंपकर भागा और भाजपा ने उसको लपक लिया। ये भाजपा की जीत थोड़े ही है। ये तो रालोपा का आदमी ही वहां पर गया है। भाजपा तो टिकी ही नहीं मेरे सामने। 3-4 बार जमानत जब्त हुई।
सारे एकजुट हो गए, ये बेबाकी तो मेरी रहेगी, चाहें दुश्मन कितने भी बनें, मेरी स्टाइल नहीं बदलूंगा। ये तो ऐसे ही चलेगी राजस्थान के अंदर। जो दिल से मर गया, उसका जमीर मर गया। जमीर मरा हुआ व्यक्ति लड़ नहीं सकता। कांग्रेस मरे हुए जमीर वाली पार्टी है, जिसने अपना सौदा भाजपा के हाथों में कर दिया।

रिपोर्टर : दिव्या मदेरणा को भाजपा का एजेंट बताकर आपने राजनीतिक दुश्मनों को एक कर दिया?
बेनीवाल : उनका यहां कोई वोट नहीं है। जिसका आप जिक्र कर रहे हो, उसके बगल के गांवों में सब जगह से जीत कर आया हूं। नागौर में 2 ही वोट चलते हैं। एक हनुमान बेनीवाल के पक्ष का वोट और दूसरा हनुमान बेनीवाल के विरोध को वोट। विरोधी 2-3 जगह होते थे, वो एक जगह हो गए। मेरा पक्ष तो मजबूत ही होता जा रहा है।
1 लाख वोटों की तरफ बढ़ रहा हूं। कौन है राजस्थान में जो जीरो से शुरुआत करके 1 लाख वोटों तक पहुंचा हो। भारतीय आदिवासी पार्टी भी आरएलपी को फॉलो करके ही बनी है। बीएपी की बजाय कांग्रेस-भाजपा ने आरएलपी को मारना जरूरी समझा कि बीएपी को तो बाद में मार लेंगे, क्योंकि वो (बीएपी) तो 12-15 सीट की पार्टी है, लेकिन ये (आरएलपी) 120 सीटों की पार्टी है। दोनों दलों ने समय से पहले हाथ मिला लिया। ये ठीक रहा कि ये नंगे हो गए जनता के सामने।
नागौर, जिस पर कोई गौर नहीं करता था ना-गौर, आज पूरा देश नागौर की तरफ देख रहा है। इसलिए देख रहा है कि आरएलपी हारी कैसे.., वो निर्दलीय उम्मीदवार जिनको धक्के देकर गजेंद्र सिंह ने निकाला, उनकी जरूरत पड़ी तो उनको गले लगाया।
वो सब जब मिले, तब जीत नसीब हुई। ज्याेति खुद 3 बार हारीं, यहां चौथी बार हार गई। किस जीत की बात करती हैं, खुद तो जीत नहीं पाए। मेरे यहां से जो आदमी गया उसका झंडा पकड़कर घूम रहे हैं, शर्म तो इनको आती नहीं है। अगर जरा सी भी शर्म हो तो खुद लड़ते। ये खींवसर कह रहा था तो खुद क्यों नहीं लड़ते हो? मैं नहीं था जब भी नहीं हरा पाए थे। अब सारे विरोधी एकजुट होकर एकाध बार तीर मार लिया तो कोई बड़ी बात नहीं। मैं जब चाहूंगा इनको घर बिठा दूंगा।

रिपोर्टर : पार्टी बनने के बाद पहली बार विधानसभा में आरएलपी का प्रतिनिधित्व खत्म हो गया, दोबारा कैसे शुरुआत करेंगे?
बेनीवाल : आजकल आर्थिक युग है, पैसों की बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। बीजेपी की तरह कोई इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं खरीदा कि गाय के मांस का निर्यात करने वाली कंपनी से पैसा ले लिया हो। कांग्रेस भी लूट-खसाेट कर रही है। आरएलपी ने किसी से 1 रुपए का चंदा नहीं लिया। चाहे मैं उधार लेकर लड़ रहा हूं। चाहें मैं कैसे ही लड़ रहा हूं, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि हनुमान बेनीवाल ने चंदा मांगा हो।
पूरी रणनीति से आगे की लड़ाई लड़ेंगे। 2028 में दलित-शोषित की लड़ाई मुझे ही लड़नी होगी। हरियाणा की तरह राजस्थान में भी आरक्षण में छेड़छाड़ होगी। अभी खींवसर विधानसभा क्षेत्र का सम्मान भी देश में कम हुआ है। खींवसर का नाम कोई गजेंद्र सिंह खींवसर की वजह से नहीं है, वो तो केवल नाम के आगे खींवसर लगाता है।
वो (गजेंद्र सिंह) तो बीजेपी का उम्मीदवार है वरना निर्दलीय लड़े तो 20 हजार वोट भी नहीं आएं। वो तो कमल के फूल के चिह्न के वोट होते हैं। हां, मंत्री जरूर बन जाता है। मुख्यमंत्री के सामने तो हाथ जोड़कर खड़े होना पड़ता है ना। वो कोई पार्टी का बॉस थोड़े ही है।
हमने तो जो निर्णय किए वो पार्टी के लोगों के बीच बैठकर किए। कोई मनमर्जी नहीं की। ये लोग सड़क पर बैठकर संघर्ष नहीं कर सकते। वो पैसा कमा सकते हैं। हाेटलें खरीद सकते हैं और खींवसर की जमीनों पर प्लॉटिंग कर सकते हैं।
इसने मुझे एक बार चुनौती दी तो मैंने कहा था कि लोहावट से नहीं जीतने दूंगा। 40 हजार वोटों से हरा दिया था। अब की बार मेरी मंशा होती तो अब की बार भी हरवा देता। इस बार मैं मेरी पार्टी को मजबूत करने में लगा हुआ था। मैं वहां आरएलपी को नहीं लड़ाता तो ये हार जाता, सौ पर्सेंट हारता।

रिपोर्टर : उपचुनाव हारने के बाद अब खींवसर से दूर हाे जाएंगे..
बेनीवाल : अब तो पूरे राजस्थान में टाइम दूंगा। खींवसर तो मेरा परिवार है, यहां समय दूंगा ही दूंगा। पॉलिटिक्स में हार-जीत होती रहती है। लोगों ने जिस तरह बोतल के चिह्न को बीजेपी के झंडे से बांधकर घसीटा। बड़े नेताओं ने बोतल के चिह्न के साथ मजाक किया। जिन नाथूराम मिर्धा की पोती के नाम पर ज्योति वोट मांगती हैं, वो नाथूराम मिर्धा बीजेपी को सत्यानाशी का फूल कहते थे। इन्हें तो बीजेपी में जाना ही नहीं चाहिए। हां, ईडी के डर से जरूर बेचारे वहां बैठे हैं।
ये कह रहे थे जीजा मुख्यमंत्री बन जाएंगे हरियाणा में, यहां डिप्टी सीएम बन जाएंगे, क्या हुआ? कह रही थीं कि उपप्रधानमंत्री बन जाएंगी, अरे जीतो तो सही। दूसरों के जीत के जश्न मनाने से आपको क्या फायदा? जिसका जश्न मना रहे हो, वो यहीं से ताे गया है।
मैं चाहता तो अपने परिवार से बाहर किसी को लड़ा देता। हार जाता तो कह देता कि हम लड़ते तो जीत जाते। मैं पॉलिटिकल आदमी नहीं हूं, मैंने दिल से राजनीति की। हनुमान बेनीवाल हार-जीत के लिए तैयार है, मैदान छोड़कर नहीं जाएगा।
मुझे नहीं लगता कि जीता हुआ आदमी नागौर में आज होगा। मैं हार कर भी यहीं बैठा हूं। कई जगह से शिकायतें आ रही थीं कि बीजेपी के लोग डीजे लेकर घरों पर आ रहे हैं तो मैंने कहा, कोई बात नहीं बच्चे नासमझ हैं, कभी जीत देखी नहीं है। 20 साल बाद जीत मिली है ताे करने दो इनको, खुशी मनाने दो।

रिपोर्टर : विरोधी कह रहे हैं कि हनुमान बेनीवाल की पौधशाला में नेता तैयार होते हैं, लेकिन इस बार अहंकार की वजह से हार घर में ही आ गई, क्या कहेंगे?
बेनीवाल : अहंकार तो तब होता, जब मैं यहां बैठकर ही फरमान जारी कर देता कि खींवसर वालो! वोट दो मेरे नाम से ही। वोट तो मैं खुद मांग रहा था। एमपी चुनाव में 500 मीटिंग कीं। इस बार भी 200 मीटिंग कीं। अहंकार कहां है, हजारों लोगों से रोज मिलता हूं।
लोगों को गुलामी पसंद है। लोग चाहते हैं कि अन्य नेताओं की तरह हनुमान बेनीवाल का भी चोरी-चकारी में इन्वॉल्वमेंट हो। वो नहीं हो सकता। वो मेरा कैरेक्टर ही नहीं है। दिल्ली जाता हूं तो लोग कहते हैं राजस्थान गुलाम प्रांत है। यहां क्षेत्रीय पार्टी नहीं बनी। राजस्थान के लोग गुलामी पसंद करते हैं। गुलामी जैसी सारी फिल्में राजस्थान में ही बनी हैं।
लोग मेरा कैरेक्टर ही तो पसंद करते हैं। इसे कैसे बदल दूं? बेबाकी, मजबूती, ईमानदारी, क्या मैं इनको बदल दूं? ईमानदार तो मुझे रहना ही पड़ेगा। मैं इनकी तरह हो जाऊं क्या या इंडिया बुल्स खाेल लूं? लोगों के पैसे खा जाऊं जैसे ये संजीवनी जैसे मामलों में बीजेपी के लोग खाते हैं। ये काम करूंगा क्या मैं? प्रधानमंत्री का टॉयलेट सूंघते फिरते हैं ये कि वसुंधरा आ रही हैं तो कहीं बदबू तो नहीं आ रही.. ये काम करूं क्या मैं? मैं तो मजबूत हूं और लड़ाई लड़ता ही रहूंगा। हां, ये सही है कि मेरी पौधशाला में तैयार होकर लोग इधर-उधर चले जाते हैं, कोई बात नहीं बेचारे। उनका पॉलिटिकल पापा तो मैं ही रहूंगा। जब भी आप लिखोगे तो ये तो लिखोगे कि शुरुआत कहां से की?
रिपोर्टर : भाजपा प्रदेश प्रभारी राधामोहन दास अग्रवाल कह रहे हैं कि चूहा शेर बन गया था, भाजपा कार्यकर्ताओं ने फिर चूहा बना दिया?
बेनीवाल : यहां भाजपा है ही नहीं और थी भी नहीं। सबसे पहले मेरे पिता (रामदेव बेनीवाल) और भंवर सिंह डांगावास ही भाजपा काे 1995 में लेकर आए थे। उससे पहले नाथूराम मिर्धा यहां भाजपा वालों को पीटते थे। चाहे भाभड़ा हों या भैंरोंसिंह, उनको नागौर आने ही नहीं देते थे, भाजपा हम ही लाए। राधामोहन कौन है, मैं नहीं जानता इसको। अगर ये बोला है तो इसको परिणाम भुगतने होंगे। उसको थोड़े ही पता है, जो लोकसभा में घुसपैठिए घुसे थे तो बीजेपी के नेताओं की धोती गीली हो गई थी। सारे के सारे भाग गए थे, बड़े-बड़े नेताओं को भागते हुए देखा था। तब हनुमान बेनीवाल उनको पीट रहा था, ऐसे समय पता चलता है शेर और चूहे का।
रिपोर्टर : आप तो कहते थे कि जीत की रेखा आपके हाथ में है, फिर हार कैसे हुई?
बेनीवाल : जीत की रेखा तो है ही। आगे जीत जाएंगे, बड़ी जीत चाहते हैं हम। हो सकता है कि इस हार के अंदर कोई बड़ी जीत का रहस्य छुपा हो। जो होता है अच्छे के लिए होता है। हम इससे नर्वस नहीं हैं। राधामोहन जैसे लोगों को मैं नहीं जानता।
ऐसे तो कभी पूरी बीजेपी के नंबर-1 और नंबर-2 मेरे खास ही हुआ करते थे, राधामोहन को तो पैदा ही उन्होंने किया होगा। कौन है राधामोहन, इसके कहने से कोई शेर चूहा थोड़े ही हो जाएगा? ये कहां छुपा रहता है?
रिपोर्टर : कनिका बेनीवाल पहली बार चुनाव लड़ीं, आगे उनकी भूमिका क्या होगी?
बेनीवाल : देखेंगे, सब लोग बैठकर बात करेंगे कि क्या करना चाहिए। मैं तो नारायण को चुनाव लड़वाना चाहता था। नारायण की इच्छा कम थी। सब लोगों का मन था कि इस बार नया कैंडिडेट लाओ। कहां से लाते, बाहर से आता तो लोग कह रहे थे कि हम साथ नहीं रहेंगे।
मुझे तो कुर्बानी देनी ही थी, तो लड़कर ही दूंगा ना? मैदान छोड़कर थोड़े ही भागूंगा? मैं कभी मैदान छोड़कर नहीं भागा। 2003 में धर्मेंद्र-हेमा मालिनी मेरे खिलाफ प्रचार करने आए थे तो मैं चाहता तो नागौर सीट पर टिकट ले लेता। नागौर जीत जाता, गजेंद्र सिंह को ओसियां भेज रहे थे उस समय। आने वाला 20-25 साल का समय, हनुमान बेनीवाल और हमारे समर्थकों का है। राजस्थान को एक नई दिशा देंगे।